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  • अथर्ववेद - काण्ड 18/ सूक्त 2/ मन्त्र 56
    सूक्त - यम, मन्त्रोक्त देवता - अनुष्टुप् छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - पितृमेध सूक्त

    इ॒मौ यु॑नज्मिते॒ वह्नी॒ असु॑नीताय॒ वोढ॑वे। ताभ्यां॑ य॒मस्य॒ सद॑नं॒ समि॑ति॒श्चाव॑ गच्छतात्॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इ॒मौ । यु॒न॒ज्मि॒ । ते॒ । वह्नी॒ इति॑ । असु॑ऽनीताय । वोढ॑वे । ताभ्या॑म् । य॒मस्य॑ । सद॑नम् । सम्ऽइ॑ती: । च॒ । अव॑ । ग॒च्छ॒ता॒त् ॥२.५६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इमौ युनज्मिते वह्नी असुनीताय वोढवे। ताभ्यां यमस्य सदनं समितिश्चाव गच्छतात्॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इमौ । युनज्मि । ते । वह्नी इति । असुऽनीताय । वोढवे । ताभ्याम् । यमस्य । सदनम् । सम्ऽइती: । च । अव । गच्छतात् ॥२.५६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 18; सूक्त » 2; मन्त्र » 56

    पदार्थ -
    (इमौ) इन (वह्नी) लेचलनेवाले दोनों [प्राण और अपान] को (असुनीताय) बुद्धि से ले जाये गये (ते) तुझे (वोढवे) ले चलने के लिये (युनज्मि) मैं [परमेश्वर] युक्त करता हूँ। (ताभ्याम्)उन दोनों [प्राण और अपान] के द्वारा (यमस्य) नियम के (सदनम्) प्राप्तियोग्य पदको (च) और (समितीः) समितियों [सभाओं] को (अवगच्छतात्) निश्चय से तू प्राप्त हो॥५६॥

    भावार्थ - परमात्मा आज्ञा देताहै कि हे मनुष्य मैंने प्राण अपान आदि बुद्धि सहित तुझे इसलिये दिये हैं कि तूनियम के साथ उत्तम पद प्राप्त करके सभाओं में प्रतिष्ठा पावे ॥५६॥यह मन्त्रमहर्षिदयानन्दकृत संस्कारविधि अन्त्येष्टिप्रकरण में उद्धृत है ॥

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