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  • अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 23/ मन्त्र 1
    सूक्त - अथर्वा देवता - मन्त्रोक्ताः छन्दः - आसुरी बृहती सूक्तम् - अथर्वाण सूक्त

    आ॑थर्व॒णाना॑ चतुरृ॒चेभ्यः॒ स्वाहा॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ॒थ॒र्व॒णाना॑म्। च॒तुः॒ऽऋ॒चेभ्यः॑। स्वाहा॑ ॥२३.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आथर्वणाना चतुरृचेभ्यः स्वाहा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आथर्वणानाम्। चतुःऽऋचेभ्यः। स्वाहा ॥२३.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 23; मन्त्र » 1

    टिप्पणीः - यही भावार्थ आगे मन्त्र २९ तक समझें और “निश्चल ब्रह्म के बताये ज्ञानों के”-इन पदों की अनुवृत्ति जानें ॥१−(आथर्वणानाम्) अथर्वन्-अण्। अथर्वणा निश्चलब्रह्मणा प्रोक्तानां ज्ञानानाम् (चतुर्ऋचेभ्यः) ऋक्पूरब्धूःपथामानक्षे। पा०५।४।७४। इति चतुर्+ऋच्-अप्रत्ययः समासान्तः। ऋच स्तुतौ-क्विप्। ऋग्वाङ्नाम-निघ०१।११। चतुर्णां धर्मार्थकाममोक्षाणाम् ऋक्स्तुत्या विद्या येषु वेदेषु तेभ्यः (स्वाहा) अ०१९।१७।१। सुवाणी ॥

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