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  • यजुर्वेद - अध्याय 27/ मन्त्र 34
    ऋषिः - आङ्गिरस ऋषिः देवता - वायुर्देवता छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः
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    तव॑ वायवृतस्पते॒ त्वष्टु॑र्जामातरद्भुत।अवा॒स्या वृ॑णीमहे॥३४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त॑व। वा॒यो॒ऽइति॑ वायो। ऋ॒त॒स्प॒ते॒। ऋ॒त॒प॒त॒ऽइत्यृ॑तऽपते। त्वष्टुः॑। जा॒मा॒तः॒। अ॒द्भु॒त॒। अवा॑सि। आ। वृ॒णी॒म॒हे॒ ॥३४ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तव वायवृतस्पते त्वष्टुर्जामातरद्भुत । अवाँस्या वृणीमहे ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    तव। वायोऽइति वायो। ऋतस्पते। ऋतपतऽइत्यृतऽपते। त्वष्टुः। जामातः। अद्भुत। अवासि। आ। वृणीमहे॥३४॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 27; मन्त्र » 34
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    पदार्थ -
    পদার্থঃ–হে (ঋতস্পতে) সত্যের রক্ষক (জামাতঃ) জামাতা তুল্য বর্ত্তমান (অদ্ভুত) আশ্চর্যরূপ কর্ম সম্পাদনকারী (বায়ো) বহু বলযুক্ত বিদ্বন্ আমরা যাহারা (ত্বষ্টুঃ) বিদ্যা দ্বারা প্রকাশিত (তব) আপনার (অবাংসি) রক্ষাদি কর্মসকলের (আ, বৃণীমহে) স্বীকার করি তাহাকে আপনিও স্বীকার করুন ॥ ৩৪ ॥

    भावार्थ - ভাবার্থঃ– যেমন জামাই উত্তম আশ্চর্য্য গুণযুক্ত সত্য ঈশ্বরের সেবক স্বীকৃতির যোগ্য হয় সেইরূপ বায়ুও স্বীকার করিবার যোগ্য ॥ ৩৪ ॥

    मन्त्र (बांग्ला) - তব॑ বায়বৃতস্পতে॒ ত্বষ্টু॑র্জামাতরদ্ভুত ।
    অবা॒ᳬंস্যা বৃ॑ণীমহে ॥ ৩৪ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - তব বায় ইত্যস্যাऽঙ্গিরস ঋষিঃ । বায়ুর্দেবতা । নিচৃদ্ গায়ত্রী ছন্দঃ ।
    ষড্জঃ স্বরঃ ॥

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