ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 61/ मन्त्र 24
ऋषिः - नाभानेदिष्ठो मानवः
देवता - विश्वेदेवा:
छन्दः - भुरिगार्चीत्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
अधा॒ न्व॑स्य॒ जेन्य॑स्य पु॒ष्टौ वृथा॒ रेभ॑न्त ईमहे॒ तदू॒ नु । स॒र॒ण्युर॑स्य सू॒नुरश्वो॒ विप्र॑श्चासि॒ श्रव॑सश्च सा॒तौ ॥
स्वर सहित पद पाठअध॑ । नु । अ॒स्य॒ । जेन्य॑स्य । पु॒ष्टौ । वृथा॑ । रेभ॑न्तः । ई॒म॒हे॒ । तत् । ऊँ॒ इति॑ । नु । स॒र॒ण्युः । अ॒स्य॒ । सू॒नुः । अश्वः॑ । विप्रः॑ । च॒ । अ॒सि॒ । श्रव॑सः । च॒ । सा॒तौ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अधा न्वस्य जेन्यस्य पुष्टौ वृथा रेभन्त ईमहे तदू नु । सरण्युरस्य सूनुरश्वो विप्रश्चासि श्रवसश्च सातौ ॥
स्वर रहित पद पाठअध । नु । अस्य । जेन्यस्य । पुष्टौ । वृथा । रेभन्तः । ईमहे । तत् । ऊँ इति । नु । सरण्युः । अस्य । सूनुः । अश्वः । विप्रः । च । असि । श्रवसः । च । सातौ ॥ १०.६१.२४
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 61; मन्त्र » 24
अष्टक » 8; अध्याय » 1; वर्ग » 30; मन्त्र » 4
Acknowledgment
अष्टक » 8; अध्याय » 1; वर्ग » 30; मन्त्र » 4
Acknowledgment
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(अध नु) और फिर (अस्य जेन्यस्य) इस जगत्स्वामी परमात्मा की (पुष्टौ) आत्मपुष्टि-पोषणशक्ति के निमित्त (वृथा) अनायास-सरल भाव से (रेभन्तः) स्तुति करते हुए (तत्-उ नु-ईमहे) प्रार्थना करते हैं (अस्य सरण्युः) इस जगत् का चलानेवाला तथा (सूनुः) उत्पादक, (अश्वः) व्यापक (च) तथा (श्रवसः) श्रवणीय यशोरूप भोग की (सातौ विप्रः-असि) प्रप्ति के लिए विशिष्टतया पूर्ण करनेवाला हे परमात्मन् ! तू है ॥२४॥
भावार्थ
परमात्मा जगत् का उत्पादक, इसमें व्यापक और इसका नियन्ता है तथा हमार पोषणकर्ता है, उसके श्रवणीय यश और गुणों तथा सुखलाभ के लिए प्रार्थना करनी चाहिए ॥२४॥
विषय
अवश्य प्रार्थनीय सर्वसुखप्रद प्रभु
भावार्थ
(अध नु) और (अस्य जेन्यस्य) उस सर्वविजयी सर्वोपरि प्रभु के (पुष्टौ) पोषण को प्राप्त करने के लिये (रेभन्तः) उसका गुणगान करते हुए हम (वृथा) अनायास ही (ईमहे) याचना करते और अभिलषित पदार्थ प्राप्त करते हैं। (तत् उ नु) इसी कारण वह ही तू (सरण्युः) सर्वत्र व्यापक, (अस्य सूनुः) इस लोक का सञ्चालक, (अश्वः) इस जगत् का भोक्ता, और (श्रवसः च सातौ) ज्ञान-ऐश्वर्यादि विभाग करने में (विप्रः) बड़ा कुशल (असि) है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
नाभानेदिष्ठो मानवः। विश्वेदेवा देवताः॥ छन्द:–१, ८–१०, १५, १६, १८,१९, २१ निचृत् त्रिष्टुप्। २, ७, ११, १२, २० विराट् त्रिष्टुप्। ३, २६ आर्ची स्वराट् त्रिष्टुप्। ४, १४, १७, २२, २३, २५ पादनिचृत् त्रिष्टुप्। ५, ६, १३ त्रिष्टुप्। २४, २७ आर्ची भुरिक् त्रिष्टुप्। सप्तविंशत्यृचं सूक्तम्॥
विषय
अनायास स्तवन
पदार्थ
[१] (अधा नु) = अब निश्चय से (अस्य जेन्यस्य) = इस विजयशील परमात्मा के (पुष्टौ) = पोषण में, प्रभु को अपने हृदय में धारण करने पर (वृथा) = अनायास ही (रेभन्ते) ये प्रभु-भक्त उसका स्तवन कर उठते हैं । (तद् उ नु) = उस प्रभु की ओर ही निश्चय से (ईमहे) = [ ई = to go ] हम चलते हैं । [२] (सरण्युः) = यह अपनी प्रत्येक क्रिया से प्रभु की ओर चलनेवाला व्यक्ति (अस्य सूनुः) = इस प्रभु का सच्चा पुत्र होता है । (अश्वः) = [अश्रुते कर्मसु ] सदा कर्मों में व्याप्त होनेवाला यह प्रभु-भक्त (विप्रः) = अपना पूरण करनेवाला होता है (च) = और (श्रवसः) = ज्ञान के (सातौ) = सम्भजन व प्राप्ति में असि होता है । इसका पुरुषार्थ ज्ञान वृद्धि के लिये होता है । [३] 'रेभन्ते' शब्द स्तुति का उल्लेख करता है, 'सरण्यु व अश्व' शब्द क्रियाओं में लगे रहने का भाव देते हैं और 'श्रवसः साति' ज्ञान प्राप्ति का संकेत करते हैं । एवं इसके जीवन में 'स्तुति, कर्म व ज्ञान' का सुन्दर समन्वय होता है । इसका हृदय प्रभु का स्तवन करता है, हाथ कर्मों में व्याप्त करते हैं और यह मस्तिष्क को ज्ञान से दीप्त करने का प्रयत्न करता है ।
भावार्थ
भावार्थ - हम सब विजयों को प्रभु की ओर से होता हुआ जानें। क्रियाशील व ज्ञानमय जीवनवाले बनें। हम प्रभु के निष्काम आराधक हों ।
इंग्लिश (1)
Meaning
And so for the sake of our growth and progress under the protection of this lord absolute and all victorious master of the universe, we spontaneously sing and pray : you are the creator and sole mover of this universe, all pervasive and dominant, all providing giver of fulfilment and most renowned harbinger of success and victory.
मराठी (1)
भावार्थ
पमरेश्वर जगाचा उत्पादक त्यात व्यापक व त्याचा नियंता आहे व आमचा पोषणकर्ता आहे. त्याचे श्रवणीय यश, गुण व सुखलाभ व्हावा यासाठी प्रार्थना केली पाहिजे. ॥२४॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal