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  • अथर्ववेद - काण्ड 13/ सूक्त 2/ मन्त्र 8
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - रोहितः, आदित्यः, अध्यात्मम् छन्दः - जगती सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त

    स॒प्त सूर्यो॑ ह॒रितो॒ यात॑वे॒ रथे॒ हिर॑ण्यत्वचसो बृह॒तीर॑युक्त। अमो॑चि शु॒क्रो रज॑सः प॒रस्ता॑द्वि॒धूय॑ दे॒वस्तमो॒ दिव॒मारु॑हत् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स॒प्त । सूर्य॑: । ह॒रित॑: । यात॑वे । रथे॑ । हिर॑ण्यऽत्वचस: । बृ॒ह॒ती: । अ॒यु॒क्त॒ । अमो॑चि । शु॒क्र: । रज॑स: । प॒रस्ता॑त् । वि॒ऽधूय॑ । दे॒व: । तम॑: । दिव॑म् । आ । अ॒रु॒ह॒त्॥2.८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सप्त सूर्यो हरितो यातवे रथे हिरण्यत्वचसो बृहतीरयुक्त। अमोचि शुक्रो रजसः परस्ताद्विधूय देवस्तमो दिवमारुहत् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सप्त । सूर्य: । हरित: । यातवे । रथे । हिरण्यऽत्वचस: । बृहती: । अयुक्त । अमोचि । शुक्र: । रजस: । परस्तात् । विऽधूय । देव: । तम: । दिवम् । आ । अरुहत्॥2.८॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 13; सूक्त » 2; मन्त्र » 8

    पदार्थ -
    (सूर्यः) सूर्य [लोकों के चलानेवाले पिण्ड विशेष] ने (सप्त) सात [शुक्ल, नील, पीत आदि वर्णवाली-म० ४], (हिरण्यत्वचसः) तेज की त्वचा [ढक्कन] रखनेवाली, (बृहतीः) बड़ी [दूर-दूर जानेवाली] (हरितः) आकर्षक किरणों को (रथे) अपने रथ [गति विधान] में (यातवे) चलने के लिये (अयुक्त) जोड़ा है। (शुक्रः) तेजस्वी वह (रजसः) धुन्धलेपन से (परस्तात्) दूर (अमोचि) छोड़ा गया है और (देवः) प्रकाशमान [सूर्य] (तमः) अन्धकार को (विधूय) हिला डालकर (दिवम्) आकाश में (आ अरुहत्) ऊँचा हुआ है ॥८॥

    भावार्थ - जैसे सूर्य दूर पहुँचनेवाली किरणों द्वारा अन्धकार को नाश करके अनेक लोकों को आकर्षण में रखकर ऊँचा ठहरा है, वैसे ही मनुष्य अविद्या मिटाकर विद्या का प्रकाश करके प्रतिष्ठा प्राप्त करे ॥८॥

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