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  • अथर्ववेद - काण्ड 13/ सूक्त 2/ मन्त्र 21
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - रोहितः, आदित्यः, अध्यात्मम् छन्दः - आर्षी गायत्री सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त

    येना॑ पावक॒ चक्ष॑सा भुर॒ण्यन्तं॒ जनाँ॒ अनु॑। त्वं व॑रुण॒ पश्य॑सि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    येन॑ । पा॒व॒क॒ । चक्ष॑सा । भु॒र॒ण्यन्त॑म् । जना॑न् । अनु॑ । त्वम् । व॒रु॒ण॒ । पश्य॑सि ॥२.२१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    येना पावक चक्षसा भुरण्यन्तं जनाँ अनु। त्वं वरुण पश्यसि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    येन । पावक । चक्षसा । भुरण्यन्तम् । जनान् । अनु । त्वम् । वरुण । पश्यसि ॥२.२१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 13; सूक्त » 2; मन्त्र » 21

    पदार्थ -
    (पावक) हे पवित्र करनेवाले ! (वरुण) हे उत्तम गुणवाले ! [सूर्य, रविमण्डल] (येन) जिस (चक्षसा) प्रकाश से (भुरण्यन्तम्) धारण और पोषण करते हुए [पराक्रम] को (जनान् अनु) उत्पन्न प्राणियों में (त्वम्) तू (पश्यसि) दिखाता है ॥२१॥यह मन्त्र ऋग्वेद में है−१।५०।६, यजु० ३३।३२, और साम पू० ६।१४।१—१ ॥

    भावार्थ - जैसे सूर्य अपने प्रकाश से वृष्टि आदि द्वारा अपने घेरे के सब प्राणियों और लोकों को धारण-पोषण करता है, वैसे ही मनुष्य सर्वोपरि विराजमान परमात्मा के ज्ञान से परस्पर सहायक होकर सुखी होवें ॥२१, २२॥मन्त्र २२ कुछ भेद से ऋग्वेद में है−१।५०।७। और साम० पू० ६।१४।१२ ॥

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