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  • यजुर्वेद - अध्याय 29/ मन्त्र 38
    ऋषिः - भारद्वाज ऋषिः देवता - विद्वान् देवता छन्दः - निचृत् त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
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    जी॒मूत॑स्येव भवति॒ प्रती॑कं॒ यद्व॒र्मी याति॑ स॒मदा॑मु॒पस्थे॑।अना॑विद्धया त॒न्वा जय॒ त्वꣳ स त्वा॒ वर्म॑णो महि॒मा पि॑पर्त्तु॥३८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    जी॒मूत॑स्ये॒वेति॑ जी॒मूत॑स्यऽइव। भ॒व॒ति॒। प्रती॑कम्। यत्। व॒र्मी। याति॑। स॒मदा॒मिति॑ स॒ऽमदा॑म्। उ॒पस्थ॒ इत्यु॒पऽस्थे॑। अना॑विद्धया। त॒न्वा᳖। ज॒य॒। त्वम्। सः। त्वा॒। वर्म॑णः। म॒हि॒मा। पि॒प॒र्तु॒ ॥३८ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    जीमूतस्येव भवति प्रतीकँयद्वर्मी याति समदामुपस्थे । अनाविद्धया तन्वा जय त्वँ स त्वा वर्मणो महिमा पिपर्तु ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    जीमूतस्येवेति जीमूतस्यऽइव। भवति। प्रतीकम्। यत्। वर्मी। याति। समदामिति सऽमदाम्। उपस्थ इत्युपऽस्थे। अनाविद्धया। तन्वा। जय। त्वम्। सः। त्वा। वर्मणः। महिमा। पिपर्तु॥३८॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 29; मन्त्र » 38
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    भावार्थ -
    (यत्) जब ( वर्मी ) कवच पहने हुए योद्धा (समदाम् ) संग्रामों के (उपस्थे) समीप ( याति ) जाता है तब ( प्रतीकम् ) सेना का का मुख ( जीमूतस्य इव ) मेघ के समान होता है । जिस प्रकार मेघ बिजुलियों, गर्जनों और बौछारों से भयंकर होता है उसी प्रकार आग्नेयास्त्रों की लपट, शस्त्रों की चमक, उसके गर्जन और शस्त्र वर्षा से सेना का मुख भी भयंकर होता है । अथवा उस कवचधारी वीर का ही ( प्रतीकम् ) स्वरूप मेघ के समान होता है । शरीर पर मेघ के समान श्याम कवच' और हाथ में बिजुली के समान तीव्र तलवार और वर्षण करने को शस्त्रास्त्र होते हैं । हे वीर पुरुष ! ( त्वम् ) तू ऐसे रणसंकट में भी (अनाविद्धया) बिना चोट खाये, सुरक्षित ( तन्वा ) शरीर से या अनष्ट विस्तृत सेना से (जय) विजय कर । (वर्मणः) कवच का (सः महिमा) वह महान् सामर्थ्य ही (त्वा पिपर्तु) तेरी रक्षा करे ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - पायुर्भारद्वाजः । सन्नाहादीनि संग्रामाङ्गानि, विद्वान् वीरः । निचृत् त्रिष्टुप् । धैवतः ॥

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