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  • यजुर्वेद - अध्याय 16/ मन्त्र 49
    ऋषिः - परमेष्ठी प्रजापतिर्वा देवा ऋषयः देवता - रुद्रा देवताः छन्दः - आर्ष्युष्णिक् स्वरः - गान्धारः
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    या ते॑ रुद्र शि॒वा त॒नूः शि॒वा वि॒श्वाहा॑ भेष॒जी। शि॒वा रु॒तस्य॑ भेष॒जी तया॑ नो मृड जी॒वसे॑॥४९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    या। ते॒। रु॒द्र॒। शि॒वा। त॒नूः। शि॒वा। वि॒श्वाहा॑। भे॒ष॒जी। शि॒वा। रु॒तस्य॑। भे॒ष॒जी। तया॑। नः॒। मृ॒ड। जी॒वसे॑ ॥४९ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    या ते रुद्र शिवा तनूः शिवा विश्वाहा भेषजी । शिवा रुतस्य भेषजी तया नो मृड जीवसे ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    या। ते। रुद्र। शिवा। तनूः। शिवा। विश्वाहा। भेषजी। शिवा। रुतस्य। भेषजी। तया। नः। मृड। जीवसे॥४९॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 16; मन्त्र » 49
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    Translation -
    O terrible Lord, with that form of yours, which is pleasing and auspicious, a perpetual remedy, and pleasing remedy for all the ills, may you favour us, so that we may live. (1)

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