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  • अथर्ववेद - काण्ड 13/ सूक्त 2/ मन्त्र 22
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - रोहितः, आदित्यः, अध्यात्मम् छन्दः - आर्षी गायत्री सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त

    वि द्यामे॑षि॒ रज॑स्पृ॒थ्वह॒र्मिमा॑नो अ॒क्तुभिः॑। पश्य॒ञ्जन्मा॑नि सूर्य ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वि । द्याम् । ए॒षि॒ । रज॑: । पृ॒थु । अह॑: । मिमा॑न: । अ॒क्तुऽभि॑: । पश्य॑न् । जन्मा॑नि । सू॒र्य॒ ॥२.२२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वि द्यामेषि रजस्पृथ्वहर्मिमानो अक्तुभिः। पश्यञ्जन्मानि सूर्य ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    वि । द्याम् । एषि । रज: । पृथु । अह: । मिमान: । अक्तुऽभि: । पश्यन् । जन्मानि । सूर्य ॥२.२२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 13; सूक्त » 2; मन्त्र » 22

    पदार्थ -
    [उस प्रकाश से] (सूर्य) हे सूर्य ! [रविमण्डल] (अहः) दिन को (अक्तुभिः) रात्रियों के साथ (मिमानः) बनाता हुआ और (जन्मानि) उत्पन्न वस्तुओं को (पश्यन्) दिखाता हुआ तू (द्याम्) आकाश में (पृथु) फैले हुए (रजः) लोक को (वि) विविध प्रकार (एषि) प्राप्त होता है ॥२२॥

    भावार्थ - जैसे सूर्य अपने प्रकाश से वृष्टि आदि द्वारा अपने घेरे के सब प्राणियों और लोकों को धारण-पोषण करता है, वैसे ही मनुष्य सर्वोपरि विराजमान परमात्मा के ज्ञान से परस्पर सहायक होकर सुखी होवें ॥२१, २२॥मन्त्र २२ कुछ भेद से ऋग्वेद में है−१।५०।७। और साम० पू० ६।१४।१२ ॥

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