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  • अथर्ववेद - काण्ड 13/ सूक्त 2/ मन्त्र 39
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - रोहितः, आदित्यः, अध्यात्मम् छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त

    रोहि॑तः का॒लो अ॑भव॒द्रोहि॒तोऽग्रे॑ प्र॒जाप॑तिः। रोहि॑तो य॒ज्ञानां॒ मुखं॒ रोहि॑तः॒ स्वराभ॑रत् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    रोहि॑त: । का॒ल: । अ॒भ॒व॒त् । रोहि॑त: । अग्रे॑ । प्र॒जाऽप॑ति: । रोहि॑त: । य॒ज्ञाना॑म् । मुख॑म् । रोहि॑त: । स्व᳡: । आ । अ॒भ॒र॒त् ॥२.३९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    रोहितः कालो अभवद्रोहितोऽग्रे प्रजापतिः। रोहितो यज्ञानां मुखं रोहितः स्वराभरत् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    रोहित: । काल: । अभवत् । रोहित: । अग्रे । प्रजाऽपति: । रोहित: । यज्ञानाम् । मुखम् । रोहित: । स्व: । आ । अभरत् ॥२.३९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 13; सूक्त » 2; मन्त्र » 39

    पदार्थ -
    (रोहितः) सबका उत्पन्न करनेवाला [परमेश्वर] (अग्रे) पहिले से [वर्तमान होकर] (कालः) कालवाला [तीनों कालों का स्वामी], और (रोहितः) सबका उत्पन्न करनेवाला [परमात्मा] (प्रजापतिः) प्रजाओं [उत्पन्न पदार्थों] का पालनेवाला (अभवत्) हुआ। (रोहितः) सर्वोत्पादक [ईश्वर] (यज्ञानाम्) संयोग-वियोग व्यवहारों का (मुखम्) मुखिया [प्रधान] है, (रोहितः) सर्वजनक [परमात्मा] ने (स्वः) आनन्द को (आ) सब प्रकार (अभरत्) धारण किया है ॥३९॥

    भावार्थ - सर्वोत्पादक अनादि अनन्त परमेश्वर परमाणुओं के संयोग-वियोग से सृष्टि बना कर सबका कारण हुआ है, सब लोक उसी की भक्ति कर के पुरुषार्थपूर्वक सुखी रहें ॥३९॥

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