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  • अथर्ववेद - काण्ड 13/ सूक्त 2/ मन्त्र 11
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - रोहितः, आदित्यः, अध्यात्मम् छन्दः - बृहतीत्रिष्टुप् सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त

    पूर्वाप॒रं च॑रतो मा॒ययै॒तौ शिशू॒ क्रीड॑न्तौ॒ परि॑ यातोऽर्ण॒वम्। विश्वा॒न्यो भुव॑ना वि॒चष्टे॑ हैर॒ण्यैर॒न्यं ह॒रितो॑ वहन्ति ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    पू॒र्व॒ऽअ॒प॒रम् । च॒र॒त॒: । मा॒यया॑ । ए॒तौ । शिशू॒ इति॑ । क्रीड॑न्तौ । परि॑। या॒त॒: । अ॒र्ण॒वम् । विश्वा॑ । अ॒न्य: । भुव॑ना । वि॒ऽचष्टे॑ । है॒र॒ण्यै: । अ॒न्यम् । ह॒रित॑: । व॒ह॒न्ति॒ ॥2.११॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पूर्वापरं चरतो माययैतौ शिशू क्रीडन्तौ परि यातोऽर्णवम्। विश्वान्यो भुवना विचष्टे हैरण्यैरन्यं हरितो वहन्ति ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    पूर्वऽअपरम् । चरत: । मायया । एतौ । शिशू इति । क्रीडन्तौ । परि। यात: । अर्णवम् । विश्वा । अन्य: । भुवना । विऽचष्टे । हैरण्यै: । अन्यम् । हरित: । वहन्ति ॥2.११॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 13; सूक्त » 2; मन्त्र » 11

    पदार्थ -
    (एतौ) यह दोनों [सूर्य चन्द्रमा] (पूर्वापरम्) आगे-पीछे (मायया) बुद्धि से [ईश्वरनियम से] (चरतः) विचरते हैं, (क्रीडन्तौ) खेलते हुए (शिशू) दो बालक [जैसे] (अर्णवम्) अन्तरिक्ष में (परि) सब ओर (यातः) चलते हैं। (अन्यः) एक [सूर्य] (विश्वा) सब (भुवना) भुवनों को (विचष्टे) देखता है, (अन्यम्) दूसरे [चन्द्रमा] को (हरितः) [सूर्य की] आकर्षक किरणें (हैरण्यैः) तेजोमय [वा सुनैले] कामों के द्वारा (वहन्ति) ले चलती हैं ॥११॥

    भावार्थ - सूर्य और चन्द्रमा ईश्वरनियम से उत्पन्न हुए हैं, तेजस्वी सूर्य प्रकाशरहित चन्द्रमा को अपने आकर्षण में रखकर प्रकाशित और उपकारी करता है, वैसे ही मनुष्य शुभ गुणों से प्रतापी होकर दूसरों को गुणवान् करें ॥११॥इस मन्त्र के प्रथम तीन पाद कुछ भेद से-ऋ० १०।८५।१८। में हैं, और पीछे-अथर्व० ७।८१।१। में आचुके हैं, और आगे-अ० १४।१।२३। में हैं ॥

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