Loading...

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 8/ सूक्त 7/ मन्त्र 28
    सूक्त - अथर्वा देवता - भैषज्यम्, आयुष्यम्, ओषधिसमूहः छन्दः - भुरिगनुष्टुप् सूक्तम् - ओषधि समूह सूक्त

    उत्त्वा॑हार्षं॒ पञ्च॑शला॒दथो॒ दश॑शलादु॒त। अथो॒ यम॑स्य॒ पड्वी॑शा॒द्विश्व॑स्माद्देवकिल्बि॒षात् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उत् । त्वा॒ । अ॒हा॒र्ष॒म् । पञ्च॑ऽशलात् । अथो॒ इति॑ । दश॑ऽशलात् । उ॒त । अथो॒ इति॑ । य॒मस्य॑ । पड्वी॑शात् । विश्व॑स्मात् । दे॒व॒ऽकि॒ल्बि॒षात् ॥७.२८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उत्त्वाहार्षं पञ्चशलादथो दशशलादुत। अथो यमस्य पड्वीशाद्विश्वस्माद्देवकिल्बिषात् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उत् । त्वा । अहार्षम् । पञ्चऽशलात् । अथो इति । दशऽशलात् । उत । अथो इति । यमस्य । पड्वीशात् । विश्वस्मात् । देवऽकिल्बिषात् ॥७.२८॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 7; मन्त्र » 28

    पदार्थ -

    १.(त्वा) = तुझे (पञ्चशलात्) = पाँच भूतों से बने इस शरीर में [शल गतौ] गति करनेवाले रोग से (उत आहार्षम्) = ऊपर उठाता हूँ, (अथो) = और अब इस नीरोग शरीर में (दशशलात् उत) = दस इन्द्रियों में गति करनेवाले शक्तिक्षीणतारूप दोष से भी ऊपर उठाता हूँ। २. (अथो) = अब (यमस्य पड्बीशात्) = यम के पादबन्धन से तुझे मुक्त करता हूँ-दीर्घजीवी बनाता हूँ और (विश्वस्मात) = सम्पूर्ण (देवकिल्बिषात्) = देवों के विषय में किये गये पापों से भी तुझे ऊपर उठाता हूँ।

    भावार्थ -

    हम शरीर व इन्द्रियों में स्वस्थ बनें। हमें अजितेन्द्रियता के कारण असमय की मृत्यु प्राप्त न हो। हम प्रभु की आज्ञा का उल्लंघन न करते हुए प्रभु के प्रिय बनें।

    अपने को तपस्या की अग्नि में परिपक्व करनेवाला यह उपासक भृगु' कहलाता है-अङ्ग प्रत्यङ्ग में रसवाला होने से 'अङ्गिराः'है, यही अगले सूक्त का ऋषि है।

     

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top