Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 34 के मन्त्र
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 34/ मन्त्र 4
    ऋषिः - नीपातिथिः काण्वः देवता - इन्द्र: छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः

    आ त्वा॒ कण्वा॑ इ॒हाव॑से॒ हव॑न्ते॒ वाज॑सातये । दि॒वो अ॒मुष्य॒ शास॑तो॒ दिवं॑ य॒य दि॑वावसो ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । त्वा॒ । कण्वाः॑ । इ॒ह । अव॑से । हव॑न्ते । वाज॑ऽसातये । दि॒वः । अ॒मुष्य॑ । शास॑तः । दिव॑म् । य॒य । दि॒वा॒व॒सो॒ इति॑ दिवाऽवसो ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आ त्वा कण्वा इहावसे हवन्ते वाजसातये । दिवो अमुष्य शासतो दिवं यय दिवावसो ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ । त्वा । कण्वाः । इह । अवसे । हवन्ते । वाजऽसातये । दिवः । अमुष्य । शासतः । दिवम् । यय । दिवावसो इति दिवाऽवसो ॥ ८.३४.४

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 34; मन्त्र » 4
    अष्टक » 6; अध्याय » 3; वर्ग » 11; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    इंग्लिश (1)

    Meaning

    The sages call you here for the art and science of defence and protection and for the victories of peace and progress. And from the light and wisdom of the enlightening sages, O lover and ruler of the light of day, rise to the light and heaven of your own imagination.

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (1)

    भावार्थ

    सद्गुणाच्या साधक माणसा! हे तुझे सौभाग्य आहे की, बुद्धिमान विद्वानांनी आपल्या गुणवर्णनाच्या श्रोत्याच्या रूपात तुझा स्वीकार केलेला आहे. ही संधी तू सोडू नकोस ॥४॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (कण्वाः) स्तोता विद्वान् ( इह) इस जीवनयज्ञ में (वाजसातये) ज्ञानादि बल प्राप्त कराने और (अवसे) रक्षा प्रदान करने को (त्वा) तुझे (आ हवन्ते) स्वीकारते हैं। शेष पूर्ववत्॥४॥

    भावार्थ

    सद्गुण साधक! तेरा यह सौभाग्य है कि बुद्धिमान् विद्वानों ने अपने गुणवर्णन के श्रोता के स्वरूप तुझे स्वीकारा है; इस अवसर पर चूक न कर॥४॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    उनके कर्त्तव्य।

    भावार्थ

    हे विद्वन् ! गुरो ! ( कण्वाः ) विद्वान् बुद्धिमान् पुरुष (इह) इस आश्रम में ( वाज-सातये ) ज्ञान प्राप्त करने और ( अवसे ) रक्षा के लिये (त्वा आ हवन्ते) तुझे आदरपूर्वक प्रार्थना करते हैं।

    टिप्पणी

    ( दिवः अमुष्य ० ) इत्यादि पूर्ववत्।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    नीपातिथि: काण्वः। १६—१८ सहस्रं वसुरोचिषोऽङ्गिरस ऋषयः॥ इन्द्रो देवता॥ छन्दः—१, ३, ८, १०, १२, १३, १५ निचृदनुष्टुप्। २, ४, ६, ७, १ अनुष्टुप्। ५, ११, १४ विराडनुष्टुप्। १६, १८ निचृद्गायत्री । १७ विराङ् गायत्री॥ अष्टादशर्चं सूक्तम्॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    अवसे वाजसातये

    पदार्थ

    (१) हे प्रभो ! गत मन्त्र के अनुसार शासन में चलते हुए (कण्वा) = मेधावी पुरुष (त्वा) = आपको (इह) = इस जीवन में (अवसे) = रक्षण के लिये तथा (वाजसातये) = शक्ति की प्राप्ति के लिये (आहवन्ते) = पुकारते हैं। प्रभु की आराधना ही हमें वासनाओं के आक्रमण से बचाती है और शक्ति को प्राप्त कराती है। (२) हे ज्ञानधन जीव ! तू उस प्रकाशमय शासक के प्रकाश को प्राप्त कर ।

    भावार्थ

    भावार्थ - मेधावी पुरुष रक्षण के लिये व शक्ति की प्राप्ति के लिये प्रभु को पुकारते हैं। ये ज्ञानधन पुरुष प्रभु के प्रकाश को पाने के लिये यत्नशील होते हैं।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top