यजुर्वेद - अध्याय 29/ मन्त्र 59
ऋषिः - भारद्वाज ऋषिः
देवता - अग्न्यादयो देवताः
छन्दः - भुरिगतिशक्वरी
स्वरः - पञ्चमः
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अ॒ग्नयेऽनी॑कवते॒ रोहि॑ताञ्जिरन॒ड्वान॒धोरा॑मौ सावि॒त्रौ पौ॒ष्णौ र॑ज॒तना॑भी वैश्वदे॒वौ पि॒शङ्गौ॑ तूप॒रौ मा॑रु॒तः क॒ल्माष॑ऽआग्ने॒यः कृ॒ष्णोऽजः सार॑स्व॒ती मे॒षी वा॑रु॒णः पेत्वः॑॥५९॥
स्वर सहित पद पाठअ॒ग्नये॑। अनी॑कवत॒ इन्यनी॑कऽवते। रोहि॑ताञ्जि॒रिति॒ रोहि॑तऽअञ्जिः। अ॒न॒ड्वान्। अ॒धोरा॑मा॒वित्य॒धःरा॑मौ। सा॒वि॒त्रौ। पौ॒ष्णौ। र॒ज॒तना॑भी॒ इति॑ रज॒तऽना॑भी। वै॒श्व॒दे॒वाविति॑ वैश्वऽदे॒वौ। पि॒शङ्गौ॑। तू॒प॒रौ। मा॒रु॒तः। क॒ल्माषः॑। आ॒ग्ने॒यः। कृ॒ष्णः। अ॒जः। सा॒र॒स्व॒ती। मे॒षी। वा॒रु॒णः। पेत्वः॑ ॥५९ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अग्नयेनीकवते रोहिताञ्जिरनड्वानधोरामौ सावित्रौ पौष्णौ रजतनाभी वैश्वदेवौ पिशङ्गौ तूपरौ मारुतः कल्माषऽआग्नेयः कृष्णो जः सारस्वती मेषी वारुणः पेत्वः ॥
स्वर रहित पद पाठ
अग्नये। अनीकवत इन्यनीकऽवते। रोहिताञ्जिरिति रोहितऽअञ्जिः। अनड्वान्। अधोरामावित्यधःरामौ। सावित्रौ। पौष्णौ। रजतनाभी इति रजतऽनाभी। वैश्वदेवाविति वैश्वऽदेवौ। पिशङ्गौ। तूपरौ। मारुतः। कल्माषः। आग्नेयः। कृष्णः। अजः। सारस्वती। मेषी। वारुणः। पेत्वः॥५९॥
विषय - भिन्न-भिन्न अधिकारियों के अधीन नियुक्त भिन्न-भिन्न भृत्यों के विभेदक चिह्न और लक्षण । भिन्न-भिन्न उपसमितियों कह कपालभेद से भेद वर्णन ।
भावार्थ -
( अनीकवत अग्नये रोहिताञ्जिः अनड्वान् ) अनीकवान् सेनामुख के स्वामी, अग्रणी पुरुष का लक्षण लाल वर्ण का वृषभ हो । अर्थात् जिस प्रकार लाल लंगोटी का बैल शकट को ढोता है उसी प्रकार वह अग्रणी पुरुष, सेनाव्यूह के अग्र में रह कर सेनाव्यूह को मार्ग पर ले जाता है । इसी से उस अग्रणी नेता का व्यंग्य लक्षण लाल चिह्न का शकटवाही बैल है । (अधोरामौ सावित्रौ ) सविता अर्थात् पुत्र-प्रजनन करने में समर्थ स्त्री पुरुष अपने अधोभाग, इन्द्रियों से रमण करते हैं उससे उनके प्रतिनिधि चिह्न 'अधोराम' नीचे को शुक्र वाले या अधोभाग में शुक्र = श्वेत भाग वाला पशु नियत जानो । (पौष्णो) प्रजाओं के पालन पोषण करने वाले धनाढ्य स्त्री-पुरुष दोनों (रजतनाभी) मानो सबको सुवर्ण, चांदी, धन से अपने साथ बांध लेने में समर्थ होते हैं । इसलिये उनके लक्षण नाभि में स्थित श्वेत वर्ण वाले दो पशु हैं । (वैश्वदेवौ पिशङ्गौ) विश्वदेव, सामान्य प्रजा के स्त्री-पुरुष निःशस्त्र होने से (तुपरौ ) बिना सींग के पशु उनके चिह्न हैं । (मारुतः कल्माषः ) वायुयथा वेग से आकाश को धूलिधूसरित या मेघावृत कर देता है उसी प्रकार मरुत् के समान तीव्र वेगवान् सेना के जन युद्धस्थल को नाना वर्णों से रंग देते हैं इसलिये उनका निदर्शक चिह्न चितकबरा या खाकी पशु है । (आग्नेयः कृष्णः यजः) अग्नि अस्त्र आदि के विभाग का चिह्न 'श्याम यज' है, क्योंकि उनके अग्नि -अस्त्र में श्याम अर्थात् काला बारूद, मसाला और भज भर्थात् गोले आदि के दूर फेंकने के लिये बल प्रयुक्त होता है इस श्लेष से उनका निदर्शक 'कृष्ण यज' है । (सारस्वती मेषी) भेड़ जिस प्रकार सिर झुका कर चलती है और मेष जिस प्रकार माथे से प्रहार करता है उसी प्रकार सरस्वती के उपासक विद्वान् विनय से रहते हैं और मस्तक से विज्ञान द्वारा स्पर्धा करते हैं, इसलिये उनकी सभा सरस्वती का लक्षण 'मेषी" है । (वारुण: पेत्व:) जल जिस प्रकार अति शीघ्रगामी है और जिस प्रकार दुष्टों का वारक दमनकारी सिपाही भी अति शीघ्रकारी है उसका चिह्न भी (पेत्वः) शीघ्रगन्ता अश्व है ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - ५८, ५६, ६० – इमानि ब्राह्मणवाक्यानि द्रव्यदेवताप्रतिपादकानि न तुं मन्त्राः इति महीधरो याशिकोऽनन्तदेवश्च ॥ भुरिगतिशकरी । पंचमः ॥
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