Loading...

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 8/ सूक्त 2/ मन्त्र 27
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - आयुः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - दीर्घायु सूक्त

    ये मृ॒त्यव॒ एक॑शतं॒ या ना॒ष्ट्रा अ॑तिता॒र्याः। मु॒ञ्चन्तु॒ तस्मा॒त्त्वां दे॒वा अ॒ग्नेर्वै॑श्वान॒रादधि॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ये । मृ॒त्यव॑: । एक॑ऽशतम् । या: । ना॒ष्ट्रा: । अ॒ति॒ऽता॒र्या᳡: । मु॒ञ्चन्तु॑ । तस्मा॑त् । त्वाम् । दे॒वा: । अ॒ग्ने: । वै॒श्वा॒न॒रात् । अधि॑ ॥२.२७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ये मृत्यव एकशतं या नाष्ट्रा अतितार्याः। मुञ्चन्तु तस्मात्त्वां देवा अग्नेर्वैश्वानरादधि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ये । मृत्यव: । एकऽशतम् । या: । नाष्ट्रा: । अतिऽतार्या: । मुञ्चन्तु । तस्मात् । त्वाम् । देवा: । अग्ने: । वैश्वानरात् । अधि ॥२.२७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 2; मन्त्र » 27

    पदार्थ -

    १. (ये) = जो प्रसिद्ध (मृत्यवः) = मरण के कारणभूत ज्वर-शिरोव्यथा आदि (एकशतम) = एक सौ संख्या से संख्यात रोग है, (या:) =  जो (नाष्ट्रा:) = नाशकारिणी (अतितार्या:) = अतितरीतव्य-लङ्घनीय हिसिका अविद्याग्रन्थियाँ हैं, (तस्मात्) = इन रोगों वा अविद्याग्रन्थियों से (देवा:) = सब देव-ज्ञानीपुरुष (त्वाम्) = तुझे (मुञ्चन्तु) = छुडाएँ। २. वे ज्ञानीपुरुष तुझे इन रोगों व वासनाओं से छडाएँ जो (अग्नेः वैश्वानरात् अधि) = उस अग्रणी सर्वनरहितकारी प्रभु के प्रतिनिधि हैं [अधि पञ्चम्यर्थानुवादी]। उस प्रभु के ज्ञान-सन्देश को सुनाते हुए ये तुझे सब रोगों व वासनाओं से मुक्त करें।

    भावार्थ -

    प्रभु के प्रतिनिधिभूत ज्ञानीपुरुषों से ज्ञान-सन्देश प्राप्त करके हम रोगों व वासनाओं से ऊपर उठें।

     

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top