अथर्ववेद - काण्ड 8/ सूक्त 7/ मन्त्र 20
सूक्त - अथर्वा
देवता - भैषज्यम्, आयुष्यम्, ओषधिसमूहः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - ओषधि समूह सूक्त
अ॑श्व॒त्थो द॒र्भो वी॒रुधां॒ सोमो॒ राजा॒मृतं॑ ह॒विः। व्री॒हिर्यव॑श्च भेष॒जौ दि॒व॒स्पु॒त्रावम॑र्त्यौ ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒श्व॒त्थ: । द॒र्भ: । वी॒रुधा॑म् । सोम॑: । राजा॑ । अ॒मृत॑म् । ह॒वि: । व्री॒हि: । यव॑: । च॒ । भे॒ष॒जौ । दि॒व: । पु॒त्रौ । अम॑र्त्यौ ॥७.२०॥
स्वर रहित मन्त्र
अश्वत्थो दर्भो वीरुधां सोमो राजामृतं हविः। व्रीहिर्यवश्च भेषजौ दिवस्पुत्रावमर्त्यौ ॥
स्वर रहित पद पाठअश्वत्थ: । दर्भ: । वीरुधाम् । सोम: । राजा । अमृतम् । हवि: । व्रीहि: । यव: । च । भेषजौ । दिव: । पुत्रौ । अमर्त्यौ ॥७.२०॥
अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 7; मन्त्र » 20
विषय - व्रीहिः यवः [च]
पदार्थ -
१. (अश्वत्थ:) = पीपल, (दर्भ:) = कुशा घास, (वीरुधां राजा सोम:) = वीरुधों [बेलों] का राजा 'सोम'-ये तीनों (अमृतं हविः) = अमृत हवि है-अमृत भोजन हैं [हु अदने]। इनका प्रयोग मनुष्य को मृत्यु [रोग] से बचाता है। २. व्रीहि:-चावल यवः च-और जौ ये दोनों तो भेषजौ-औषध ही हैं, दिवः पुत्रौ-[दिवु मदे] सब प्रकार के उन्माद से हमारा त्राण करनेवाले [पुनाति त्रायते] तथा अमत्यौं-रोगों के कारण हमें असमय में न मरने देनेवाले हैं।
भावार्थ -
'अश्वत्थ, दर्भ, सोम, व्रीहि और यव' ये हमें नीरोग बनाकर दीर्घजीवन देनेवाले हैं।
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