Loading...

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 9/ सूक्त 2/ मन्त्र 19
    सूक्त - अथर्वा देवता - कामः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - काम सूक्त

    कामो॑ जज्ञे प्रथ॒मो नैनं॑ दे॒वा आ॑पुः पि॒तरो॒ न मर्त्याः॑। तत॒स्त्वम॑सि॒ ज्याया॑न्वि॒श्वहा॑ म॒हांस्तस्मै॑ ते काम॒ नम॒ इत्कृ॑णोमि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    काम॑: । ज॒ज्ञे॒ । प्र॒थ॒म: । न । ए॒न॒म् । दे॒वा: । आ॒पु॒: । पि॒तर॑: । न । मर्त्या॑: । तत॑: । त्वम् । अ॒सि॒ । ज्याया॑न् । वि॒श्वहा॑ । म॒हान् । तस्मै॑ । ते॒ । का॒म॒ । नम॑: । इत् । कृ॒णो॒मि॒ ॥२.१९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    कामो जज्ञे प्रथमो नैनं देवा आपुः पितरो न मर्त्याः। ततस्त्वमसि ज्यायान्विश्वहा महांस्तस्मै ते काम नम इत्कृणोमि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    काम: । जज्ञे । प्रथम: । न । एनम् । देवा: । आपु: । पितर: । न । मर्त्या: । तत: । त्वम् । असि । ज्यायान् । विश्वहा । महान् । तस्मै । ते । काम । नम: । इत् । कृणोमि ॥२.१९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 2; मन्त्र » 19

    पदार्थ -

    १.(काम:) = वह कमनीय प्रभु (प्रथम: जज्ञे) = सबसे पूर्व प्रादुर्भूत हुए-हुए हैं-वे सबसे प्रथम स्थान पर हैं, अग्नि हैं-अग्रणी। प्रभु सब गुणों की चरम सीमा ही तो हैं, अतः वे प्रथम हैं। श्रेष्ठता में (एनम्) = इस प्रभु को (न) = न तो (देवा:) = देव [ज्ञानी ब्राह्मण] (आपु:) = प्राप्त कर पाते हैं, (न पितरः मर्त्याः) = न ही रक्षणात्मक कर्मों में प्रवृत्त पितर [क्षत्रिय] तथा धन-धान्यादि के अर्जन में प्रवृत्त मनुष्य [वैश्य] पा सकते हैं। २. (तत:) = इसप्रकार हे प्रभो! (त्वम्) = आप (ज्यायान्) = सबसे अधिक प्रशस्य (असि) = हैं, (विश्वहा) = सदा (महान्) = महनीय हैं। हे (काम) = कमनीय प्रभो! (तस्मै ते) = उन आपके लिए (इत्) = निश्चय से (नमः कृणोमि) = मैं नमस्कार करता हूँ-मैं आपके प्रति नतमस्तक होता है।

    भावार्थ -

    प्रभु सर्वप्रथम हैं। ऊँचे-से-ऊँचा ज्ञानी ब्राह्मण, क्षत्रिय व वैश्य भी प्रभु के समान नहीं। उस सदा प्रशस्त व महान् के लिए मैं नतमस्तक होता हूँ।

     

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top