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  • अथर्ववेद - काण्ड 13/ सूक्त 2/ मन्त्र 29
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - रोहितः, आदित्यः, अध्यात्मम् छन्दः - बार्हतगर्भानुष्टुप् सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त

    बण्म॒हाँ अ॑सि सूर्य॒ बडा॑दित्य म॒हाँ अ॑सि। म॒हांस्ते॑ मह॒तो म॑हि॒मा त्वमा॑दित्य म॒हाँ अ॑सि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    बट् । म॒हान् । अ॒सि॒ । सू॒र्य॒ । बट् । आ॒दि॒त्य॒ । म॒हान् । अ॒सि॒ । म॒हान् । ते॒ । म॒ह॒त: । म॒हि॒मा । त्वम् । आ॒दि॒त्य॒ । म॒हान् । अ॒सि॒॥२.२९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    बण्महाँ असि सूर्य बडादित्य महाँ असि। महांस्ते महतो महिमा त्वमादित्य महाँ असि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    बट् । महान् । असि । सूर्य । बट् । आदित्य । महान् । असि । महान् । ते । महत: । महिमा । त्वम् । आदित्य । महान् । असि॥२.२९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 13; सूक्त » 2; मन्त्र » 29

    पदार्थ -
    (सूर्य) हे चराचर प्रेरक [परमेश्वर !] तू (बट्) सत्य-सत्य (महान्) महान् [बड़ा] (असि) है, (आदित्य) हे अविनाशी ! तू (बट्) ठीक-ठीक (महान्) महान् [पूजनीय] (असि) है। (महतः ते) तुझ बड़े की (महिमा) महिमा (महान्) बड़ी है, (आदित्य) हे प्रकाशस्वरूप ! (त्वम्) तू (महान्) बड़ा (असि) है ॥२९॥

    भावार्थ - जिस परमात्मा के बड़े होने को संसार में बड़े से बड़े भी मानते हैं, हे मनुष्यो ! उसकी उपासना करके प्रयत्न से अपने को बढ़ाओ ॥२९॥यह मन्त्र कुछ भेद से ऋग्वेद में है−८।९१।११, यजु० ३३।३९, और साम० पू० ३।९।४। तथा उ० ९।१।९ ॥

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