अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 3/ मन्त्र 21
ऋषिः - चातनः
देवता - अग्निः
छन्दः - भुरिक्त्रिष्टुप्
सूक्तम् - शत्रुनाशन सूक्त
59
तद॑ग्ने॒ चक्षुः॒ प्रति॑ धेहि रे॒भे श॑फा॒रुजो॒ येन॒ पश्य॑सि यातु॒धाना॑न्। अ॑थर्व॒वज्ज्योति॑षा॒ दैव्ये॑न स॒त्यं धूर्व॑न्तम॒चितं॒ न्योष ॥
स्वर सहित पद पाठतत् । अ॒ग्ने॒ । चक्षु॑: । प्रति॑ । धे॒हि॒ । रे॒भे । श॒फ॒ऽआ॒रुज॑: । येन॑ । पश्य॑सि । या॒तु॒ऽधाना॑न् । अ॒थ॒र्व॒ऽवत् । ज्योति॑षा । दैव्ये॑न । स॒त्यम् । धूर्व॑न्तम् । अ॒चित॑म् । नि । ओ॒ष॒ ॥३.२१॥
स्वर रहित मन्त्र
तदग्ने चक्षुः प्रति धेहि रेभे शफारुजो येन पश्यसि यातुधानान्। अथर्ववज्ज्योतिषा दैव्येन सत्यं धूर्वन्तमचितं न्योष ॥
स्वर रहित पद पाठतत् । अग्ने । चक्षु: । प्रति । धेहि । रेभे । शफऽआरुज: । येन । पश्यसि । यातुऽधानान् । अथर्वऽवत् । ज्योतिषा । दैव्येन । सत्यम् । धूर्वन्तम् । अचितम् । नि । ओष ॥३.२१॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
राजा के धर्म का उपदेश।
पदार्थ
(अग्ने) हे अग्नि [समान तेजस्वी राजन् !] (तत्) वह [क्रोधभरी] (चक्षुः) आँख (रेभे) कोलाहल मचानेवाले [शत्रु] पर (परि धेहि) डाल, (येन) जिससे (शफारुजः) शान्ति तोड़नेवाले (यातुधानान्) दुःखदायिओं को (पश्यसि) तू देखता है। (अथर्ववत्) निश्चल स्वभाववाले ऋषि के समान तू (दैव्येन) देवताओं [विद्वानों] से पाये हुए (ज्योतिषा) तेज से (सत्यम्) सत्य (धूर्वन्तम्) नाश करनेवाले (अचितम्) अचेत को (नि ओष) जला दे ॥२१॥
भावार्थ
नीतिमान् राजा विद्वानों की सम्मति से प्रजा की शान्ति में विघ्नकारी, मिथ्यावादी दुष्टों को नाश करे ॥२१॥
टिप्पणी
२१−(तत्) क्रूरम् (अग्ने) (चक्षुः) दृष्टिम् (प्रति) प्रतिकूलम् (धेहि) स्थापय (रेभे)-म० १२। शब्दायमाने कोलाहलं कुर्वाणे दुष्टे (शफारुजः) शम शान्तौ-अच् मस्य फः पृषोदरादित्वात्-इति शब्दस्तोममहानिधिः। शफ+आ+रुजो भङ्गे-क्विप्। शान्तिसम्भञ्जकान् (येन) चक्षुषा (पश्यसि) अवलोकयसि (यातुधानान्) पीडाप्रदान् (अथर्ववत्) अ० ४।१।७। निश्चलस्वभावो मुनिर्यथा (ज्योतिषा) तेजसा (दैव्येन) देवाद् यञञौ। वा० पा० ४।१।८५। देव-यञ्। देवेभ्यो विद्वद्भ्यः प्राप्तेन (सत्यम्) यथार्थम् (धूर्वन्तम्) धुर्वी हिंसायाम्-शतृ। हिंसन्तम् (अचितम्) अचेत्तारम् निर्बुद्धिम् (नि) नितराम् (ओष) उष दाहे-लोट्। दह ॥
विषय
"शफारुज, यातुधान व रेभ' पर कड़ी दृष्टि रखना
पदार्थ
१. हे (अग्ने) = राष्ट्र के अग्रणी राजन्! तू (येन) = जिस दृष्टि से (शफारुज:) = [शफा: नखा: सा०] नखों से औरों का विदारण करनेवाले (यातुधानान्) = प्रजाओं को पीड़ित करनेवाले राक्षसों को (पश्यसि) = देखता है, (तत् चक्षुः) = उस आँख को (रेभे) = व्यर्थ कोलाहल करनेवाले-पागल के समान बकनेवाले पुरुष पर भी (प्रतिधेहि) = स्थापित कर। तू राष्ट्र में 'शफारुजों, यातुधानों व रेभों' पर दृष्टि रख। ये धार्मिक प्रजा को पीड़ित करनेवाले न बन पाएँ। इनपर तेरा नियन्त्रण हो। २. (अथर्ववत्) = [न थर्व-move] कर्तव्य-पथ से विचलित न होनेवाले प्रजापति [राजा] के समान (दैव्येन ज्योतिषा) = प्रभु-प्रदत्त वेदज्ञान की ज्योति के द्वारा (सत्यं धूर्वन्तम्) = सत्य को हिंसित करनेवाले (अचितम्) = [अ चित्] इस नासमझ, कर्त्तव्यविमुख व्यक्ति को (न्योष) = तू नितरां दग्ध करनेवाला हो। ज्ञानज्योति प्राप्त करके सत्य का हिंसन न करता हुआ यह एक समझदार नागरिक बन जाए।
भावार्थ
राजा राष्ट्र में उन लोगों पर कड़ी दृष्टि रक्खे जो नखों से औरों का विदारण करते हैं, नाना प्रकार से प्रजा को पीड़ित करते हैं तथा व्यर्थ का कोलाहल मचाये रहते हैं। राजा को चाहिए कि अपने कर्तव्य में ढीला न होता हुआ, वेदज्ञान के द्वारा इन्हें समझदार बनाने का प्रयत्न करे, जिससे ये सत्य का हिंसन करने से निवृत्त हों।
भाषार्थ
(अग्ने) हे अग्रणी प्रधानमन्त्रिन् ! (येनं) जिस [चक्षुषा] चक्षु अर्थात् दृष्टि द्वारा (शफारुजः) शफ द्वारा भग्न किये जा सकने वाले (यातुधानान्) यातना देने वालों को (पश्यसि) तू देखता है, (तत् चक्षुः) उस चक्षु अर्थात् दृष्टि को (रेभे) स्तोता पर (प्रति धेहि) तू रख। (अथर्ववत्) तथा अथर्वा के सदृश (दैव्येन ज्योतिषा) दिव्य ज्योति द्वारा, (सत्यम् धूर्वन्तम) सत्य का हनन करने वाले (अचितम्) अज्ञानी को (न्योष) तू नितरां दग्ध कर।
टिप्पणी
[शफारुजः= शफ (खुर)+आरुजः (रुजो भङ्ग) (तुदादिः), अथवा "रुज हिंसायाम्" (चुरादिः)। "पदा क्षुम्पमिव स्फुरत्” (अथर्व० २०।६३।५); "शफारुजः आरुजासि" (अथर्व० २०।९४।९); "शफेन इव ओहसे" (२०।१३१।७) इन मन्त्रवाक्यों में शफारुजों का वर्णन है अर्थात् जो कि गौ के खुर के स्पर्श द्वारा भग्न कर दिये जाते हैं। रेभे= रेभ है परमेश्वर का स्तोता, स्तवन करने वाला। यह यदि कटुभाषी१ हो तो प्रधानमन्त्री जो दण्ड यातुधानों को देता है वही दण्ड इन्हें भी दे (मन्त्र ३।१२)। रेभः स्तोतृनाम (निघं० ३।१६)। अथर्ववत; अथर्वा = "थर्वतिः चरतिकर्मा, अकारः तत्प्रतिषेधः" (निरुक्त ११।२।१९) अर्थात् “अचलचित्तवृत्तिक" योगी। योगी जब "निरुद्धचित्तवृत्तिक" हो जाता है तब इसे दिव्यज्योति प्राप्त हो जाती है। उस द्वारा योगी के राजस-तामस कर्म विनष्ट हो जाते हैं। प्रधानमन्त्री की दिव्यज्योति है अन्तरिक्षीय-विद्युत्, तथा सूर्य की सप्तविध रश्मियां। इस ज्योति द्वारा वह यातुधानों तथा कटुभाषी रेभों, और सत्य के हन्ता को जला देने का दण्ड देता है। न्योष = नि (नितराम्)+उष (दाहे)]। [१. देखो (८।३।१२)।]
विषय
प्रजा पीडकों का दमन।
भावार्थ
(अग्ने) हे अग्ने ! राजन् ! तू (येन) जिस आंख से (शफ़ारुजः=शपारुजः) प्रजाजन को गालियों और निन्दाजनक वचनों से पीड़ित करनेवाले (यातुधानान्) दुष्ट प्रजापीड़क पुरुषों को (पश्यसि) देखता है, (रेभे) व्यर्थ कोलाहल करनेवाले बकवादी, पागल के समान बकने वाले पुरुष पर भी (तत्) वही (चक्षुः) सूक्ष्मदर्शी आंख (प्रतिधेहि) रख। और तू (अथर्ववत्) अहिंसक रक्षक प्रजापति के समान (दैव्येन ज्योतिषा) दैव्य, दिव्य विद्वानों की ज्ञानमय ज्योति या तेज से (सत्यम्) ठीक ठीक यथार्थ रूप से (अचितम्) अपुष्ट, निर्बल या मूर्ख, ज्ञानरहित (धूर्वन्तम्) धूर्त्तता करनेवाले, छली, कपटी, असत्यवादी या हिंसक पुरुष को (नि ओष) सब प्रकार से जला, संतप्त कर।
टिप्पणी
(द्वि०) ‘शफारुं जयेन’ इति ऋ०।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
चातन ऋषिः। अग्निर्देवता, रक्षोहणम् सूक्तम्। १, ६, ८, १३, १५, १६, १८, २०, २४ जगत्यः। ७, १४, १७, २१, १२ भुरिक्। २५ बृहतीगर्भा जगती। २२,२३ अनुष्टुभो। २६ गायत्री। षड्विंशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Destruction of the Evil
Meaning
Agni, cast the same eye of scrutiny, discrimination and dispensation upon the vociferous adversary with which you watch and sight out the irreverent maligners and evil doers. Like a yogi established in perfect inviolable peace beyond all fluctuations, with the divine light and vision of clairvoyance, light out the thoughtless fool who clouds and violates the truth and law of eternal values.
Translation
O adorable Lord, may you set that eye on the shouting (noisy) wicked, with which you trace out the tormentors, attacking with their power. May you, like the uninjurable seer, burn down the real, unconscientious killer with your divine glare.
Translation
O ruler ! keep on the peace-disturber your that watchful eye through which you watch the wickeds who trouble the people. O mighty one! like a man of firm opinion burn with wonderful over-coming power the treacherous men who ruins the truth with untruth.
Translation
Lend thou the garrulous prattler that eye, O King, wherewith thou lookest on the demons, who revile and defame others. Like a non-violent sage, with wise light of the learned, burn up the fool who ruins truth with falsehood!
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२१−(तत्) क्रूरम् (अग्ने) (चक्षुः) दृष्टिम् (प्रति) प्रतिकूलम् (धेहि) स्थापय (रेभे)-म० १२। शब्दायमाने कोलाहलं कुर्वाणे दुष्टे (शफारुजः) शम शान्तौ-अच् मस्य फः पृषोदरादित्वात्-इति शब्दस्तोममहानिधिः। शफ+आ+रुजो भङ्गे-क्विप्। शान्तिसम्भञ्जकान् (येन) चक्षुषा (पश्यसि) अवलोकयसि (यातुधानान्) पीडाप्रदान् (अथर्ववत्) अ० ४।१।७। निश्चलस्वभावो मुनिर्यथा (ज्योतिषा) तेजसा (दैव्येन) देवाद् यञञौ। वा० पा० ४।१।८५। देव-यञ्। देवेभ्यो विद्वद्भ्यः प्राप्तेन (सत्यम्) यथार्थम् (धूर्वन्तम्) धुर्वी हिंसायाम्-शतृ। हिंसन्तम् (अचितम्) अचेत्तारम् निर्बुद्धिम् (नि) नितराम् (ओष) उष दाहे-लोट्। दह ॥
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