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  • अथर्ववेद - काण्ड 8/ सूक्त 7/ मन्त्र 7
    सूक्त - अथर्वा देवता - भैषज्यम्, आयुष्यम्, ओषधिसमूहः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - ओषधि समूह सूक्त

    इ॒हा य॑न्तु॒ प्रचे॑तसो मे॒दिनी॒र्वच॑सो॒ मम॑। यथे॒मं पा॒रया॑मसि॒ पुरु॑षं दुरि॒तादधि॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इ॒ह । आ । य॒न्तु॒ । प्रऽचे॑तस: । मे॒दिनी॑: । वच॑स: ।मम॑ । यथा॑ । इ॒मम् । पा॒रया॑मसि । पुरु॑षम्। दु॒:ऽइ॒तात् । अधि॑ ॥७.७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इहा यन्तु प्रचेतसो मेदिनीर्वचसो मम। यथेमं पारयामसि पुरुषं दुरितादधि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इह । आ । यन्तु । प्रऽचेतस: । मेदिनी: । वचस: ।मम । यथा । इमम् । पारयामसि । पुरुषम्। दु:ऽइतात् । अधि ॥७.७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 7; मन्त्र » 7

    पदार्थ -

    (प्रचेतसः मम वचस:) = प्रकृष्ट ज्ञानदेनेवाले मुझ वैद्य के वचन से (मेदिनी: इह आयन्तु) = पुष्टिकारक ओषधियाँ यहाँ प्राप्त हों, (यथा) = जिससे (इमं पुरुषम्) = इस रुग्ण पुरुष को (दुरितात्) = पाप जन्य भोगरूप रोग से (अधि पारयामसि) = पार कर दें।

    भावार्थ -

    ज्ञानी वैद्य पौष्टिक ओषधियों के प्रयोग से इस रूग्ण के कष्ट का निवारण करे। वैद्य का प्रकृष्ट ज्ञानवाला होना आवश्यक है।

     

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