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  • अथर्ववेद - काण्ड 18/ सूक्त 2/ मन्त्र 49
    सूक्त - यम, मन्त्रोक्त देवता - भुरिक् त्रिष्टुप् छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - पितृमेध सूक्त

    ये न॑ पि॒तुःपि॒तरो॒ ये पि॑ताम॒हा य आ॑विवि॒शुरु॒र्वन्तरि॑क्षम्। य आ॑क्षि॒यन्ति॑पृथि॒वीमु॒त द्यां तेभ्यः॑ पि॒तृभ्यो॒ नम॑सा विधेम ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ये । न॒: । पि॒तु: । पि॒तर॑: । ये । पि॒ता॒म॒हा । ये । आ॒ऽवि॒वि॒शु: । उ॒रु । अ॒न्तरि॑क्षम् । ये । आऽक्षि॒यन्ति॑ । पृथि॒वीम् । उ॒त । द्याम् । तेभ्य॑: । पि॒तृऽभ्य॑: । नम॑सा । वि॒धे॒म॒ ॥२.४९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ये न पितुःपितरो ये पितामहा य आविविशुरुर्वन्तरिक्षम्। य आक्षियन्तिपृथिवीमुत द्यां तेभ्यः पितृभ्यो नमसा विधेम ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ये । न: । पितु: । पितर: । ये । पितामहा । ये । आऽविविशु: । उरु । अन्तरिक्षम् । ये । आऽक्षियन्ति । पृथिवीम् । उत । द्याम् । तेभ्य: । पितृऽभ्य: । नमसा । विधेम ॥२.४९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 18; सूक्त » 2; मन्त्र » 49

    पदार्थ -
    (ये) जो पुरुष (नः)हमारे (पितुः) पिता के (पितरः) पिता के समान हैं, और (ये) जो [उसके] (पितामहाः)दादे के तुल्य हैं, और (ये) जो (उरु) चौड़े (अन्तरिक्षम्) आकाश में [विद्याबलसे विमान आदि द्वारा] (आविविशुः) प्रविष्ट हुए हैं और (ये) जो (पृथिवीम्)पृथिवी (उत) और (द्याम्) आकाश में (आक्षियन्ति) सब प्रकार शासन करते हैं, (तेभ्यः) उन (पितृभ्यः) पितरों [रक्षक महात्माओं] की (नमसा) अन्न से (विधेम) हमसेवा करें ॥४९॥

    भावार्थ - हे मनुष्यो ! जोतुम्हारे पिता दादे, परदादे आदि बड़े योगी विद्वान् होकर विद्याबल से विमान आदिद्वारा आकाश में पहुँचे हैं और जो पृथिवी और आकाश में राज्य करते हैं, उनका अन्नआदि से सत्कार करके अपनी उन्नति करो ॥४९॥इस मन्त्र का पूर्वार्द्ध आगे है-अथ०१८।३।५९ ॥

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