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अथर्ववेद के काण्ड - 8 के सूक्त 3 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 3/ मन्त्र 19
    ऋषिः - चातनः देवता - अग्निः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - शत्रुनाशन सूक्त
    53

    त्वं नो॑ अग्ने अध॒रादु॑द॒क्तस्त्वं प॒श्चादु॒त र॑क्षा पु॒रस्ता॑त्। प्रति॒ त्ये ते॑ अ॒जरा॑स॒स्तपि॑ष्ठा अ॒घशं॑सं॒ शोशु॑चतो दहन्तु ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्वम् । न॒: । अ॒ग्ने॒ । अ॒ध॒रात् । उ॒द॒क्त: । त्वम् । प॒श्चात् । उ॒त । र॒क्ष॒ । पु॒रस्ता॑त् । प्रति॑ । त्ये । ते॒ । अ॒जरा॑स: । तपि॑ष्ठा: । अ॒घऽशं॑सम् । शोशु॑चत: । द॒ह॒न्तु॒ ॥३.१९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्वं नो अग्ने अधरादुदक्तस्त्वं पश्चादुत रक्षा पुरस्तात्। प्रति त्ये ते अजरासस्तपिष्ठा अघशंसं शोशुचतो दहन्तु ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    त्वम् । न: । अग्ने । अधरात् । उदक्त: । त्वम् । पश्चात् । उत । रक्ष । पुरस्तात् । प्रति । त्ये । ते । अजरास: । तपिष्ठा: । अघऽशंसम् । शोशुचत: । दहन्तु ॥३.१९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 3; मन्त्र » 19
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    राजा के धर्म का उपदेश।

    पदार्थ

    (अग्ने) हे अग्नि [समान तेजस्वी राजन् !] (त्वम्) तू (नः) हमें (अधरात्) नीचे से, (उदक्तः) ऊपर से, (त्वम्) तू (पश्चात्) पीछे से (उत) और (पुरस्तात्) आगे से (रक्ष) बचा। (ते) तेरे (त्ये) वे (अजरासः) अजर (तपिष्ठाः) अत्यन्त तपानेवाले, (शोशुचतः) अत्यन्त चमकते हुए [वज्र] (अघशंसम्) बुरा चीतनेवाले को (प्रति दहन्तु) जला डालें ॥१९॥

    भावार्थ

    राजा समुद्र, आकाश, पहाड़, पृथिवी आदि के डाकुओं से बिजुली और अग्नि के शस्त्र-अस्त्रों द्वारा प्रजा की रक्षा करे ॥१९॥

    टिप्पणी

    १९−(त्वम्) (नः) अस्मान् (अग्ने) अग्निवत् तेजस्विन् राजन् (अधरात्) अधोदेशात् (उदक्तः) उदक्-तसिल्। उदग्देशात्। उपरिस्थानात् (त्वम्) (पश्चात्) (उत) अपि च (रक्ष) (पुरस्तात्) अग्रदेशात् (प्रति) प्रतिकूलम् (त्ये) ते प्रसिद्धाः (ते) तव (अजरासः) अजराः। सुदृढाः (तपिष्ठाः) तापयितृतमाः (अघशंसम्) अ० ४।२१।७। अनिष्टचिन्तकम् (शोशुचतः) म० १३। नाभ्यस्ताच्छतुः। पा० ७।१।७८। नुम्निषेधः। भृशं दीप्यमाना वज्राः (दहन्तु) भस्मसात् कुर्वन्तु ॥

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    विषय

    अघशंस का दहन

    पदार्थ

    १. हे (अग्ने) = अग्रणी प्रभो ! (त्वम्) = आप (न:) = हमें (अधरात) = नीचे से (उदक्त:) = ऊपर से'. अर्थात् दक्षिण व उत्तर से, (त्वम्) = आप ('पश्चात्) = पीछे से (उत) = और (पुरस्तात्) = सामने से', अर्थात् पश्चिम से और पूर्व से (रक्ष) = रक्षित कीजिए। २. (शोशचत:) = सर्वत्र पवित्रता व दीति का संचार करनेवाले (ते) = आपके (त्ये) = वे (अजरास:) = कभी जीर्ण न होनेवाले (तपिष्ठः) = अत्यन्त सन्तापक दण्ड (अपशंसम्) = पाप का शंसन करनेवाले को (प्रतिदहन्तु) = भस्म कर दें। आपकी फैलायी हुई ज्ञान-रश्मियों से इनकी अपशंसन की वृत्ति समाप्त हो जाए। ये ठीक मार्ग को देखकर अशुभ मार्ग से विमुख हो जाएँ। ३. राजा को भी यही चाहिए कि राष्ट्र में सत्यज्ञान के प्रसार की ऐसी व्यवस्था करे कि लोग अशुभ बातों की प्रशंसा न करते रहें।

    विशेष

    प्रभु हमें सब ओर से रक्षित करें। प्रभु का प्रकाश व प्रभु से दिये जानेवाले दण्ड अशुभ के शंसन की वृत्ति को समास करनेवाले हों।

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    भाषार्थ

    (अग्ने) अग्रणी हे प्रधानमन्त्रिन् ! (त्वम्) तू (नः) हमें (अधरात्) दक्षिण से, (उदक्तः) उत्तर से,(पश्चात्) पश्चिम से, (उत) और (पुरस्तात) पूर्व से (त्वम्) तू (रक्षा) सुरक्षित कर।(ते) तेरे (त्ये) वे (अजरासः) अजीर्ण, (तपिष्ठाः) अत्यन्त तपे, (शोशुचतः) अतः अति चमकीले शस्त्रास्त्र (प्रति) प्रत्येक (अघशंसम) पाप प्रशंसक को (दहन्तु) दग्ध कर दें।

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    विषय

    प्रजा पीडकों का दमन।

    भावार्थ

    हे (अग्ने) राजन् ! (त्वम्) तू (नः) हमारी (अधरात्) नीचे से, (उदक्तः) ऊपर से, (पश्चात्) पीछे से (उत्) और (पुरस्तात्) आगे से (रक्ष) रक्षा कर। (ते) तेरे (त्ये) वे नाना प्रकार के (शोशुचतः) अति दीप्त, चमचमाते प्रकाशमान, (अजरासः) कभी क्षीण न होने वाले, (तपिष्ठाः) संतापकारी अस्त्र शस्त्र (अघशंसम्) पाप की बात कहने वाले निन्दक, पापप्रचारक पुरुष को (प्रति दहन्तु) जला डालें।

    टिप्पणी

    (प्र०) ‘अधरादुदक्तात’ (तृ०) ‘प्रति ते ते’ इति ऋ०।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    चातन ऋषिः। अग्निर्देवता, रक्षोहणम् सूक्तम्। १, ६, ८, १३, १५, १६, १८, २०, २४ जगत्यः। ७, १४, १७, २१, १२ भुरिक्। २५ बृहतीगर्भा जगती। २२,२३ अनुष्टुभो। २६ गायत्री। षड्विंशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Destruction of the Evil

    Meaning

    Agni, fiery ruler and saviour, protect us from below, from above, from behind and from the front. Let those unaging flames of yours, burning, blazing and unsparing destroy the maligner and evil doer.

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    Translation

    O adorable leader, protect us from below, from above, from behind and also from in front. May your those never-exhausting flames, extremely he and buring all over, consume the evil plotter.

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    Translation

    Guard and protect us O ruler ! from above and from under, rescue us from behind and from before. Let your inexhaustible fierce ever-flashing anger consume the mischief-mongers.

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    Translation

    Guard us, O King, from below and above, protect us from behind and from front. May thy instruments most fierce and never wasting, glowing with fervent heat, consume the sinner!

    Footnote

    Below: South. Above: North. Behind: West. Front: East.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १९−(त्वम्) (नः) अस्मान् (अग्ने) अग्निवत् तेजस्विन् राजन् (अधरात्) अधोदेशात् (उदक्तः) उदक्-तसिल्। उदग्देशात्। उपरिस्थानात् (त्वम्) (पश्चात्) (उत) अपि च (रक्ष) (पुरस्तात्) अग्रदेशात् (प्रति) प्रतिकूलम् (त्ये) ते प्रसिद्धाः (ते) तव (अजरासः) अजराः। सुदृढाः (तपिष्ठाः) तापयितृतमाः (अघशंसम्) अ० ४।२१।७। अनिष्टचिन्तकम् (शोशुचतः) म० १३। नाभ्यस्ताच्छतुः। पा० ७।१।७८। नुम्निषेधः। भृशं दीप्यमाना वज्राः (दहन्तु) भस्मसात् कुर्वन्तु ॥

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