Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 29/ मन्त्र 52
    ऋषिः - भारद्वाज ऋषिः देवता - शरदृतुर्देवता छन्दः - भुरिक् पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः
    1

    वन॑स्पते वी॒ड्वङ्गो॒ हि भू॒याऽअ॒स्मत्स॑खा प्र॒तर॑णः सु॒वीरः॑।गोभिः॒ सन्न॑द्धोऽअसि वी॒डय॑स्वास्था॒ता ते॑ जयतु॒ जेत्वा॑नि॥५२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वन॑स्पते। वी॒ड्व᳖ङ्ग॒ इति॑ वी॒डुऽअ॑ङ्गः। हि। भू॒याः। अ॒स्मत्स॒खेत्य॒स्मत्ऽस॑खा। प्र॒तर॑ण॒ इति॑ प्र॒ऽतर॑णः। सु॒वीर॒ इति॑ सु॒ऽवीरः॑। गोभिः॑। सन्न॑द्ध॒ इति॒ सम्ऽन॑द्धः अ॒सि॒। वी॒डय॑स्व। आ॒स्था॒तेत्या॑ऽस्था॒ता। ते॒। ज॒य॒तु॒। जेत्वा॑नि ॥५२ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वनस्पते वीड्वङ्गो हि भूयाऽअस्मत्सखा प्रतरणः सुवीरः । गोभिः सन्नद्धोऽअसि वीडयस्वास्थाता ते जयतु जेत्वानि् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    वनस्पते। वीड्वङ्ग इति वीडुऽअङ्गः। हि। भूयाः। अस्मत्सखेत्यस्मत्ऽसखा। प्रतरण इति प्रऽतरणः। सुवीर इति सुऽवीरः। गोभिः। सन्नद्ध इति सम्ऽनद्धः असि। वीडयस्व। आस्थातेत्याऽस्थाता। ते। जयतु। जेत्वानि॥५२॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 29; मन्त्र » 52
    Acknowledgment

    भावार्थ -
    हे (वनस्पते) किरणों के पालक सूर्य, जलों के पालक मेघ के समान मुख्य सेना पुरुषों के पालक सेनापते ! तू (अस्मत्सखा) हमारी मित्र, (प्रतरण:) युद्ध आदि संकटों से, रथ के समान, नदी पर नाव के समान, पार कराने वाला, (सुवीरः) उत्तम वीर योद्धाओं से युक्त एवं स्वयं भी वीर (वीड्वङ्गः) दृढ अंगों वाला (भूयाः) होकर रह । (गोभिः ) रथ जैसे गोमर्चौं से ढका एवं रासों से बंधा होता है उसी प्रकार तू (गोभिः) दूध के बने नाना पदार्थों से दृढ़ शरीर या अपने मुख्य नायक की आज्ञाओं से (संनद्धः असि) अच्छी प्रकार बद्ध है । तू (वीडयस्व) खूब वीर कर्म कर । (ते आस्थाता) तेरे आश्रय रहने वाला तेरा अधिष्ठाता भी (जेत्वानि ) विजय करने योग्य पदार्थों को (जयतु ) जीते ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - गर्गो भारद्वाजः । सुवीरो वनस्पतिः । भुरिक् पंक्तिः । पंचमः ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top