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  • अथर्ववेद - काण्ड 13/ सूक्त 2/ मन्त्र 9
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - रोहितः, आदित्यः, अध्यात्मम् छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त

    उत्के॒तुना॑ बृह॒ता दे॒व आग॒न्नपा॑वृ॒क्तमो॒ऽभि ज्योति॑रश्रैत्। दि॒व्यः सु॑प॒र्णः स वी॒रो व्यख्य॒ददि॑तेः पु॒त्रो भुव॑नानि॒ विश्वा॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उत् । के॒तुना॑ । बृ॒ह॒ता । दे॒व: । आ । अ॒ग॒न् । अप॑ । अ॒वृ॒क् । तम॑: । अ॒भि । ज्योति॑: । अ॒श्रै॒त् । दि॒व्य: । सु॒ऽप॒र्ण: । स: । वी॒र: । वि । अ॒ख्य॒त् । अदि॑ते: । पु॒त्र: । भुव॑नानि । विश्वा॑ ॥2.९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उत्केतुना बृहता देव आगन्नपावृक्तमोऽभि ज्योतिरश्रैत्। दिव्यः सुपर्णः स वीरो व्यख्यददितेः पुत्रो भुवनानि विश्वा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उत् । केतुना । बृहता । देव: । आ । अगन् । अप । अवृक् । तम: । अभि । ज्योति: । अश्रैत् । दिव्य: । सुऽपर्ण: । स: । वीर: । वि । अख्यत् । अदिते: । पुत्र: । भुवनानि । विश्वा ॥2.९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 13; सूक्त » 2; मन्त्र » 9

    पदार्थ -
    (देवः) प्रकाशमान सूर्य (बृहता केतुना) बड़ी सजधज से (उत्-आ अगन्) ऊँचा होकर आया है, उसने (तमः) अन्धकार को (अप अवृक्) हटा दिया है और (ज्योतिः अभि) ज्योति को प्राप्त करके (अश्रैत्) ठहरा है। (दिव्यः) आकाशनिवासी, (सुपर्णः) सुन्दर नीति से पालन करनेवाला, (अदितेः) अखण्ड प्रकृति के (पुत्रः) पुत्र [समान], (सः) उस (वीरः) वीर [विविध गतिवाले सूर्य] ने (विश्वा) सब (भुवनानि) लोकों को (वि अख्यत्) प्रसिद्ध किया है ॥९॥

    भावार्थ - हे मनुष्यो ! जैसे सूर्य ने प्रकृति से उत्पन्न होकर अन्धकार मिटाकर संसार में उजाला फैलाया है, वैसे ही तुम ब्रह्मचर्य आदि शुभ गुणों से तेजस्वी होकर कीर्ति बढ़ाओ ॥९॥

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