ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 61/ मन्त्र 22
ऋषिः - नाभानेदिष्ठो मानवः
देवता - विश्वेदेवा:
छन्दः - पादनिचृत्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
अध॒ त्वमि॑न्द्र वि॒द्ध्य१॒॑स्मान्म॒हो रा॒ये नृ॑पते॒ वज्र॑बाहुः । रक्षा॑ च नो म॒घोन॑: पा॒हि सू॒रीन॑ने॒हस॑स्ते हरिवो अ॒भिष्टौ॑ ॥
स्वर सहित पद पाठअध॑ । त्वम् । इ॒न्द्र॒ । वि॒द्धि । अ॒स्मान् । म॒हः । रा॒ये । नृ॒ऽप॒ते॒ । वज्र॑ऽबाहुः । रक्ष॑ । च॒ । नः॒ । म॒घोनः॑ । पा॒हि । सू॒रीन् । अ॒ने॒हसः॑ । ते॒ । ह॒रि॒ऽवः॒ । अ॒भिष्टौ॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अध त्वमिन्द्र विद्ध्य१स्मान्महो राये नृपते वज्रबाहुः । रक्षा च नो मघोन: पाहि सूरीननेहसस्ते हरिवो अभिष्टौ ॥
स्वर रहित पद पाठअध । त्वम् । इन्द्र । विद्धि । अस्मान् । महः । राये । नृऽपते । वज्रऽबाहुः । रक्ष । च । नः । मघोनः । पाहि । सूरीन् । अनेहसः । ते । हरिऽवः । अभिष्टौ ॥ १०.६१.२२
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 61; मन्त्र » 22
अष्टक » 8; अध्याय » 1; वर्ग » 30; मन्त्र » 2
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अष्टक » 8; अध्याय » 1; वर्ग » 30; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(अध) अनन्तर (नृपते-इन्द्र) मुमुक्षुओं के पालक परमात्मन् ! (त्वं वज्रबाहुः-अस्मान् विद्धि) तू ओज का वहन करनेवाला हमें जान कि हम तेरे उपासक हैं (मघोनः-नः-रक्ष च) अध्यात्मयज्ञवाले हम लोगों की रक्षा कर (हरिवः-ते-अभिष्टौ) हे दया-प्रसादवाले, तेरी अभिकाङ्क्षा में वर्तमान (अनेहसः सूरीन् पाहि) हम निष्पाप मेधावी उपासकों की रक्षा कर-अपना आनन्द प्रदान करके ॥२२॥
भावार्थ
जो परमात्मा के उपासक पापरहित अध्यात्मयज्ञ करनेवाले होते हैं, वे परमात्मा की दया और प्रसाद के पात्र बनते हैं। परमात्मा उन्हें अपना आनन्ददान देकर उनकी रक्षा करता है ॥२२॥
विषय
प्रभु से रक्षा, और निष्पाप होने की प्रार्थना।
भावार्थ
(अध) और हे (इन्द्र) ऐश्वर्यवन् प्रभो ! (त्वम्) तू (अस्मान् विद्धि) हम को प्राप्त कर, हमें जान। हे (नृपते) मनुष्यों के पालक ! राजा के तुल्य सर्व जीवों के स्वामिन् ! (वज्रबाहुः) वीर्ययुक्त बाहु वाला होकर (महः राये) बड़े भारी ऐश्वर्य के लिये (अस्मान्) हमारी (रक्ष) रक्षा कर। (नः मघोनः) ऐश्वर्यवानों और (नः सूरीन्) हम में से विद्वानों की (पाहि) रक्षा कर। हम (ते अभिष्टौ) तेरे अभीष्ट शासन में (अनेहसः) पाप आदि से रहित होकर रहें।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
नाभानेदिष्ठो मानवः। विश्वेदेवा देवताः॥ छन्द:–१, ८–१०, १५, १६, १८,१९, २१ निचृत् त्रिष्टुप्। २, ७, ११, १२, २० विराट् त्रिष्टुप्। ३, २६ आर्ची स्वराट् त्रिष्टुप्। ४, १४, १७, २२, २३, २५ पादनिचृत् त्रिष्टुप्। ५, ६, १३ त्रिष्टुप्। २४, २७ आर्ची भुरिक् त्रिष्टुप्। सप्तविंशत्यृचं सूक्तम्॥
विषय
अनेहस्
पदार्थ
[१] हे (नृपते) = नरों के रक्षक (इन्द्र) = परमैश्वर्यशाली प्रभो ! (अध) = अब (त्वम्) = आप (अस्मान्) = हमें (महोराये) = महान् धन के लिये (विद्धि) = जानिये । आपकी कृपा से हम महनीय धन को प्राप्त करनेवाले हों । धन को तो हम प्राप्त करें ही, पर वह धन उत्तम साधनों से ही सदा कमाया जाए। [२] हे प्रभो ! आप (वज्रबाहुः) = वज्रयुक्त बाहुवाले हैं, दुष्टों को दण्ड देनेवाले हैं। (नः) = हमारे (मघोनः) = यज्ञशील (सूरीन्) = ज्ञानी पुरुषों को (रक्षा च) = अवश्य रक्षित करिये। आपकी रक्षा के पात्र वे ही होते हैं जो कि उत्तम साधनों से कमाये गये धनों का यज्ञात्मक कर्मों में ही विनियोग करते हैं और जो ज्ञान को महत्त्व देते हैं। [३] हे (हरिवः) = प्रशस्त इन्द्रिय रूप अश्वों को प्राप्त करानेवाले प्रभो! (ते) = आपकी अभिष्टौ प्राप्ति में, अभिगमन में (अनेहसः) = हम पाप शून्य जीवनवाले हों आप हमें उत्तम इन्द्रियों को प्राप्त कराते हैं, आपकी उपासना से वे इन्द्रियाँ उत्तम ही बनी रहती हैं, विषय पंक में वे इन्द्रियाँ फँसनेवाली नहीं होती। प्रभु की उपासना से बासनाएँ विनष्ट होती हैं और हमारा जीवन पवित्र बना रहता है ।
भावार्थ
भावार्थ- प्रभु कृपा से हमें महान् धन प्राप्त हो । यज्ञशील ज्ञानी बनकर हम आपकी रक्षा के पात्र हों। आपकी उपासना से हमारा जीवन निष्पाप हो ।
संस्कृत (1)
पदार्थः
(अध) अनन्तरं (नृपते-इन्द्र) मुमुक्षूणां पालक परमात्मन् ! “नरो ह वै देवविशः” [जै० १।८९] (त्वं वज्रबाहुः-अस्मान् विद्धि) त्वमोजोवाहकः सन् खल्वस्मान् “वज्रं वा ओजः” [श० ८।४।१।२०] जानीहि यद् वयं तवोपासका इति (मघोनः-नः-रक्ष च) अध्यात्मयज्ञवतोऽस्मान् रक्ष “यज्ञेन मघवान्” [तै० सं० ४।४।८।१] (हरिवः-ते-अभिष्टौ-अनेहसः सूरीन् पाहि) हे दयाप्रसादवन् ! तवाभिकाङ्क्षायां वर्तमानान् निष्पापान् मेधाविन उपासकान् पालय स्वानन्ददानेन ॥२२॥
इंग्लिश (1)
Meaning
And O lord of might and glory, Indra, magnanimous lord protector of humanity, wielder of thunder arms, pray know us and grant us our prayers for wealth, honour and excellence. O lord of nature’s forces and destroyer of suffering, protect us, promote us, all dedicated to the power and honour gifts of divine favour. We pray let us enjoy your love and good will that we may live in a state of freedom from sin and evil.
मराठी (1)
भावार्थ
जे परमात्म्याचे उपासक, पापरहित अध्यात्मयज्ञ करणारे असतात. ते परमात्म्याची दया व प्रसादाचे पात्र बनतात. परमात्मा त्यांना आपल्या आनंदाचे दान देऊन त्यांचे रक्षण करतो. ॥२२॥
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