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  • यजुर्वेद - अध्याय 24/ मन्त्र 16
    ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः देवता - अग्न्यादयो देवताः छन्दः - शक्वरी स्वरः - धैवतः
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    अ॒ग्नयेऽनी॑कवते प्रथम॒जानाल॑भते म॒रुद्भ्यः॑ सान्तप॒नेभ्यः॑ सवा॒त्यान् म॒रुद्भ्यो॑ गृहमे॒धिभ्यो॒ बष्कि॑हान् म॒रुद्भ्यः॑ क्री॒डिभ्यः॑ सꣳसृ॒ष्टान् म॒रुद्भ्यः॒ स्वत॑वद्भ्योऽनुसृ॒ष्टान्॥१६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒ग्नये॑। अनी॑कवत॒ इत्यनी॑कऽवते। प्र॒थ॒म॒जानिति॑ प्रथम॒ऽजान्। आ। ल॒भ॒ते॒। म॒रुद्भ्य॒ इति॑ म॒रुत्ऽभ्यः॑। सा॒न्त॒प॒नेभ्य॒ इति॑ साम्ऽतप॒नेभ्यः॑। स॒वा॒त्यानिति॑ सऽवा॒त्यान्। म॒रुद्भ्य॒ इति॑ म॒रुत्ऽभ्यः॑। गृ॒ह॒मे॒धिभ्य॒ इति॑ गृहऽमे॒धिभ्यः॑। बष्कि॑हान्। म॒रुद्भ्य॒ इति॑ म॒रुत्ऽभ्यः॑। क्री॒डिभ्य॒ इति॑ क्री॒डिऽभ्यः॑। स॒ꣳसृ॒ष्टानिति॑ सम्ऽमृ॒ष्टान्। म॒रुद्भ्य॒ इति॑ म॒रुत्ऽभ्यः॑। स्वत॑वद्भ्य॒ इति॒ स्वत॑वत्ऽभ्यः। अ॒नु॒सृ॒ष्टानित्य॑नुऽसृ॒ष्टान् ॥१६ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अग्नये नीकवते प्रथमजाना लभते मरुद्भ्यः सान्तपनेभ्यः सवात्यान्मरुद्भ्यो गृहमेधिभ्यो बष्किहान्मरुद्भ्यः क्रीडिभ्यः सँसृष्टान्मरुद्भ्यः स्वतवद्भ्यो नुसृष्टान् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अग्नये। अनीकवत इत्यनीकऽवते। प्रथमजानिति प्रथमऽजान्। आ। लभते। मरुद्भ्य इति मरुत्ऽभ्यः। सान्तपनेभ्य इति साम्ऽतपनेभ्यः। सवात्यानिति सऽवात्यान्। मरुद्भ्य इति मरुत्ऽभ्यः। गृहमेधिभ्य इति गृहऽमेधिभ्यः। बष्किहान्। मरुद्भ्य इति मरुत्ऽभ्यः। क्रीडिभ्य इति क्रीडिऽभ्यः। सꣳसृष्टानिति सम्ऽमृष्टान्। मरुद्भ्य इति मरुत्ऽभ्यः। स्वतवद्भ्य इति स्वतवत्ऽभ्यः। अनुसृष्टानित्यनुऽसृष्टान्॥१६॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 24; मन्त्र » 16
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    पदार्थ -
    পদার্থঃ–হে মনুষ্যগণ! যেমন বিদ্বান্গণ (অনীকবতে) প্রশংসিত সেনা রক্ষাকারী (অগ্নয়ে) অগ্নি সমান বর্ত্তমান তেজস্বী সেনাধীশের জন্য (প্রথমজান্) বিস্তারপূর্বক কারণ হইতে উৎপন্ন (শান্তপনেভ্যঃ) যাহাদের উত্তম প্রকার ব্রহ্মচর্য্যাদি আচরণ সেই সব (মরুদ্ভ্যঃ) প্রাণ সমান প্রীতি উৎপন্নকারী মনুষ্যদিগের জন্য (সবাত্যান্) এক সমান পবনে বর্ত্তমান পদার্থগুলি (গৃহমেধিভ্যঃ) গৃহে যাহাদের ধীর বুদ্ধি সেই সব (মরুদ্ভ্যঃ) মনুষ্যদিগের জন্য (বষ্কিহান্) বহু কালের উৎপন্ন (ক্রীডিভ্যঃ) প্রশংসাযুক্ত বিহার আনন্দকারী (মরুদ্ভ্যঃ) মনুষ্যদিগের জন্য (সংসৃষ্টান্) উত্তম প্রকার গুণযুক্ত এবং (স্বতবদ্ভ্যঃ) যাহাদের স্বতবাস সেই সব (মরুদ্ভ্যঃ) স্বতন্ত্র মনুষ্যদিগের জন্য (অনুসৃষ্টান্) অনুষঙ্গিদেরকে (আ, লভতে) প্রাপ্ত হয়, সেইরূপই তোমরাও ইহাদেরকে প্রাপ্ত হও ॥ ১৬ ॥

    भावार्थ - ভাবার্থঃ–যেমন বিদ্বান্দিগের দ্বারা বিদ্যার্থী ও পশু পালিত হয় সেইরূপ অন্যান্য মনুষ্যদেরকেও পালন করা উচিত ॥ ১৬ ॥

    मन्त्र (बांग्ला) - অ॒গ্নয়েऽনী॑কবতে প্রথম॒জানা ল॑ভতে ম॒রুদ্ভ্যঃ॑ সান্তপ॒নেভ্যঃ॑ সবা॒ত্যান্ ম॒রুদ্ভ্যো॑ গৃহমে॒ধিভ্যো॒ বষ্কি॑হান্ ম॒রুদ্ভ্যঃ॑ ক্রী॒ডিভ্যঃ॑ সꣳসৃ॒ষ্টান্ ম॒রুদ্ভ্যঃ॒ স্বত॑বদ্ভ্যোऽনুসৃ॒ষ্টান্ ॥ ১৬ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - অগ্নয় ইত্যস্য প্রজাপতির্ঋষিঃ । অগ্ন্যাদয়ো দেবতাঃ । শক্বরী ছন্দঃ ।
    ধৈবতঃ স্বরঃ ॥

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