अथर्ववेद - काण्ड 8/ सूक्त 7/ मन्त्र 24
सूक्त - अथर्वा
देवता - भैषज्यम्, आयुष्यम्, ओषधिसमूहः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - ओषधि समूह सूक्त
याः सु॑प॒र्णा आ॑ङ्गिर॒सीर्दि॒व्या या र॒घटो॑ वि॒दुः। वयां॑सि हं॒सा या वि॒दुर्याश्च॒ सर्वे॑ पत॒त्त्रिणः॑। मृ॒गा या वि॒दुरोष॑धी॒स्ता अ॒स्मा अव॑से हुवे ॥
स्वर सहित पद पाठया: । सु॒ऽप॒र्णा: । आ॒ङ्गि॒र॒सी: । दि॒व्या: । या: । र॒घट॑: । वि॒दु: । वयां॑सि । हं॒सा: । या: । वि॒दु: । या: । च॒ । सर्वे॑ । प॒त॒त्रिण॑: । मृ॒गा: । या: । वि॒दु: । ओष॑धी: । ता: । अ॒स्मै । अव॑से । हु॒वे॒ ॥७.२४॥
स्वर रहित मन्त्र
याः सुपर्णा आङ्गिरसीर्दिव्या या रघटो विदुः। वयांसि हंसा या विदुर्याश्च सर्वे पतत्त्रिणः। मृगा या विदुरोषधीस्ता अस्मा अवसे हुवे ॥
स्वर रहित पद पाठया: । सुऽपर्णा: । आङ्गिरसी: । दिव्या: । या: । रघट: । विदु: । वयांसि । हंसा: । या: । विदु: । या: । च । सर्वे । पतत्रिण: । मृगा: । या: । विदु: । ओषधी: । ता: । अस्मै । अवसे । हुवे ॥७.२४॥
अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 7; मन्त्र » 24
विषय - सुपर्णा: मृगाः
पदार्थ -
१. या:-जिन आङ्गिरसी:-अंगों में रस का संचार करनेवाली औषधियों को सुपर्णाः [विदुः]-गरुड़ जानते हैं, या: दिव्या:-जिन दिव्य गुणोंवाली ओषधियों को रघट: विदुः अति वेग से उड़नेवाले पक्षी जानते हैं [रघु अटति]।या:-जिन औषधों को वांसि कौवे हंसा:-और हंस बिदुः-जानते हैं, या: च-और जिन्हें सर्वे पतत्रिण:-पंखोंवाले सब प्राणी जानते है, या: ओषधी:-जिन ओषधियों को मृगाः विदुः आरण्य हरिण आदि पशु जानते हैं, ता:-उन ओषधियों को अस्मै-इस पुरुष के लिए अवसे हुवे-रोगों से रक्षण के लिए पुकारते हैं।
भावार्थ -
प्रभु ने पशु-पक्षियों में वह स्वाभाविक चेतना रक्खी है, जिससे वे अद्धत ओषधियों को उपलब्ध कर पाते हैं। हम उन ओषधियों के समुचित प्रयोग से इस रूग्ण पुरुष को नीरोग बनानेवाले हों।
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