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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 61 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 61/ मन्त्र 23
    ऋषिः - नाभानेदिष्ठो मानवः देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - पादनिचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    अध॒ यद्रा॑जाना॒ गवि॑ष्टौ॒ सर॑त्सर॒ण्युः का॒रवे॑ जर॒ण्युः । विप्र॒: प्रेष्ठ॒: स ह्ये॑षां ब॒भूव॒ परा॑ च॒ वक्ष॑दु॒त प॑र्षदेनान् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अध॑ । यत् । रा॒जा॒ना॒ । गोऽइ॑ष्टौ । सर॑त् । स॒र॒ण्युः । का॒रवे॑ । ज॒र॒ण्युः । विप्रः॑ । प्रेष्ठः॑ । सः । हि । ए॒षा॒म् । ब॒भूव॒ । परा॑ । च॒ । वक्ष॑त् । उ॒त । प॒र्ष॒त् । ए॒ना॒न् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अध यद्राजाना गविष्टौ सरत्सरण्युः कारवे जरण्युः । विप्र: प्रेष्ठ: स ह्येषां बभूव परा च वक्षदुत पर्षदेनान् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अध । यत् । राजाना । गोऽइष्टौ । सरत् । सरण्युः । कारवे । जरण्युः । विप्रः । प्रेष्ठः । सः । हि । एषाम् । बभूव । परा । च । वक्षत् । उत । पर्षत् । एनान् ॥ १०.६१.२३

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 61; मन्त्र » 23
    अष्टक » 8; अध्याय » 1; वर्ग » 30; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (अध) अनन्तर (यद्-राजाना) जब ज्ञान से प्रकाशमान हे मुमुक्षु जनो ! (गविष्टौ) मोक्ष की इच्छा में (सरण्युः सरत्) गतिशील गति करता है-अग्रसर होता है (कारवे जरण्युः) सृष्टिकर्ता परमात्मा के लिए स्तुति का इच्छुक होता है (सः-हि-एषां विप्रः प्रेष्ठः बभूव) वह मेधावी मुमुक्षुओं के मध्य परमात्मा का अतिप्रिय होता है (च) तथा (एनान्) अन्य जनों को (परावक्षत्) परमात्मा के प्रति प्रेरित करता है (उत) और (पर्षत्) संसारसागर से पार करता है ॥२३॥

    भावार्थ

    मुमुक्षु जनों में जब मोक्ष का इच्छुक हुआ परमात्मा की अत्यन्त स्तुति करता है, वह परमात्मा का अत्यन्त प्रिय बन जाता है और दूसरों को भी परमात्मा की स्तुति के लिए प्रेरित करता है, वह मानो संसारसागर से उन्हें पार कराता है ॥२३॥

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    विषय

    सन्यासी उपदेष्टा के कर्त्तव्य।

    भावार्थ

    हे (राजाना) विद्या और शक्ति से चन्द्र और सूर्यवत् प्रकाशवान् जनो ! (यत्) जो (सरण्युः) विचरणशील परिव्राजकवत् (गोइष्टौ) अन्यों के उपकारार्थ ज्ञानवाणियों को देने या प्राप्त करने के लिये (सरत्) विचरता है वह (जरण्युः) स्तुतिशील, उपदेष्टा (विप्रः) बुद्धिमान् पुरुष ही (कारवे प्रेष्ठः) क्रियावान् पुरुष वा जगत्कर्त्ता को अतिप्रिय होता है। और (सः हि) वह ही (एषां प्रेष्ठः) इनका अतिप्रिय होकर (परा च वक्षत्) दूर २ देश तक उपदेश करता (उत) और (एनान् पर्षत्) उनको पार करता और पालता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    नाभानेदिष्ठो मानवः। विश्वेदेवा देवताः॥ छन्द:–१, ८–१०, १५, १६, १८,१९, २१ निचृत् त्रिष्टुप्। २, ७, ११, १२, २० विराट् त्रिष्टुप्। ३, २६ आर्ची स्वराट् त्रिष्टुप्। ४, १४, १७, २२, २३, २५ पादनिचृत् त्रिष्टुप्। ५, ६, १३ त्रिष्टुप्। २४, २७ आर्ची भुरिक् त्रिष्टुप्। सप्तविंशत्यृचं सूक्तम्॥

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    विषय

    सरण्यु-जरण्यु

    पदार्थ

    [१] (अध) = अब (यद्) = यदि (ना) = मनुष्य उन्नतिपथ पर चलनेवाला व्यक्ति [नृ=नये] (राजा) = बड़े व्यवस्थित जीवनवाला [regulated] और अतएव दीप्त जीवनवाला होता है [राज् दीप्तौ] तो यह (गविष्टौ) = उस आत्मतत्त्व के अन्वेषण में (सरत्) = गति करता है [in search of god] इसकी सब क्रियाएँ आत्मतत्त्व के अन्वेषण के लिये होती हैं । [२] यह (सरण्युः) = उत्कृष्ट गतिवाला पुरुष (कारवे) = उस कलापूर्ण कृतिवाले प्रभु के लिये (जरण्युः) = स्तोता होता है, उस प्रभु की विभूतियों का स्मरण करता हुआ उस प्रभु की भक्ति में मग्न हो जाता है। एक-एक पदार्थ में इसे प्रभु की महिमा दृष्टिगोचर होती है । [३] (विप्रः) = प्रभु-भक्ति करता हुआ यह अपना विशेषरूप से पूरण करता है [वि-प्रा]। (एषां सः हि) = इन जीवों में अपना पूरण करनेवाला यह विप्र ही (प्रेष्ठः) = प्रभु का प्रियतम होता है। उन्नति करनेवाला पुत्र पिता को प्रिय होता ही है । (च) = और यह (परावक्षत्) = अपने को सब दुरितों से परे ले चलता है (उत) = और (एनान्) = अपने अन्य साथियों को भी (पर्षत्) = अवाञ्छनीय वस्तुओं से पार ले चलता है। अपने जीवन को अच्छा बनाकर दूसरों के जीवनों को भी उत्तम बनाता है।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्रभुभक्त सदा आत्मतत्त्व के अन्वेषण में चलता है यह प्रत्येक पदार्थ में प्रभु की विभूति को देखता हुआ उत्तम जीवनवाला व प्रभु का प्रिय होता है । यह अपने को दुरितों से दूर ले चलता है, औरों के भी कल्याण करनेवाला होता है। यह सरण्य व जरण्यु होता है, 'गतिशील प्रभु का स्तोता' ।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    And then, O men of light and wisdom, the person who is keen to rise and is rising in the search for the lord’s love and good will, who seeks to adore and serve the lord creator, such a vibrant devotee becomes the dearest of all these seekers for the lord, crosses the flood of existence and, speaking of the highest absolute and inspiring them, helps others too to seek divine fulfilment.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    मुमुक्षू जनात जेव्हा मोक्षाचा इच्छुक मनुष्य परमात्म्याची अत्यंत स्तुती करतो तेव्हा तो परमात्म्याचा अत्यंत प्रिय बनतो व दुसऱ्यांनाही परमात्म्याच्या स्तुतीसाठी प्रेरित करतो. तो जणू संसार सागरातून त्यांना पार पाडतो. ॥२३॥

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