Loading...

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 8/ सूक्त 2/ मन्त्र 9
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - आयुः छन्दः - पञ्चपदा जगती सूक्तम् - दीर्घायु सूक्त

    दे॒वानां॑ हे॒तिः परि॑ त्वा वृणक्तु पा॒रया॑मि त्वा॒ रज॑स॒ उत्त्वा॑ मृ॒त्योर॑पीपरम्। आ॒राद॒ग्निं क्र॒व्यादं॑ नि॒रूहं॑ जी॒वात॑वे ते परि॒धिं द॑धामि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    दे॒वाना॑म् । हे॒ति: । परि॑ । त्वा॒ । वृ॒ण॒क्तु॒ । पा॒रया॑मि । त्वा॒ । रज॑स: । उत् । त्वा॒ । मृ॒त्यो: । अ॒पी॒प॒र॒म् । आ॒रात् । अ॒ग्निम् । क्र॒व्य॒ऽअद॑म् । नि॒:ऽऊह॑न् । जी॒वात॑वे । ते॒ । प॒रि॒ऽधिम् । द॒धा॒मि॒ ॥२.९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    देवानां हेतिः परि त्वा वृणक्तु पारयामि त्वा रजस उत्त्वा मृत्योरपीपरम्। आरादग्निं क्रव्यादं निरूहं जीवातवे ते परिधिं दधामि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    देवानाम् । हेति: । परि । त्वा । वृणक्तु । पारयामि । त्वा । रजस: । उत् । त्वा । मृत्यो: । अपीपरम् । आरात् । अग्निम् । क्रव्यऽअदम् । नि:ऽऊहन् । जीवातवे । ते । परिऽधिम् । दधामि ॥२.९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 2; मन्त्र » 9

    पदार्थ -

    १. (देवानां हेति:) = देवों का अस्त्र (त्वा परिवृणक्तु) = तुझे दूर से छोड़ जाए-तेरी हिंसा करनेवाला न हो। मैं (त्वा) = तुझे (रजसः पारयामि) = रजोगुण से पार करता हूँ। तृष्णा से ऊपर उठा हुआ तू पाप-मार्ग की ओर नहीं जाता उत्-और (त्वा) = तुझे (मृत्योः अपीपरम्) = मृत्यु से भी पार करता हैं, बचाता हूँ। पाप ही तो मृत्यु का कारण बनता है। २. मैं (क्रव्यादं अग्निम्) = कच्चा मांस खा जानेवाले कामाग्नि को (आरात् निरूहम्) = सुदूर प्राप्त कराता हूँ-तुझसे बहुत दूर फेंकता हूँ। (ते जीवातवे) = तेरे जीवन के लिए (परिधिं दधामि) = प्राकार की स्थापना करता हूँ-मर्यादा की स्थापना करता हूँ। मर्यादा ही वह प्राकार है जो हमें मृत्यु से बचाता है।

    भावार्थ -

    हमें सूर्यादि देवों की अनुकूलता प्राप्त हो तथा हम राजस् वृत्तियों से ऊपर उठकर नीरोग जीवनवाले हों, हम कामाग्नि से न जलाये जाएँ, दीर्घजीवन के लिए मर्यादारूप प्राकार के द्वारा हम जीवन को सुरक्षित करें।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top