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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 61 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 61/ मन्त्र 9
    ऋषिः - नाभानेदिष्ठो मानवः देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    म॒क्षू न वह्नि॑: प्र॒जाया॑ उप॒ब्दिर॒ग्निं न न॒ग्न उप॑ सीद॒दूध॑: । सनि॑ते॒ध्मं सनि॑तो॒त वाजं॒ स ध॒र्ता ज॑ज्ञे॒ सह॑सा यवी॒युत् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    म॒क्षु । न । वह्निः॑ । प्र॒ऽजायाः॑ । उ॒प॒ब्दिः । अ॒ग्निम् । न । न॒ग्नः । उप॑ । सीद॑त् । ऊधः॑ । सनि॑ता । इ॒ध्मम् । सनि॑ता । उ॒त । वाज॑म् । सः । ध॒र्ता । ज॒ज्ञे॒ । सह॑सा । य॒वि॒ऽयुत् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मक्षू न वह्नि: प्रजाया उपब्दिरग्निं न नग्न उप सीददूध: । सनितेध्मं सनितोत वाजं स धर्ता जज्ञे सहसा यवीयुत् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    मक्षु । न । वह्निः । प्रऽजायाः । उपब्दिः । अग्निम् । न । नग्नः । उप । सीदत् । ऊधः । सनिता । इध्मम् । सनिता । उत । वाजम् । सः । धर्ता । जज्ञे । सहसा । यविऽयुत् ॥ १०.६१.९

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 61; मन्त्र » 9
    अष्टक » 8; अध्याय » 1; वर्ग » 27; मन्त्र » 4
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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (प्रजायाः-वह्निः) दुहिता-कन्या का वोढा-पति (उपब्दिः) विवाह करके कन्या को पीड़ित करता है, पीडक होता हुआ (अग्निं न नग्नः) अग्नि की भाँति कामातुर हुआ (ऊधः-मक्षु न उपसीदत्) रात में कन्या को सहसा प्राप्त न हो-न छूए (इध्मं सनिता-उत वाजं सनिता सः-धर्ता) विवाहयज्ञ में समिधाओं का आधान करनेवाला-सेवन करनेवाला और अपने बल का सेवन करनेवाला वह पोषक (यवीयुत्) संयुक्त योग्य कन्या को संयुक्त्त होनेवाला (सहसा जज्ञे) योग्य बल से पुत्र को उत्पन्न करता है अर्थात् पुत्रप्राप्ति का अधिकारी बनता है, अन्यथा नहीं, इसलिए पत्नी का अनादर न करे ॥९॥

    भावार्थ

    कन्या का वोढा अर्थात् पति कन्या को कष्ट देनेवाला न बने और बलात् उसका स्पर्श न करे। विवाहकाल में अर्थात् विवाहसंस्कार में विधि से अग्न्याधान करके उसमें पुत्र उत्पन्न करने का अधिकारी बना है, अतः उसमें योग्य सन्तान को उत्पन्न करे, उसका कभी अनादर न करे ॥९॥

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    विषय

    चौरवत् व्यक्ति के हाथ कन्या को न देकर वीर पुरुष के हाथ कन्यादि का दान करे।

    भावार्थ

    (अग्निम् नग्नः न) आग को जिस प्रकार कोई नग्न पुरुष सीधे चर्ममय हाथों से (न मक्षु उपसीदत्) सहसा नहीं प्राप्त कर सकता उसी प्रकार (उपब्दिः) पीड़ाकारी दुष्ट जन (प्रजायाः वह्निः) सन्तानको विवाह-विधि से ग्रहण करने वाला होकर (ऊधः) रात्रिकाल में (न उपसीदत्) हमें प्राप्त न हो। यदि कोई दुष्ट आवे भी तो वह भस्म हो जाय। क्योंकि (इध्मम् सनिता) जो अग्नि में समिधा को रखे, (उत वाजं सनिता) जो ऐश्वर्य या बल वीर्य प्रदान करे (सः) वह (यवीयुत्) सेना द्वारा युद्धकुशल पुरुष ही (सहसा) अपने बल से (धर्त्ता जज्ञे) भूमिवत् प्रजा का धारक पोषक होता है और जाना जाता है। दुष्ट पीड़क के हाथ में प्रजा और अपनी कन्या वा सम्पत्ति को न दें। वह रात्रिकाल में हम तक न पहुंच सके। प्रत्युत बल से सब को जीतने वाला यज्ञकर्त्ता, बलवान् धनप्रद ही प्रजा का राजा, वा स्वामी बने।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    नाभानेदिष्ठो मानवः। विश्वेदेवा देवताः॥ छन्द:–१, ८–१०, १५, १६, १८,१९, २१ निचृत् त्रिष्टुप्। २, ७, ११, १२, २० विराट् त्रिष्टुप्। ३, २६ आर्ची स्वराट् त्रिष्टुप्। ४, १४, १७, २२, २३, २५ पादनिचृत् त्रिष्टुप्। ५, ६, १३ त्रिष्टुप्। २४, २७ आर्ची भुरिक् त्रिष्टुप्। सप्तविंशत्यृचं सूक्तम्॥

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    विषय

    प्रजा का अपीड़क

    पदार्थ

    [१] यह राष्ट्रपति (मक्षू) = शीघ्र, स्फूर्ति से (वह्निः) = प्रजाओं के कार्यों का वहन करनेवाला होता है और कभी भी (प्रजायाः) = प्रजा का (उपब्दिः) = उपपीड़क (न) = नहीं होता [ उपब्दि=rwise in geneue] यह कष्टों से प्रजाओं को रुलानेवाला नहीं होता । [२] दिनभर राजकार्यों में लगे रहने के कारण (ऊधः) = रात्रि में (अग्निं उपसीदत्) = उस अग्रेणी प्रभु की उपासना करता है, (न नग्नः) = यह कभी भी निर्लज्ज नहीं होता । प्रभु का उपासन इसे अधर्म के कार्यों से डरनेवाला बनाये रखता है । सोते समय प्रभु का स्मरण करते हुए सोने के कारण सारी रात्रि इसका प्रभु से सम्पर्क बने रहता है, उस प्रभु से इसे धर्मप्रवृत्त बने रहने के लिये प्रेरणा मिलती रहती है । [३] यह (इध्मं सनिता) = प्रजाओं में ज्ञानदीप्ति को देनेवाला होता है, शिक्षा की उचित व्यवस्था के द्वारा यह सर्वत्र ज्ञान का प्रसार करता है, इसके राष्ट्र में कोई अशिक्षित नहीं रहता । (उत) = और यह (वाजं सनिता) = शक्ति को देनेवाला होता है। राष्ट्र में स्वास्थ्य के लिये उचित व्यवस्थाओं के द्वारा यह रोगों को नहीं आने देता और लोगों में शक्ति का वर्धन करता है। इस प्रकार (स) = वह राष्ट्रपति धर्ता जज्ञे राष्ट्र का धारण करनेवाला होता है। प्रजाओं में ज्ञान व शक्ति के संचार से बढ़कर राष्ट्रधारण का और कार्य हो ही क्या सकता है ? [४] यह राष्ट्रपति सहसा बल के द्वारा यवी - युत्- [यु- मिश्रणामिश्रणे ] सदा तोड़-फोड़ के कार्यों में लगे रहनेवाले राक्षसों से युद्ध करनेवाला होता है। राष्ट्र में इन चोर-डाकू आदि के आतंक को नहीं फैलने देता। इनको उचित शक्ति के प्रयोग के द्वारा दबाये रखता है ।

    भावार्थ

    भावार्थ- कार्यों को शीघ्रता से करता हुआ राष्ट्रपति प्रजा का पीड़क न हो। रात्रि में प्रभु का स्मरण करते हुए सो जाए। राष्ट्र में ज्ञान व शक्ति को फैलाये । चोर-डाकुओं के आतंक को दूर करे।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    The master of the home is the leader, burden bearer and the voice of the people. He must never defile the common wealth of this earthly home like a stingy selfish man defiling the sacred fire. In fact he is arisen as the protector, sharer and trustee of the common assets, energy, honour and progress of the nation, who works for its unity and advancement with his power, patience and fortitude.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    कन्येचा पती तिला कष्ट देणारा नसावा. बलपूर्वक स्पर्श करणारा नसावा. विवाह काळी अर्थात् विवाह संस्कार विधीने अग्न्याधान करून पुत्र उत्पन्न करण्याचा अधिकारी बनलेला असतो. त्यामुळे योग्य संतान निर्माण करावे. पत्नीचा कधीही अनादर करू नये. ॥९॥

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