अथर्ववेद - काण्ड 10/ सूक्त 2/ मन्त्र 31
सूक्त - नारायणः
देवता - साक्षात्परब्रह्मप्रकाशनम्
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - ब्रह्मप्रकाशन सूक्त
अ॒ष्टाच॑क्रा॒ नव॑द्वारा दे॒वानां॒ पूर॑यो॒ध्या। तस्यां॑ हिर॒ण्ययः॒ कोशः॑ स्व॒र्गो ज्योति॒षावृ॑तः ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒ष्टाऽच॑क्रा । नव॑ऽद्वारा । दे॒वाना॑म् । पू: । अ॒यो॒ध्या । तस्या॑म् । हि॒र॒ण्यय॑: । कोश॑: । स्व॒:ऽग: । ज्योति॑षा । आऽवृ॑त: ॥२.३१॥
स्वर रहित मन्त्र
अष्टाचक्रा नवद्वारा देवानां पूरयोध्या। तस्यां हिरण्ययः कोशः स्वर्गो ज्योतिषावृतः ॥
स्वर रहित पद पाठअष्टाऽचक्रा । नवऽद्वारा । देवानाम् । पू: । अयोध्या । तस्याम् । हिरण्यय: । कोश: । स्व:ऽग: । ज्योतिषा । आऽवृत: ॥२.३१॥
अथर्ववेद - काण्ड » 10; सूक्त » 2; मन्त्र » 31
भाषार्थ -
(अष्टाचक्रा) आठ चक्रों वाली, (नवद्वारा) नौ द्वारों वाली, (देवानाम्, पू) इन्द्रिय-देवों की पुरी (अयोध्या) अयोध्या है। (तस्याम्) उस पुरी में (हिरण्ययः) सुवर्ण सदृश चमकीला (कोशः) कोश है, (स्वर्गः) जिसे कि स्वर्ग कहते हैं, (ज्योतिषा आवृतः) जो कि ब्राह्मीज्योति द्वारा घिरा हुआ है।
टिप्पणी -
[अष्टाचक्रा= सुषुम्णा नाडी और मस्तिष्क में आठ चक्र हैं, यथा “मूलाधारचक्र, स्वाधिष्ठानचक्र, मणिपूरचक्र, अनाहतचत्र, विशुद्ध चक्र, आज्ञाचक, सहस्रारचक्र। आठवां चक्र सम्भवतः ब्रह्मरन्ध्र है, जोकि आज्ञा-चक्र और सहस्रारचक्र के मध्यवर्ती हैं। अथवा आठवां चक्र सम्भवतः "कुण्डलिनी” है। इन का विस्तृत विवरण "पातञ्जल योग प्रदीप" (आर्य साहित्य मण्डल, अजमेर) में द्रष्टव्य है। नवद्वारा = दो आंखों के छिद्र, दो नासिकारन्ध्र, दो कर्णछिद्र, १. लिंग का, और १ गुदा का छिद्र-ये ९ द्वार हैं। अयोध्या= परमेश्वर प्रदर्शित मार्गों पर चलने से रोग, तथा काम क्रोध आदि शत्रुऔं द्वारा शरीर पुरी पराजित नहीं होती, और न रोग आदि इस पुरी के साथ युद्ध करने की शक्ति ही रखते हैं। हृदय को हिरण्यय कोश कहा है जोकि ब्राह्मीज्योति द्वारा आवृत है, यह हृदय स्वर्ग है, जहां कि ब्रह्म के सन्निधान द्वारा सुख-विशेष को प्राप्ति होती है]।