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  • अथर्ववेद - काण्ड 13/ सूक्त 2/ मन्त्र 15
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - रोहितः, आदित्यः, अध्यात्मम् छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त

    तं समा॑प्नोति जू॒तिभि॒स्ततो॒ नाप॑ चिकित्सति। तेना॒मृत॑स्य भ॒क्षं दे॒वानां॒ नाव॑ रुन्धते ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तम् । सम् । आ॒प्नो॒ति॒ । जू॒तिऽभि॑: । तत॑: । न । अप॑ । चि॒कि॒त्स॒ति॒ । तेन॑ । अ॒मृत॑स्य । भ॒क्षम् । दे॒वाना॑म् । न । अव॑ । रु॒न्ध॒ते॒ ॥2.१५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तं समाप्नोति जूतिभिस्ततो नाप चिकित्सति। तेनामृतस्य भक्षं देवानां नाव रुन्धते ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तम् । सम् । आप्नोति । जूतिऽभि: । तत: । न । अप । चिकित्सति । तेन । अमृतस्य । भक्षम् । देवानाम् । न । अव । रुन्धते ॥2.१५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 13; सूक्त » 2; मन्त्र » 15

    पदार्थ -
    (तम्) उस [मार्ग] को (जूतिभिः) अपने वेगों से (सम् आप्नोति) वह [सूर्य] समाप्त करता रहता है, (ततः) उस मार्ग से (न अपचिकित्सति) वह भूल नहीं करता। (तेन) उसी कारण से (देवानाम्) विजय चाहनेवालों के (अमृतस्य) अमरपन [जीवनसाधन] के (भक्षम्) सेवन को (न अव रुन्धते) वे [विघ्न] नहीं रोकते हैं ॥१५॥

    भावार्थ - सूर्य निरन्तर घूम कर संसार में प्रकाश करता रहता है, उसी से सब पुरुषार्थी जन जीवनसामग्री पाते हैं ॥१५॥

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