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  • अथर्ववेद - काण्ड 9/ सूक्त 2/ मन्त्र 18
    सूक्त - अथर्वा देवता - कामः छन्दः - जगती सूक्तम् - काम सूक्त

    यथा॑ दे॒वा असु॑रा॒न्प्राणु॑दन्त॒ यथेन्द्रो॒ दस्यू॑नध॒मं तमो॑ बबा॒धे। तथा॒ त्वं का॑म॒ मम॒ ये स॒पत्ना॒स्तान॒स्माल्लो॒कात्प्र णु॑दस्व दू॒रम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यथा॑ । दे॒वा: । असु॑रान् । प्र॒ऽअनु॑दन्त । यथा॑ । इन्द्र॑: । दस्यू॑न् । अ॒ध॒मम् । तम॑: । ब॒बा॒धे । तथा॑ । त्वम् । का॒म॒ । मम॑ । ये । स॒ऽपत्ना॑: । तान् । अ॒स्मात् । लो॒कात् । प्र । नु॒द॒स्व॒ । दू॒रम् ॥२.१८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यथा देवा असुरान्प्राणुदन्त यथेन्द्रो दस्यूनधमं तमो बबाधे। तथा त्वं काम मम ये सपत्नास्तानस्माल्लोकात्प्र णुदस्व दूरम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यथा । देवा: । असुरान् । प्रऽअनुदन्त । यथा । इन्द्र: । दस्यून् । अधमम् । तम: । बबाधे । तथा । त्वम् । काम । मम । ये । सऽपत्ना: । तान् । अस्मात् । लोकात् । प्र । नुदस्व । दूरम् ॥२.१८॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 2; मन्त्र » 18

    पदार्थ -

    १. (यथा) = जैसे (देवा:) = देववृत्ति के पुरुषों ने (असुरान्) = आसुरभावों को-अपने ही प्राणपोषण, अर्थात् स्वार्थ के भावों को (प्राणुदन्त) = परे धकेल दिया। (यथा) = जिस प्रकार (इन्द्रः) = एक जितेन्द्रिय पुरुष ने (दस्यून्) = दास्यव वृत्तियों को-औरों के विनाश की वृत्तियों [काम, क्रोध, लोभ आदि] को (अधरमं तमः बबाधे) = घने अँधेरे में पहुँचा दिया, हे (काम) = कमनीय प्रभो! तथा उसी प्रकार (त्वम्) = आप (तान्) = उन्हें (अस्मात् लोकात्) = इस लोक से (दूरं प्रणुदस्व) = दूर धकेल दें, (ये) = जोकि (मम सपत्ना:) = मेरे शत्रु हैं।

    भावार्थ -

    जिस प्रकार देव स्वार्थ के भावों से ऊपर उठते हैं, जिस प्रकार एक जितेन्द्रिय पुरुष विनाश की वृत्तियों [काम, क्रोध, लोभ] से दूर रहता है, उसी प्रकार प्रभुकृपा से मैं उन असुरों व दस्युओं को अपने से दूर कर पाऊँ।

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