अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 23/ मन्त्र 27
सूक्त - अथर्वा
देवता - मन्त्रोक्ताः
छन्दः - दैवी त्रिष्टुप्
सूक्तम् - अथर्वाण सूक्त
वि॑षास॒ह्यै स्वाहा॑ ॥
स्वर सहित पद पाठवि॒ऽस॒स॒ह्यै। स्वाहा॑ ॥२३.२७॥
स्वर रहित मन्त्र
विषासह्यै स्वाहा ॥
स्वर रहित पद पाठविऽससह्यै। स्वाहा ॥२३.२७॥
अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 23; मन्त्र » 27
सूचना -
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः - २७−(विषासह्यै) सहिवहिचलिपतिभ्यो यङन्तेभ्यः किकिनौ वक्तव्यौ। वा० पा०३।२।१७१। षह अभिभवे-कि। अलोपयलोपौ। विविधं पुनः पुनः सोढ्री तस्यै सदाविजयिन्यै वेदविद्यायै ॥
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