यजुर्वेद - अध्याय 34/ मन्त्र 38
ऋषिः - वसिष्ठ ऋषिः
देवता - भगवान् देवता
छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
151
भग॑ऽए॒व भग॑वाँ२ऽअस्तु देवा॒स्तेन॑ व॒यं भग॑वन्तः स्याम।तं त्वा॑ भग॒ सर्व॒ऽइज्जो॑हवीति॒ स नो॑ भग पुरऽए॒ता भ॑वे॒ह॥३८॥
स्वर सहित पद पाठभगः॑। ए॒व। भग॑वा॒निति॒ भग॑ऽवान्। अ॒स्तु॒। दे॒वाः॒। तेन॑। व॒यम्। भग॑वन्त॒ इति॒ भग॑ऽवन्तः। स्या॒म॒ ॥ तम्। त्वा॒। भ॒ग॒। सर्वः॑। इत्। जो॒ह॒वी॒ति॒। सः। नः॒। भ॒ग॒। पु॒र॒ऽए॒तेति॑ पुरःऽए॒ता। भ॒व॒। इ॒ह ॥३८ ॥
स्वर रहित मन्त्र
भगऽएव भगवाँऽअस्तु देवास्तेन वयम्भगवन्तः स्याम । तन्त्वा भग सर्व इज्जोहवीति स नो भग पुरएता भवेह ॥
स्वर रहित पद पाठ
भगः। एव। भगवानिति भगऽवान्। अस्तु। देवाः। तेन। वयम्। भगवन्त इति भगऽवन्तः। स्याम॥ तम्। त्वा। भग। सर्वः। इत्। जोहवीति। सः। नः। भग। पुरऽएतेति पुरःऽएता। भव। इह॥३८॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह॥
अन्वयः
हे देवाः! यो भग एव भगवानस्तु तेन वयं भगवन्तः स्याम। हे भग! तं त्वा सर्व इज्जोहवीति। भग! स त्वमिह नः पुरएता भव॥३८॥
पदार्थः
(भगः) भजनीयः सेवनीयः (एव) (भगवान्) प्रशस्तैश्वर्ययुक्तः (अस्तु) भवतु (देवाः) विद्वांसः (तेन) भगस्वरूपेण भगवता परमेश्वरेण सह (वयम्) (भगवन्तः) सकलशोभायुक्तः (स्याम) भवेम (तम्) (त्वा) त्वाम् (भग) अखिलशोभायुक्त! (सर्वः) अखिलो जनः (इत्) एव (जोहवीति) भृशमाह्वयति (सः) (नः) अस्माकम् (भग) सकलैश्वर्यप्रद! (पुरएता) यः पुरस्तातेति सः (भव) (इह)॥३८॥
भावार्थः
हे मनुष्याः! यूयं यः सकलैश्वर्यसम्पन्नः परमेश्वरस्तेन ये चास्योपासका विद्वांसस्तैस्सह सिद्धाः श्रीमन्तश्च भवत। यो जगदीश्वरो मातापितृवदस्मासु कृपयति तद्भक्तिपुरःसरेणेह मनुष्यानैश्वर्यवतः सततं कुरुत॥३८॥
हिन्दी (5)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
हे (देवाः) विद्वान् लोगो! जो (भगः, एव) सेवनीय ही (भगवान्) प्रशस्त ऐश्वर्ययुक्त (अस्तु) होवे (तेन) उस ऐश्वर्ययुक्त ऐश्वर्यवाले परमेश्वर के साथ (वयम्) हम लोग (भगवन्तः) समग्र शोभायुक्त (स्याम) होवें। हे (भग) सम्पूर्ण शोभायुक्त ईश्वर! (तम्, त्वा) उन आपको (सर्वः, इत्) समस्त ही जन (जोहवीति) शीघ्र पुकारता है। हे (भग) सकल ऐश्वर्य के दाता! (सः) सो आप (इह) इस जगत् में (नः) हमारे (पुरएता) अग्रगामी (भव) हूजिये॥३८॥
भावार्थ
हे मनुष्यो! तुम लोग जो समस्त ऐश्वर्य से युक्त परमेश्वर है, उनके और जो उसके उपासक विद्वान् हैं, उनके साथ सिद्ध तथा श्रीमान् होओ। जो जगदीश्वर माता-पिता के समान हम पर कृपा करता है, उसकी भक्तिपूर्वक इस संसार में मनुष्यों को ऐश्वर्यवाले निरन्तर किया करो॥३८॥
पदार्थ
पदार्थ = हे ( देवाः ) = विद्वान् महापुरुषो ! ( भगः ) = सबके भजनीय सेवनीय परमेश्वर ( एव ) = ही ( भगवान् अस्तु ) = हमारा सबका पूज्य इष्ट देव हो । ( तेन वयम् ) = उस देव की कृपा से हम सब ( भगवन्तः स्याम ) = भाग्यवान् हों । ( तम् त्वा ) = उस आप भगवान् को, हे ( भग ) = भगवन् ! ( सर्व इत् ) = समस्त जन भी ( जोहवीति ) = बार-बार स्मरण करता है । हे ( भग ) = भगवन् ! ( इह ) = इस जगत् में ( सः नः ) = वह आप हमारे ( पुरः एता ) = अग्रगामी अर्थात् सबके नायक लीडर वा नेता ( भव ) = होवें ।
भावार्थ
भावार्थ = हे महात्मा विद्वान् महापुरुषो! हम सबका पूजनीय इष्ट देव, सर्वशक्तिमान् जगदीश्वर ही होना चाहिए, न कि जड़ पदार्थ वा कोई जल, स्थल वा जन्मता मरता कोई मनुष्य या पशु पक्षी । आप महापुरुष विद्वानों की कृपा से साधारण पुरुष भी प्रभु का भक्त बनकर भाग्यशाली बन जाता है और अनेक पुरुषों का कल्याण करता है । हे परमेश्वर ! आपकी महती कृपा से, पुरुष विद्वान् और आपका सच्चा भक्त बनकर, अनेक पुरुषों को आपका भक्त बनाकर संसार से उनका उद्धारकर्ता बन जाता है । यह सब आपकी कृपा का ही प्रताप है।
विषय
प्रार्थनाविषयः
व्याखान
हे सर्वाधिपते ! महाराजेश्वर ! आप (भग:) परमैश्वर्यस्वरूप होने से भगवान् हो। हे (देवाः) विद्वानो ! (तेन) [भगवतेश्वरेण प्रसन्नेन तत्सहायनैव] उस भगवान्= प्रसन्न ईश्वर के सहाय से (वयं, भगवन्तः स्याम) हम लोग परमैश्वर्ययुक्त हों। हे (भग) परमेश्वर ! (सर्वः) सर्वसंसार (तन्त्वा) उन आपको ही (जोहवीति) ग्रहण करने की अत्यन्त इच्छा करता है, क्योंकि कौन ऐसा भाग्यहीन मनुष्य है जो आपको प्राप्त होने की इच्छा न करे, सो (सः नः) 1. आप हमको (पुर एता भवेह) प्रथम से प्राप्त हों, फिर कभी हमसे आप दूर न हों और ऐश्वर्य भी हमसे अलग न हो। आप अपनी कृपा से इसी जन्म में परमैश्वर्य का यथावत् भोग हम लोगों को करावें और आपकी सेवा में हम नित्य तत्पर रहें ॥ ४५ ॥
टिपण्णी
१. प्रथम से प्राप्त हों - सदैव प्राप्त हों ।
विषय
प्रातः उपासना ।
भावार्थ
हे (देवा:) देवगण, विजयशील एवं विद्वान् पुरुषो ! (भगः ) सबके भजन करने योग्य परमेश्वर और ऐश्वर्यवान् पुरुष ही ( भगवान् अस्तु) समस्त ऐश्वर्यों का स्वामी हो । (तेन) उसके द्वारा ( वयम ) हम भी (भगवन्तः स्याम) ऐश्वर्यवान् हों । हे (भग) ऐश्वर्यवन् ! ( सर्व इत् ) समस्त जन भी (तं त्वा) उस तुझे ही (जोहवीति) बार बार तेरा ही स्मरण करता, तुझे ही पुकारता है । हे (भग) ऐश्वर्यवन् परमेश्वर ! राजन् ! ( इह ) इस लोक में (सः) वह तू (नः) हमारे (पुरः एता) आगे चलने हारा, नायक (भव) हो ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठः । भगवान् । निचृत् त्रिष्टुप् । धैवतः ॥
विषय
प्रभु ही हमारा ऐश्वर्य हो
पदार्थ
१. हे (देवाः) = देवो! आप ऐसी कृपा करो कि (भगवान् एव) = प्रभु ही (भगः अस्तु) = हमारे ऐश्वर्य हों, अर्थात् हम भगवान् को ही अपना भग बनाएँ, प्रभु-प्राप्ति को ही सच्चा ऐश्वर्य समझें । (तेन) = उस प्रभु से ही (वयम्) = हम (भगवन्तः) = भगवाले (स्याम) = हों। प्रभु ही हमारा धन हों। हम 'आत्मक्रीड व आत्मरति' बन पाएँ। हम 'आत्मन्येव च संतुष्ट : ' - आत्मतत्त्व को पाकर ही सन्तुष्ट हों । २. हे (भग) = सब ऐश्वयों के पुञ्ज प्रभो! (तम् त्वा) = उस आपको (सर्व इत्) = सर्व ही (जोहवीति) = पुकारता है। प्रभु की सच्ची आराधना वही करता है जो 'सर्व' बनता है। सर्व बनने का अभिप्राय 'शरीर, मन व मस्तिष्क' तीनों की उन्नति करने से है। केवल स्वस्थ पुरुष, केवल बुरी भावना से रहित पुरुष, किसी का बुरा चिन्तन न करनेवाला पुरुष तथा ज्ञान से भरे मस्तिष्कवाला पुरुष भी प्रभु का सच्चा उपासक नहीं। सच्चा उपासक तो वही है जो तीनों उन्नतियों की साधना करके 'सर्व' बनने का प्रयत्न करता है। ३. हे (भग) = सेवनीय, उपासनीय प्रभो! (सः) = वे आप (इह) = इस मानव जीवन में (नः) = हमारे पुर (एता) = आगे चलनेवाले (भव) = होओ। आप हमारे नेता हों, हम आपके अनुयायी हों। हमारे पथ-प्रदर्शक आप ही हों।
भावार्थ
भावार्थ- हम प्रभु को ही अपना सच्चा धन मानें।
मराठी (3)
भावार्थ
हे माणसांनो ! ऐश्वर्ययुक्त परमेश्वर व त्याचे विद्वान उपासक यांच्यासमवेत ऐश्वर्यवान बना. जो जगदीश्वर माता व पिता यांच्याप्रमाणे आपल्यावर कृपा करतो त्याची भक्ती करून माणसांचे ऐश्वर्य वाढवा.
विषय
पुन्हा त्याच विषयी -
शब्दार्थ
शब्दार्थ - हे (देवाः) विद्वज्जनहो, आमच्यासाठी तो (भग, एन) सेवनीय वा पूजनीय (ईश्वरच) (भगवान्) समग्र ऐश्वर्यवान वा ऐश्वर्यदाता (अस्तु) व्हावा. (तेन) त्या ऐश्वर्यवान परमेश्वरामुळे वा त्याने दिलेल्या ऐश्वर्यामुळे (वयम्) आम्ही (उपासकगण) (भगवन्तः) समस्त शोभावान (स्याम) व्हावेत (वा होऊ या) समग्र ऐश्वर्ययुक्त परमेश्वर. (तम्, तवा) अशा त्या आपणास (सर्वं, इत्) सर्वच जण (जोहवीति) त्वरीत बोलावीत आहेत. हे (भग) समग्र ऐश्वर्यदाता, (सः) ते आपण (इह) या जगी (नः) आमच्या (रक्षण व पालनासाठी) (पुर, एताः) पुढे येणारे (भव) व्हा. ॥38॥
भावार्थ
भावार्थ - हे मनुष्यांनो, तुम्ही समग्र ऐश्वर्यवान परमेश्वरासह तसेच जे त्याचे उपासक आहेत त्या विद्वानांसह पुरुषार्थी व श्रीमान व्हा. तो परमेश्वर आम्हा सर्वांवर आईवडिलाप्रमाणे कृपा करतो. तुम्ही त्याची भक्ती करीत. या जगात सर्व मनुष्यांना ऐश्वर्यवान होण्यासाठी निरंतर यत्न करीत रहा ॥38॥
विषय
स्तुती
व्याखान
हे सर्व लोकांच्या अधिपति महाराजेश्वरा ! तू (भगः) म्हणजे परम ऐश्वर्यस्वरूप असल्यामुळे भगवान आहेस. (देवाः) हे विद्वानांनो! (तेन) [भगवतेश्वरेण प्रसन्नेन तत्सहायनैव] त्या प्रसन्न ईश्वराच्या साह्याने आम्ही परमऐश्वर्यवान व्हावे. हे (भगः) परमेश्वरा! (तन्त्वा) सर्व जग तुला प्राप्त करण्याची इच्छा करते, कारण कोण असा दुर्दैवी आहे जो तुझ्या प्राप्तीची इच्छा करणार नाही? त्यासाठी तू प्रथम आम्हाला भेट म्हणजे तू ब तुझे ऐश्वर्य आमच्यापासून कधीच दूर होणार नाही. याच जन्मात परत ऐश्वर्याचा यथायोग्य भोग देण्याची कृपा कर, पुढील जन्मी तर कर्मानुसार फळ मिळेलच. म्हणून आम्ही नित्य तुझ्या सेवेत तत्पर असोव. ॥४५॥
इंग्लिश (4)
Meaning
O learned persons, God verily is Supreme. May we become supreme through Him. O God, all invoke Thee. O Supreme God, be Thou our leader in this world.
Meaning
Masters of wisdom and brilliance, the Lord creator of the glorious universe alone is the Lord Supreme of honour and prosperity. May we be prosperous by virtue of His generosity. Lord of honour and glory, the entire humanity invokes, adores and worships you only. Lord giver of honour and prosperity, may you be our guide, inspire us and lead us to prosperity.
Purport
O the Sovereign of all ! O King of kings ! By nature You are the possessor of immense e wealth, hence you are Bhagwan. O the wisemen ! By the grace and help of that Lord who is all bliss and free from all pains and sorrows, we should also be the possessor of immense wealth.
O the Bounteous Lord! The whole world-the human beings who dwell in the world are most earnestly and intently eager to find and to realise you, because there is none so unfortunate in the world who does not want to attain You. Kindly, always be accessible to us all. After being realised once, we may not be separated form You. Moreover we may not be deprived from our wealth. By Your Grace enable us, in this very birth, to enjoy the Supreme wealth and bliss of final emancipation and we should be ever devoted in Your holy service.
Translation
O gracious Lord, possessor of graces you are; through you, may we obtain the graces. Every one, verily, repeatedly invokes you. O gracious Lord, may you be our champion at this solemnity. (1)
बंगाली (2)
विषय
পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
পুনঃ সেই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ- হে (দেবাঃ) বিদ্বান্গণ ! যিনি (ভগ, এব) সেবনীয় (ভগবান্) প্রশস্ত ঐশ্বর্য্যযুক্ত (অস্তু) হইবেন (তেন) সেই ঐশ্বর্য্যরূপ ঐশ্বর্য্যসম্পন্ন পরমেশ্বর সহ (বয়ম্) আমরা (ভগবন্তঃ) সমগ্র শোভাযুক্ত (স্যাম) হইব । হে (ভগ) সম্পূর্ণ শোভাযুক্ত ঈশ্বর ! (তম্ ত্বা) সেই আপনাকে (সর্বঃ, ইৎ) সমস্তই ব্যক্তি (জোহবীতি) শীঘ্র আহ্বান করে । হে (ভগ) সকল ঐশ্বর্য্য প্রদাতা (সঃ) সুতরাং আপনি (ইহ) এই জগতে (নঃ) আমাদের (পুর এতা) অগ্রগামী (ভব) হউন ॥ ৩৮ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ- হে মনুষ্যগণ ! তোমরা যে সমস্ত ঐশ্বর্য্য দ্বারা যুক্ত পরমেশ্বর, তাঁহার এবং যাহারা তাঁহার উপাসক বিদ্বান্, তাহাদের সহ সিদ্ধ ও শ্রীমান্ হও, যে জগদীশ্বর মাতা-পিতার সমান আমাদের উপর কৃপা করেন, তাঁহার ভক্তিপূর্বক এই সংসারে মনুষ্যদিগকে ঐশ্বর্য্য সম্পন্ন নিরন্তর করিতে থাকিবে ॥ ৩৮ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
ভগ॑ऽএ॒ব ভগ॑বাঁ২ऽঅস্তু দেবা॒স্তেন॑ ব॒য়ং ভগ॑বন্তঃ স্যাম ।
তং ত্বা॑ ভগ॒ সর্ব॒ऽইজ্জো॑হবীতি॒ স নো॑ ভগ পুরऽএ॒তা ভ॑বে॒হ ॥ ৩৮ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ভগ ইত্যস্য বসিষ্ঠ ঋষিঃ । ভগবান্ দেবতা । নিচৃৎ ত্রিষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
ধৈবতঃ স্বরঃ ॥
পদার্থ
ভগঽএব ভগবাঁ২ঽঅস্তু দেবাস্তেন বয়ং ভগবন্তঃ স্যাম ।
তং ত্বা ভগ সর্বঽইজ্জোহবীতি স নো ভগ পুর এতা ভবেহ।। ৪৮।।
(যজু ৩৪।৩৮)
পদার্থঃ হে (দেবাঃ) বিদ্বান মহাপুরুষগণ! (ভগঃ) সকলের ভজনীয় সেবনীয় পরমেশ্বর (এব) ই (ভগবান্ অস্তু) আমাদের সবার পূজ্য ইষ্ট দেব। (তেন বয়ম্) সেই দেবের কৃপা দ্বারা আমরা সবাই (ভগবন্তঃ স্যাম) ঐশ্বর্যযুক্ত হই। (তম্ ত্বা) সেই তোমাকেই, হে (ভগ) ভগবান! (সর্ব ইৎ) সবাই (জোহবীতি) বারংবার স্মরণ করি। হে (ভগ) ভগবান! (ইহ) এই জগতে (সঃ নঃ) তুমিই আমাদের (পুরঃ এতা) অগ্রগামী অর্থাৎ আমাদের সবার নায়ক বা নেতা (ভব) হও ।
ভাবার্থ
ভাবার্থঃ হে মহাত্মা বিদ্বান মহাপুরুষগণ! সর্বশক্তিমান জগদীশ্বরই আমাদের সবার পূজনীয় ইষ্ট দেব হওয়া উচিত, কোনো জড় পদার্থ বা জল-স্থল বা জন্ম মৃত্যুপ্রাপ্ত কোনো মনুষ্য বা পশুপক্ষী নয়। জড় পদার্থ বা জল নয়, ভগবানের ভক্তে পরিণত হয়েই মানুষ ভাগ্যশালী হয় এবং অনেকের কল্যাণ করে। হে পরমেশ্বর! তোমার মহতী কৃপা দ্বারা মনুষ্য বিদ্বান এবং নিষ্ঠাবান ভক্তে পরিণত হয় এবং অন্যকেও তোমার ভক্তে পরিণত করে সংসার থেকে তাদের উদ্ধারকর্তায় রূপ নেয়। এই সব তোমার কৃপারই প্রভাব।।৪৮।।
नेपाली (1)
विषय
प्रार्थनाविषयः
व्याखान
हे सर्वाधिपते ! महाराजेश्वर ! तपाईं भगः= परमैश्वर्यस्वरूप हुनाले 'भगवान्', हुनुहुन्छ । हे देवाः - विद्वान् हरु ! तेन = [भगवतेश्वरेण प्रसन्नेन तत्सहायेनैव ] तेस प्रसन्न भगवान् ईश्वर को सहयोग ले नै वयं, भगवन्तः स्याम = हामीहरु परमैश्वर्य युक्त हौं । हे भग- परमेश्वर ! सर्वः=सर्व संसार तन्त्वा-हजुर तपाईंलाई नै जोहवीति =अत्यन्त ग्रहण गर्ने इच्छा गर्द छ, किन भने कुन यस्तो भाग्यहीन मनुष्य छ होला जुन तपाईंलाई प्राप्त गर्ने इच्छा गर्दैन, अतः सः नः = तपाईं हामीलाई पुर एता भवेह सदैव प्राप्त हुनु होस् हामीबाट कहिल्यै पनि टाडा न हुनु होस् । तपाईंले कृपा गरी हामीलाई यसै जन्म मा परमैश्वर्य को यथावत भोग प्राप्त गराउनु होस् र हामी तपाईंको सेवा मा नित्य तत्पर रहौं ॥ ४५॥
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