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  • यजुर्वेद - अध्याय 24/ मन्त्र 21
    ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः देवता - वरुणो देवता छन्दः - बृहती स्वरः - मध्यमः
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    स॒मु॒द्राय॑ शिशु॒मारा॒नाल॑भते प॒र्जन्या॑य म॒ण्डूका॑न॒द्भ्यो मत्स्या॑न् मि॒त्राय॑ कुली॒पया॒न् वरु॑णाय ना॒क्रान्॥२१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स॒मु॒द्राय॑। शि॒शु॒मारा॒निति॑ शिशु॒ऽमारा॑न्। आ। ल॒भ॒ते॒। प॒र्जन्या॑य। म॒ण्डूका॑न्। अ॒द्भ्य इत्य॒प्ऽभ्यः। मत्स्या॑न्। मि॒त्राय॑। कु॒ली॒पया॑न्। वरु॑णाय। ना॒क्रान् ॥२१ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    समुद्राय शिशुमारानलभते पर्जन्याय मण्डूकानद्भ्यो मत्स्यान्मित्राय कुलीपयाय नाक्रान् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    समुद्राय। शिशुमारानिति शिशुऽमारान्। आ। लभते। पर्जन्याय। मण्डूकान्। अद्भ्य इत्यप्ऽभ्यः। मत्स्यान्। मित्राय। कुलीपयान्। वरुणाय। नाक्रान्॥२१॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 24; मन्त्र » 21
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    पदार्थ -
    পদার্থ –হে মনুষ্যগণ! যেমন জলের জীবদের পালন করিতে জ্ঞাতা ব্যক্তি (সমুদ্রায়) মহাজলাশয় সমুদ্রের জন্য (শিশুমারান্) যাহারা নিজেদের শিশুকে বধ করে সেই সব শিশুমার (পর্জন্যায়) মেঘের জন্য (মণ্ডুকান্) মন্ডূক (অদ্ভ্যঃ) জলের জন্য (মৎস্যান্) মৎস্য (মিত্রায়) মিত্রসমান সুখ প্রদানকারী সূর্য্যের জন্য (কুলীপয়ান্) কুলীপয় নামক বন্য পশু এবং (বরুণায়) বরুণ হেতু (নাক্রান্) নক্র অর্থাৎ কুম্ভীর জলজন্তুকে (আ, লভতে) সম্যক্ প্রকার প্রাপ্ত হয়, সেইরূপ তোমরাও প্রাপ্ত হও ॥ ২১ ॥

    भावार्थ - ভাবার্থঃ–যেমন জলচর জন্তুর গুণ জ্ঞাতা পুরুষ সেই জলের জন্তুদেরকে বৃদ্ধি বা ধরিতে পারে সেইরূপ আচরণ অন্যান্য লোকেরাও করিবে ॥ ২১ ॥

    मन्त्र (बांग्ला) - স॒মু॒দ্রায়॑ শিশু॒মারা॒না ল॑ভতে প॒র্জন্যা॑য় ম॒ণ্ডূকা॑ন॒দ্ভ্যো মৎস্যা॑ন্ মি॒ত্রায়॑ কুলী॒পয়া॒ন্ বর॑ুণায় না॒ক্রান্ ॥ ২১ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - সমুদ্রায়েত্যস্য প্রজাপতির্ঋষিঃ । বরুণো দেবতা । বৃহতী ছন্দঃ ।
    মধ্যমঃ স্বরঃ ॥

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