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  • यजुर्वेद - अध्याय 18/ मन्त्र 40
    ऋषिः - देवा ऋषयः देवता - चन्द्रमा देवता छन्दः - निचृदार्षी जगती स्वरः - निषादः
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    सु॒षु॒म्णः सूर्य॑रश्मिश्च॒न्द्रमा॑ गन्ध॒र्वस्तस्य॒ नक्ष॑त्राण्यप्स॒रसो॑ भे॒कुर॑यो॒ नाम॑। स न॑ऽइ॒दं ब्रह्म॑ क्ष॒त्रं पा॑तु॒ तस्मै॑ स्वाहा॒ वाट् ताभ्यः॒ स्वाहा॑॥४०॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सु॒षु॒म्णः। सु॒सु॒म्न इति॑ सुऽसु॒म्नः। सूर्य॑रश्मि॒रिति॒ सूर्य॑ऽरश्मिः। च॒न्द्रमाः॑। ग॒न्ध॒र्वः। तस्य॑। नक्ष॑त्राणि। अ॒प्स॒रसः॑। भे॒कुर॑यः। नाम॑। सः। नः॒। इ॒दम्। ब्रह्म॑। क्ष॒त्रम्। पा॒तु॒। तस्मै॑। स्वाहा॑। वाट्। ताभ्यः॑। स्वाहा॑ ॥४० ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सुषुम्णः सूर्यरश्मिश्चन्द्रमा गन्धर्वस्तस्य नक्षत्राण्यप्सरसो भेकुरयो नाम । स नऽइदम्ब्रह्म क्षत्रम्पातु तस्मै स्वाहा वाट्ताभ्यः स्वाहा ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    सुषुम्णः। सुसुम्न इति सुऽसुम्नः। सूर्यरश्मिरिति सूर्यऽरश्मिः। चन्द्रमाः। गन्धर्वः। तस्य। नक्षत्राणि। अप्सरसः। भेकुरयः। नाम। सः। नः। इदम्। ब्रह्म। क्षत्रम्। पातु। तस्मै। स्वाहा। वाट्। ताभ्यः। स्वाहा॥४०॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 18; मन्त्र » 40
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    भावार्थ -
    ( चन्द्रमाः ) चन्द्र ( सुषम्णः) उत्तम सुखप्रद, अथवा सुखस्वप्न या निद्रा देने वाला ( सूर्यरश्मिः )सूर्य की रश्मियों से प्रदीप्त होने वाला और ( गन्धर्वः ) रश्मियों को धारण करने से 'गन्धर्व' है । ( तस्य ) उसके ( नक्षत्राणि ) नक्षत्रगण ( अप्सरसः ) स्त्रियों के समान भोग्य, एवं ( भेकुरयः ) भा, दीप्ति करने से 'भेकुरि' कहाती हैं उसी प्रकार 'आह्लादकारी राजा भी चन्द्र के समान ( सुषुम्णः ) प्रजाओं को उत्तम सुख देने वाला ( सूर्यरश्मिः ) सूर्य के समान तेजस्वी, ( गन्धर्वः ) पृथ्वी का रक्षक है । ( तस्य ) उसके ( अप्सरसः ) ज्ञान, कर्म और प्रजाओं में विचरण करने वाली उत्तम प्रजाएं ( नक्षत्राणि ) कभी परास्त न होने वाली होने से 'नक्षत्र' कहाती हैं। वे ज्ञान दीप्ति करने वाली होने से ‘भेकुरि' कहाती हैं । ( स नः इदं० इत्यादि ) पूर्ववत् ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - चन्द्रमा देवता । निचृदार्षी जगती । निषादः ॥

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