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  • यजुर्वेद - अध्याय 27/ मन्त्र 30
    ऋषिः - पुरुमीढ ऋषिः देवता - वायुर्देवता छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
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    वायो॑ शु॒क्रोऽ अ॑यामि ते॒ मध्वो॒ऽअग्रं॒ दिवि॑ष्टिषु। आ या॑हि॒ सोम॑पीतये स्पा॒र्हो दे॑व नि॒युत्व॑ता॥३०॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वायो॒ऽइति॒ वायो॑। शु॒क्रः। अ॒या॒मि॒। ते॒। मध्वः॑। अग्र॑म्। दिवि॑ष्टिषु। आ। या॒हि॒। सोम॑ऽपीतय॒ इति॒ सोम॑पीतये। स्पा॒र्हः। दे॒व॒। नि॒युत्व॑ता ॥३० ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वायो शुक्रोऽअयामि ते मध्वोऽअग्रंदिविष्टिषु । आ याहि सोमपीतये स्पार्हा देव नियुत्वता ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    वायोऽइति वायो। शुक्रः। अयामि। ते। मध्वः। अग्रम्। दिविष्टिषु। आ। याहि। सोमऽपीतय इति सोमपीतये। स्पार्हः। देव। नियुत्वता॥३०॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 27; मन्त्र » 30
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    पदार्थ -
    পদার্থঃ– হে (বায়ো) বায়ু সমান বর্ত্তমান বিদ্বান্! (শুক্রঃ) শুদ্ধিকারক আপনি (তে) আপনার (মধ্বঃ) মধুর বচনের (অগ্রম্) উত্তম ভাগকে (দিবিষ্টিষু) উত্তম সংগতিতে আমি (অয়ামি) প্রাপ্ত হই । হে (দেব) উত্তম গুণযুক্ত বিদ্বান্ পুরুষ (স্পার্হঃ) উত্তম গুণসকলের অভিলাষা দ্বারা যুক্তের পুত্র আপনি (নিয়ুত্বতা) বায়ু সহ (সোমপীতয়ে) উত্তম ঔষধিসকলের রস পান করিবার জন্য (আ, য়াহি) উত্তম প্রকার প্রাপ্ত হউন ॥ ৩০ ॥

    भावार्थ - ভাবার্থঃ– এই মন্ত্রে বাচকলুপ্তোপমালঙ্কার আছে । হে মনুষ্যগণ! যেমন বায়ু সমস্ত রস এবং গন্ধাদি পান করিয়া সকলকে পুষ্টি করে সেইরূপ তুমিও সকলকে পুষ্টি করিতে থাক ॥ ৩০ ॥

    मन्त्र (बांग्ला) - বায়ো॑ শু॒ক্রোऽ অ॑য়ামি তে॒ মধ্বো॒ऽঅগ্রং॒ দিবি॑ষ্টিষু ।
    আ য়া॑হি॒ সোম॑পীতয়ে স্পা॒র্হো দে॑ব নি॒য়ুত্ব॑তা ॥ ৩০ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - বায়ো শুক্র ইত্যস্য পুরুমীঢ ঋষিঃ । বায়ুর্দেবতা । অনুষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
    গান্ধারঃ স্বরঃ ॥

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