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  • अथर्ववेद - काण्ड 8/ सूक्त 7/ मन्त्र 10
    सूक्त - अथर्वा देवता - भैषज्यम्, आयुष्यम्, ओषधिसमूहः छन्दः - पथ्यापङ्क्तिः सूक्तम् - ओषधि समूह सूक्त

    उ॑न्मु॒ञ्चन्ती॑र्विवरु॒णा उ॒ग्रा या वि॑ष॒दूष॑णीः। अथो॑ बलास॒नाश॑नीः कृत्या॒दूष॑णीश्च॒ यास्ता इ॒हा य॒न्त्वोष॑धीः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उ॒त्ऽमु॒ञ्चन्ती॑: । वि॒ऽव॒रु॒णा: । उ॒ग्रा: । या: । वि॒ष॒ऽदूष॑णी: । अथो॒ इति॑ । ब॒ला॒स॒ऽनाश॑नी: । कृ॒त्या॒ऽदूष॑णी: । च॒ । या: । ता: । इ॒ह । आ । य॒न्तु॒ । ओष॑धी: ॥७.१०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उन्मुञ्चन्तीर्विवरुणा उग्रा या विषदूषणीः। अथो बलासनाशनीः कृत्यादूषणीश्च यास्ता इहा यन्त्वोषधीः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उत्ऽमुञ्चन्ती: । विऽवरुणा: । उग्रा: । या: । विषऽदूषणी: । अथो इति । बलासऽनाशनी: । कृत्याऽदूषणी: । च । या: । ता: । इह । आ । यन्तु । ओषधी: ॥७.१०॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 7; मन्त्र » 10

    पदार्थ -

    १. (ताः ओषधी:) = वे ओषधियाँ (इह आयन्तु) = यहाँ प्राप्त हों, (याः) = जोकि (उन्मुञ्चती:) = रोगों से मुक्त करनेवाली हैं। (विवरुणा) = विशेषरूप से वरणीय हैं, क्योंकि वे रोगों का निवारण करनेवाली हैं, (उग्राः) = जो अति प्रबल हैं, (विषदूक्षणी:) = विष को भी दूषित करनेवाली हैं। २. (अथो) = और अब (या:) = जो ओषधियों (बलासनाशनी:) = कफ़ का नाश करनेवाली हैं (च) = और (कृत्या दूषणी:) = छेदन-भेदन को दूषित करनेवाली हैं-छेदन-भेदन-जनित विकारों को दूर करनेवाली हैं।

    भावार्थ -

    रोग से मुक्त करनेवाली, रोग का निवारण [prevention] करनेवाली, प्रभाववाली, विषदूषणी, कफ-विकार की निवारक, छेदनजनित विकार को दूर करनेवाली-ये सब ओषधियाँ यहाँ प्राप्त हों।

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