अथर्ववेद - काण्ड 10/ सूक्त 2/ मन्त्र 9
सूक्त - नारायणः
देवता - ब्रह्मप्रकाशनम्, पुरुषः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - ब्रह्मप्रकाशन सूक्त
प्रि॑याप्रि॒याणि॑ बहु॒ला स्वप्नं॑ संबाधत॒न्द्र्यः। आ॑न॒न्दानु॒ग्रो नन्दां॑श्च॒ कस्मा॑द्वहति॒ पूरु॑षः ॥
स्वर सहित पद पाठप्रि॒य॒ऽअ॒प्रि॒याणि॑ । ब॒हु॒ला । स्वप्न॑म् । सं॒बा॒ध॒ऽत॒न्द्र्य᳡: । आ॒ऽन॒न्दान् । उ॒ग्र: । नन्दा॑न् । च॒ । कस्मा॑त् । व॒ह॒ति॒ । पुरु॑ष: ॥२.९॥
स्वर रहित मन्त्र
प्रियाप्रियाणि बहुला स्वप्नं संबाधतन्द्र्यः। आनन्दानुग्रो नन्दांश्च कस्माद्वहति पूरुषः ॥
स्वर रहित पद पाठप्रियऽअप्रियाणि । बहुला । स्वप्नम् । संबाधऽतन्द्र्य: । आऽनन्दान् । उग्र: । नन्दान् । च । कस्मात् । वहति । पुरुष: ॥२.९॥
अथर्ववेद - काण्ड » 10; सूक्त » 2; मन्त्र » 9
भाषार्थ -
(बहुला= बहुलानि) बहुत अर्थात् नानाविध (प्रियाप्रियाणि) प्रिय और अप्रिय वस्तुओं को, (स्वप्नम्) बुरे-भले स्वप्नों को, (संबाधतन्द्र्यः) बाधाओं और आलस्य को, (आनन्दान्, नन्दान् च) आध्यात्मिक सुखों और सांसारिक सुखों को, (उग्रः पुरुषः) शक्तिशाली पुरुष (कस्मात्) किस हेतु से (वहति) प्राप्त करता या ढोता है।.
टिप्पणी -
[वहति= ढोना, जैसे कि पशु मार को ढोता है। प्रापणे, प्राप्त करता है। प्रश्न यह है कि पुरुष है उग्र अर्थात् शक्तिसम्पन्न, तो भी वह अवांछित तथा अनभीष्ट वस्तुओं को किस हेतु से प्राप्त करता है? उत्तर है “कस्मात्” अर्थात् प्रजापति से कः वै प्रजापतिः (ऐत० ३।२१)। यद्यपि “स्मात्” के योग में “कः” किम्-सर्वनाम प्रतीत होता है, तो भी वैदिक प्रथानुसार “कः” असर्वनाम भी समझा जा सकता है। यथा “कस्मै देवाय हवि विधेम” (यजु० २४।१२) में “कस्मै” का अर्थ प्रजापतये किया जाता है। (यजु० २५।१२, महीधर) अभिप्राय यह है कि पुरुष उग्र होता हुआ भी, निजकर्म फल के कारण, कर्मफल दाता परमेश्वर से इन्हें भोग रहा है] सूक्त २ में प्रायः “कः, केन, कस्मात्” आादि प्रयोगों द्वारा प्रश्न और उत्तर दोनों जानने चाहिये। इसी भाव को दर्शाने के लिये मन्त्र (२०-२५) में प्रश्नों के उत्तर में ब्रह्म का कथन हुआ है]।