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  • अथर्ववेद - काण्ड 9/ सूक्त 2/ मन्त्र 1
    सूक्त - अथर्वा देवता - कामः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - काम सूक्त

    सपत्न॒हन॑मृष॒भं घृ॒तेन॒ कामं॑ शिक्षामि ह॒विषाज्ये॑न। नी॒चैः स॒पत्ना॒न्मम॑ पादय॒ त्वम॒भिष्टु॑तो मह॒ता वी॒र्येण ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स॒प॒त्न॒ऽहन॑म् । ऋ॒ष॒भम् । घृ॒तेन॑ । काम॑म् । शि॒क्षा॒मि॒ । ह॒विषा॑ । आज्ये॑न । नी॒चै: । स॒ऽपत्ना॑न् । मम॑ । पा॒द॒य॒ । त्वम् । अ॒भिऽस्तु॑त: । म॒ह॒ता । वी॒र्ये᳡ण ॥२.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सपत्नहनमृषभं घृतेन कामं शिक्षामि हविषाज्येन। नीचैः सपत्नान्मम पादय त्वमभिष्टुतो महता वीर्येण ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सपत्नऽहनम् । ऋषभम् । घृतेन । कामम् । शिक्षामि । हविषा । आज्येन । नीचै: । सऽपत्नान् । मम । पादय । त्वम् । अभिऽस्तुत: । महता । वीर्येण ॥२.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 2; मन्त्र » 1

    पदार्थ -

    १. (सपत्नहनम्) = शत्रुओं के विनाशक (ऋषभम्) = शक्तिशाली (कामम्) = कमनीय [कामना के योग्य] प्रभु को (घृतने) = मलों का क्षरण व ज्ञानदीसि से, (हविषा) = दानपूर्वक अदन की वृत्ति से तथा (आज्येन) = [to honour, celebrate] भक्तिपूर्वक आदृत करने से (शिक्षामि) = प्राप्त करने के लिए मैं यनशील होता हूँ। २. हे प्रभो! (अभिष्टुतः त्वम्) = प्रात:-सायं मेरे द्वारा स्तुत होते हुए आप (महता वीर्येण) = महान् पराक्रम के साथ (मम सपत्नान्) = मेरे शत्रुओं को (नीचैः पादय) = पादाक्रान्त कर दीजिए [नीचे पहुँचा दीजिए]।

    भावार्थ -

    हम 'मलों को दूर करने, ज्ञान प्राप्त करने, दानपूर्वक अदन तथा भक्तिपूर्वक स्मरण' करने के द्वारा प्रभु को प्राप्त करने का प्रयत्न करें। प्रभु हमारे शत्रुओं को नष्ट करने के लिए हमें महान् पराक्रमवाला बनाएँगे।

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