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अथर्ववेद के काण्ड - 8 के सूक्त 3 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 3/ मन्त्र 22
    ऋषिः - चातनः देवता - अग्निः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - शत्रुनाशन सूक्त
    66

    परि॑ त्वाग्ने॒ पुरं॑ व॒यं विप्रं॑ सहस्य धीमहि। धृ॒षद्व॑र्णं दि॒वेदि॑वे ह॒न्तारं॑ भङ्गु॒राव॑तः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    परि॑ । त्वा॒ । अ॒ग्ने॒ । पुर॑म् । व॒यम् । विप्र॑म् । स॒ह॒स्य॒ । धी॒म॒हि॒ । धृ॒षत्ऽव॑र्णम् । दि॒वेऽदि॑वे । ह॒न्तार॑म् । भ॒ङ्गु॒रऽव॑त: ॥३.२२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    परि त्वाग्ने पुरं वयं विप्रं सहस्य धीमहि। धृषद्वर्णं दिवेदिवे हन्तारं भङ्गुरावतः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    परि । त्वा । अग्ने । पुरम् । वयम् । विप्रम् । सहस्य । धीमहि । धृषत्ऽवर्णम् । दिवेऽदिवे । हन्तारम् । भङ्गुरऽवत: ॥३.२२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 3; मन्त्र » 22
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    राजा के धर्म का उपदेश।

    पदार्थ

    (सहस्य) हे बल के हितकारी ! (अग्ने) तेजस्वी सेनापति ! (पुरम्) दुर्गरूप, (विप्रम्) बुद्धिमान्, (धृषद्वर्णम्) अभयस्वभाव, (भङ्गुरावतः) नाश कर्मवाले [कपटी] के (हन्तारम्) नाश करनेवाले (त्वा) तुझको (दिवेदिवे) प्रतिदिन (वयम्) हम (परि धीमहि) परिधि बनाते हैं ॥२२॥

    भावार्थ

    प्रजागण शूर वीर सेनापति पर विश्वास करके शत्रुओं के नाश करने में उससे सहायता लेवें ॥२२॥ यह मन्त्र आचुका है-अ० ७।७१।१ ॥

    टिप्पणी

    २२-अयं मन्त्रो व्याख्यातः-अ० ७।७१।१ ॥

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    विषय

    प्रभ का धारण

    पदार्थ

    १.हे (अग्ने) = परमात्मन्! (सहस्य) = शत्रुओं का मर्षण करनेवालों में उत्तम प्रभो! (वयम्) = हम (त्वा) = आपको (परिधीमहि) = अपने में धारण करते हैं, जो आप (पुरम) = [पृ पालनपुरणयो:] हमारा पालन व पूरण करनेवाले हैं। आपकी कृपा से ही हम रोगाक्रान्त शरीरोंवाले नहीं होते और आपकी कृपा से ही हमारे मन हीन भावनाओं से रहित रहते हैं। आप विप्रम-ज्ञान देकर हमारा विशेषरूप से पुरण करनेवाले हैं। २. उन आपको हम धारण करते हैं, जिनके (धृषद् वर्णम्) = गुणों का वर्णन व नामोच्चारण ही हमारे शत्रुओं का धर्षण करनेवाला होता है। उन आपको हम (दिवेदिवे) = प्रतिदिन हृदय में धारण करने का प्रयत्न करते हैं। आप (भंगुरावत:) = हमारा भंग करनेवाली राक्षसीवृत्तियों का (हन्तारम्) = नाश करनेवाले हैं।

    भावार्थ

    हम प्रभु का स्मरण करें, प्रभु को हृदय में धारण करें। प्रभु हमारी राक्षसीवृत्तियों का विनाश करके हमारा पालन करते हैं।

     

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    भाषार्थ

    (अग्ने) हे अग्रणी प्रधानमन्त्रि ! (सहस्य) तथा हे बलवन् ! (त्वा विप्रम्) तुझ मेधावी को (वयम्) हम प्रजाजन, (पुरम्) किले या नगर के सदृश (परिधीमहि) परिधिरूप में स्थापित करते हैं। जो तू कि (घृषद्वर्णम्) धर्षकरूप वाला है, और (दिवेदिवे) आए-दिन (भङ्गुरावतः) भग्न हो जाने वाले यातुधानों का (हन्तारम्) हनन करने वाला है।

    टिप्पणी

    [पुरम् = जैसे किले या नगर की परिधि प्रजा की रक्षा करती है वैसे तू बलवान् हमारी रक्षा करता है। तेरा स्वरूप यातुधानों का धर्षक है। तेरे स्वरूप को देखते ही यातुधानों के धैर्य भग्न हो जाते हैं]।

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    विषय

    प्रजा पीडकों का दमन।

    भावार्थ

    हे (अग्ने) शत्रुसंतापक ! हे (सहस्य) शत्रु को या दुष्टों को दमन करनेवाले बली राजन् ! (वयम्) हम लोग (पुरम्) सबके पालक (विप्रम्) मेधावी, ज्ञानवान्, (धृषद्वर्णम्) प्रगल्भ, उन्नत वर्ण या पदपर अधिष्ठित शत्रु के धर्षक, (भंगुरावतः) प्रजा के पीड़क लोगों के (हन्तारम्) विनाशक (त्वा) तुझको (दिवे दिवे) प्रति दिन (परिधीमहि) घेरे रहें, आश्रय करें। [ देखो का० ७। ७१। १ ]।

    टिप्पणी

    ‘भंगुरावताम्’ इति ऋ०। विशेषा पाठभेदा अथव० ७। ७१। १ ‘अस्याष्टिप्पण्यां द्रष्टव्याः’।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    चातन ऋषिः। अग्निर्देवता, रक्षोहणम् सूक्तम्। १, ६, ८, १३, १५, १६, १८, २०, २४ जगत्यः। ७, १४, १७, २१, १२ भुरिक्। २५ बृहतीगर्भा जगती। २२,२३ अनुष्टुभो। २६ गायत्री। षड्विंशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Destruction of the Evil

    Meaning

    Agni, mighty leading light, sagely wise and visionary, day in and day out we think, meditate and establish you among ourselves as an all round bulwark of protection and fulfilment and an inviolable destroyer of demonic evil doers.

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    Translation

    You, O devout adorable, powerful one, shall we be faining in erecting a stronghold around us, O you of daring colour, day by day slayer of the destructive one. (hantaram bhanguravatah). (Also Av. VIII. 74. 1; Yv XI. 26)

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    Translation

    O King you are victorious. May we always set round us like: a fort to you who is wise conquering and destroyer of the treacherous foe.

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    Translation

    O foe-suppressing, powerful king, may we daily seek thy shelter, as thou art the nourisher of ail, wise, the controller of powerful foes, and the destroyer of the tormentors of the subjects!

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २२-अयं मन्त्रो व्याख्यातः-अ० ७।७१।१ ॥

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