ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 44/ मन्त्र 2
ऋषिः - शंयुर्बार्हस्पत्यः
देवता - इन्द्र:
छन्दः - स्वराडुष्णिक्
स्वरः - ऋषभः
यः श॒ग्मस्तु॑विशग्म ते रा॒यो दा॒मा म॑ती॒नाम्। सोमः॑ सु॒तः स इ॑न्द्र॒ तेऽस्ति॑ स्वधापते॒ मदः॑ ॥२॥
स्वर सहित पद पाठयः । श॒ग्मः । तु॒वि॒ऽश॒ग्म॒ । ते॒ । रा॒यः । दा॒मा । म॒ती॒नाम् । सोमः॑ । सु॒तः । सः । इ॒न्द्र॒ । ते॒ । अस्ति॑ । स्व॒धा॒ऽप॒ते॒ मदः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
यः शग्मस्तुविशग्म ते रायो दामा मतीनाम्। सोमः सुतः स इन्द्र तेऽस्ति स्वधापते मदः ॥२॥
स्वर रहित पद पाठयः। शग्मः। तुविऽशग्म। ते। रायः। दामा। मतीनाम्। सोमः। सुतः। सः। इन्द्र। ते। अस्ति। स्वधाऽपते मदः ॥२॥
ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 44; मन्त्र » 2
अष्टक » 4; अध्याय » 7; वर्ग » 16; मन्त्र » 2
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अष्टक » 4; अध्याय » 7; वर्ग » 16; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनर्मनुष्याः किं कुर्य्युरित्याह ॥
अन्वयः
हे तुविशग्म स्वधापत इन्द्र ! यस्ते शग्मो रायो मतीनां दामा सुतो मदः सोमोऽस्ति स ते धर्मकीर्तिङ्करोतु ॥२॥
पदार्थः
(यः) (शग्मः) शग्मं सुखं विद्यते यस्य सः। अर्शआदिभ्योऽच्। शग्ममिति सुखनाम। (निघं०३.६) (तुविशग्म) तुवि बहुविधानि शग्मानि सुखानि यस्य तत्सम्बुद्धौ (ते) तव (रायः) धनानि (दामा) दातुं योग्यः (मतीनाम्) मननशीलानाम् (सोमः) ऐश्वर्य्यसमूहः (सुतः) निष्पन्नः प्राप्तः (सः) (इन्द्र) महैश्वर्य्ययुक्त (ते) तव (अस्ति) (स्वधापते) अन्नादीनां स्वामिन् (मदः) आनन्दकरः ॥२॥
भावार्थः
ये मनुष्या धनाद्यैश्वर्येण धर्मविद्ये उन्नयन्ति त एव बहुसुखधना भवन्ति ॥२॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर मनुष्य क्या करें, इस विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (तुविशग्म) अनेक प्रकार के सुखोंवाले (स्वधापते) अन्न आदिकों के स्वामिन् (इन्द्र) अत्यन्त ऐश्वर्य्य से युक्त ! (यः) जो (ते) आपका (शग्मः) सुखयुक्त (रायः) धनों को (मतीनाम्) विचारशीलों को (दामा) देने योग्य (सुतः) उत्पन्न किया गया (मदः) आनन्दकारक (सोमः) ऐश्वर्य्यों का समूह (अस्ति) है (सः) वह (ते) आपके धर्म्म की कीर्ति करनेवाला हो ॥२॥
भावार्थ
जो मनुष्य धन आदि ऐश्वर्य्य से धर्म्म और विद्या की उन्नति करते हैं, वे ही बहुत सुख और धनवाले होते हैं ॥२॥
विषय
उसके कर्त्तव्य ।
भावार्थ
हे ( तुवि-शम्म ) बहुत से सुखों से पूर्ण प्रभो ! राजन् ! ( यः ) जो ( ते ) तेरा ( शग्म: ) शान्तिदायक, ( सोमः ) ऐश्वर्य, युक्त राष्ट्र ( मतीनाम् ) मननशील, बुद्धिमान् पुरुषों को ( रायः दाभा ) नाना ऐश्वर्य प्रदान करता है हे (स्वधापते ) हे अन्नपते ! वह सब राष्ट्रैश्वर्य ( ते सुतः ) तेरे लिये समृद्ध होकर ( मदः अस्ति ) तुझे हर्षदायक हो ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
शंयुर्बार्हस्पत्य ऋषिः ॥ इन्द्रो देवता॥ छन्दः – १, ३, ४ निचृदनुष्टुप् । २, ५ स्वराडुष्णिक् । ६ आसुरी पंक्ति: । ७ भुरिक् पंक्तिः । ८ निचृत्पंक्तिः । ९, १२, १६ पंक्तिः । १०, ११, १३, २२ विराट् त्रिष्टुप् । १४, १५, १७, १८, २०, २४ निचृत्त्रिष्टुप् । १९, २१, २३ त्रिष्टुप् ।। चतुर्विंशत्यृचं सूक्तम् ।।
विषय
शग्मः, रायः मतीनां दामा
पदार्थ
[१] हे (तुविशग्म) = महान् सुखवाले प्रभो! (ते) = आपका (सुतः स सोमः) = उत्पन्न हुआ हुआ यह सोम (शग्मः) = सुखों को देनेवाला है । (सः) = वह (ते) = आपका सोम (रायः) = ऐश्वर्य का व (मतीनाम्) = बुद्धियों का (दामा) = दाता है । [२] हे (इन्द्र) = शत्रुविद्रावक प्रभो ! (स्वधापते) = हे आत्मधारणशक्ति के स्वामिन् ! यह आपका (सोमः) = सोम (मदः) = उल्लास का जनक (अस्ति) है ।
भावार्थ
भावार्थ- सुरक्षित सोम सुख का जनक है, बुद्धियों का वर्धक है, उल्लास का जनक है।
मराठी (1)
भावार्थ
जी माणसे धन इत्यादी ऐश्वर्याद्वारे धर्म व विद्येची उन्नती करतात तीच अत्यंत सुखी व धनवान असतात. ॥ २ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Indra, O mighty lord most kind, master of your own power and potential, that exciting peace and pleasure of life created, those gifts of wealth showered on rational humanity, the exuberance of munificence, all is yours, for your own pleasure and ecstasy, and rendered back to you in homage and gratitude.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
What should men do-is told.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O (endowed with abundant wealth) king! you are the possessor of much happiness and lord of food, may the abundant wealth which has been acquired by you, which is giver of happiness and worthy of being given to thoughtful, wise persons, increase your glory or reputation regarding your Dharma or righteousness. May it be giver of delight to the wise.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
Those men, who advance the cause of Dharma (righteousness) and Vidya (true knowledge) by the help of the wealth they possess, enjoy much happiness and wealth.
Foot Notes
(तुविशग्म) तुवि बहुविधानि शग्मानि सुखानि यस्य तत्सम्बुद्धौ । तुवि इति बहुनाम (NG. 3, 1 ) : शग्मम् इति सुखनाम (NG 3,6):। = Having much happiness. (दामा) दातु योग्य: । = Worth giving.
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