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  • अथर्ववेद - काण्ड 8/ सूक्त 7/ मन्त्र 1
    सूक्त - अथर्वा देवता - भैषज्यम्, आयुष्यम्, ओषधिसमूहः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - ओषधि समूह सूक्त

    या ब॒भ्रवो॒ याश्च॑ शु॒क्रा रोहि॑णीरु॒त पृश्न॑यः। असि॑क्नीः कृ॒ष्णा ओष॑धीः॒ सर्वा॑ अ॒च्छाव॑दामसि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    या: । ब॒भ्रव॑: । या: । च॒ । शु॒क्रा: । रोहि॑णी: । उ॒त । पृश्न॑य: । असि॑क्नी: । कृ॒ष्णा: । ओष॑धी: । सर्वा॑: । अ॒च्छ॒ऽआव॑दामसि ॥७.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    या बभ्रवो याश्च शुक्रा रोहिणीरुत पृश्नयः। असिक्नीः कृष्णा ओषधीः सर्वा अच्छावदामसि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    या: । बभ्रव: । या: । च । शुक्रा: । रोहिणी: । उत । पृश्नय: । असिक्नी: । कृष्णा: । ओषधी: । सर्वा: । अच्छऽआवदामसि ॥७.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 7; मन्त्र » 1

    पदार्थ -

    १. (याः) = जो (बभ्रवः) = भरण करनेवाली-मांस को बढ़ानेवाली (याः च) = और जो (शुक्रा:) = वीर्यवर्धक (रोहिणी:) = बाब इत्यादि को भरनेवाली, (उत:) = और (पृश्नया) = रस का पोषण करनेवाली, (असिक्न:) = [षि बन्धने] अंगों के बन्धन-जुड़जाने को खोलनेवाली तथा (कृष्णा:) = आवश्यक विलेखन करनेवाली-मोटेपन को दूर करनेवाली (ओषधी:) ओषधियाँ है, (सर्वाः) = उन सबका (अच्छावदामसि) = सम्यक् उपदेश करते हैं।

    भावार्थ -

    प्रभु से उत्पादित व उपदिष्ट सब ओषधियों का सम्यक् ज्ञान प्रास करते हुए हम स्वस्थ व दीर्घजीवनवाले बनें।

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