Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 87 के मन्त्र
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 87/ मन्त्र 11
    ऋषिः - पायुः देवता - अग्नी रक्षोहा छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    त्रिर्या॑तु॒धान॒: प्रसि॑तिं त एत्वृ॒तं यो अ॑ग्ने॒ अनृ॑तेन॒ हन्ति॑ । तम॒र्चिषा॑ स्फू॒र्जय॑ञ्जातवेदः सम॒क्षमे॑नं गृण॒ते नि वृ॑ङ्धि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्रिः । या॒तु॒ऽधानः॑ । प्रऽसि॑तिम् । ते॒ । ए॒तु॒ । ऋ॒तम् । यः । अ॒ग्ने॒ । अनृ॑तेन । हन्ति॑ । तम् । अ॒र्चिषा॑ । स्फू॒र्जय॑न् । जा॒त॒ऽवे॒दः॒ । स॒म्ऽअ॒क्षम् । ए॒न॒म् । गृ॒ण॒ते । नि । वृ॒ङ्धि॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्रिर्यातुधान: प्रसितिं त एत्वृतं यो अग्ने अनृतेन हन्ति । तमर्चिषा स्फूर्जयञ्जातवेदः समक्षमेनं गृणते नि वृङ्धि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    त्रिः । यातुऽधानः । प्रऽसितिम् । ते । एतु । ऋतम् । यः । अग्ने । अनृतेन । हन्ति । तम् । अर्चिषा । स्फूर्जयन् । जातऽवेदः । सम्ऽअक्षम् । एनम् । गृणते । नि । वृङ्धि ॥ १०.८७.११

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 87; मन्त्र » 11
    अष्टक » 8; अध्याय » 4; वर्ग » 7; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (जातवेदः-अग्ने) हे प्रसिद्ध अवसर के वेत्ता ! आग्नेय-अस्त्रवाले नायक ! (सः-यातुधानः) वह पीड़ाधारक दुष्टजन (त्रिः प्रसितिम्-एतु) तीन प्रकारवाली बन्धनी को-हाथ पैर गलेवाली को प्राप्त हो (यः-अनृतेन ऋतं हन्ति) जो अपने पापाचरण से सदाचरण को नष्ट करता है (तम्-एनम्-अर्चिषा स्फूर्जयन्) उस इस को तेज से ताड़ता हुआ (गृणते समक्षं निवृङ्धि) दुःख कहते हुए प्रजागण के लिये उसके समक्ष प्राणों से वियुक्त कर ॥११॥

    भावार्थ

    प्रजागण के पीड़क दुष्ट पापी को और जो अपने पापाचरण द्वारा सदाचरण की हत्या करे, उसे तीन बन्धनियों-हाथ पैर गले में हथकड़ी बेड़ी गलफाँसी में बाँधकर सबके सम्मुख प्राणों से वियुक्त करे ॥११॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    प्रजा के हितार्थ असत्यशील दुष्टों का दमन।

    भावार्थ

    हे (अग्ने) तेजस्विन् ! दुष्टों को भस्म करने हारे ! वह (यातु-धानः) पीड़ादायक साधनों से प्रजाओं को बांधने वाला दुष्ट पुरुष, आतंककारी प्रजापीड़क, (ते) तेरे (प्रसितिम्) बन्धन को (त्रिः एतु) तीन प्रकार से आवे (यः) जो (अनृतेन हन्ति) अपने असत्य वचन वा व्यवहार से दूसरे को दण्डित, पीड़ित, नष्ट करता है। हे (जात-वेदः) सब धनों के स्वामिन् ! (तम्) उसको (अर्चिषा) अपने तीव्र ताप से, (स्फूर्जयन्) बिजुलीवत् पीड़ित, भयभीत करता हुआ, (समक्षम्) सबके सामने (पृणते) प्रार्थनाशील प्रजा जन के हितार्थ, (एनं निवृङ्धि) विशेष रूप से काट डाल।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः पायुः। देवता–अग्नी रक्षोहा॥ छन्दः— १, ८, १२, १७ त्रिष्टुप्। २, ३, २० विराट् त्रिष्टुप्। ४—७, ९–११, १८, १९ निचृत् त्रिष्टुप्। १३—१६ भुरिक् त्रिष्टुप्। २१ पादनिचृत् त्रिष्टुप्। २२, २३ अनुष्टुप्। २४, २५ निचृदनुष्टुप्॥ पञ्चविंशत्यृचं सूक्तम्॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    अध्यापन व उपदेश द्वारा परिवर्तन

    पदार्थ

    [१] हे (अग्ने) = राष्ट्र के अग्रेणी राजन् ! (यः) = जो (यातुधानः) प्रजा-पीड़क व्यक्ति (अनृतेन) = अनृत से (ऋतं हन्ति) = ऋत को नष्ट करता है, वह (त्रिः) = तीन बार (ते) = तेरे (प्रसितिम्) = बन्धन में (एतु) = प्राप्त हो । प्रथम बार उसे 'वाग्दण्ड' देकर छोड़ दिया जाए। दूसरी बार उसके लिये 'धिग्दण्ड' का प्रयोग हो । फिर तीसरी बार 'अर्थदण्ड व वधदण्ड' के योग्य उसे समझा जाये । [२] हे (जातवेदः) = राष्ट्र में ज्ञान का प्रसार करनेवाले राजन् ! (तम्) = उस यातुधान को (अर्चिषा) = ज्ञान की ज्वाला से (स्फूर्जयन्) = दीप्त करते हुए [स्फुर्ज् = to sline] (गृणते समक्षम्) = स्तोता व उपदेष्टा के सामने (एनम्) = इसको निवृद्धि-निश्चय से पवित्र करने का प्रयत्न कर [ वृणक्ति to purify ] । इस मन्त्र भाग से यह स्पष्ट है कि राजा ने जेल में इन अपराधियों के सुधार का पूर्ण प्रयत्न करना है और इस प्रयत्न में मुख्य बात यह है कि जेल में उनके ज्ञान के मापक को ऊँचा करने का प्रयत्न किया जाये और वहाँ उपदेष्टा की व्यवस्था करके इनके जीवन को पवित्र करने का प्रबन्ध हो । 'अध्यापन व उपदेश' अपराधी की मनोवृत्ति को परिवर्तित करने में बड़े सहायक होंगे।

    भावार्थ

    भावार्थ-कैदियों के लिये अध्यापन व उपदेश की व्यवस्था करके उनके जीवन को परिवर्तित करने की अत्यन्त आवश्यकता है।

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (जातवेदः-अग्ने) हे प्रसिद्धावसरस्य वेत्तः ! आग्नेयास्त्रवन् नायक ! (सः-यातुधानः) स यातनाधारको दुष्टजनः (त्रिः प्रसितिम्-एतु) त्रिप्रकारां बन्धनीं प्राप्नोतु (यः-अनृतेन-ऋतं हन्ति) यः स्वकीयपापाचरणेन सदाचरणं नाशयति (तम्-एनम्-अर्चिषा स्फूर्जयन्) तमेतं तेजसा ताडयन् (गृणते समक्षं निवृङ्धि) दुःखं कथयते प्रजागणाय तत्समक्षं प्राणैर्वियोजय ॥११॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Agni, all knowing Jataveda, brilliant ruler, whoever violates the law of truth with the force of untruth, must suffer threefold shackles of your law and power, justice, punishment and deterrence. Crashing on him with the light and power of truth, crushing him down openly before the law abiding and socially dedicated people, root out the evil and the violent.

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (1)

    भावार्थ

    प्रजेला त्रस्त करणाऱ्या दुष्ट पापी माणसाला व जो आपल्या पापाचरणाद्वारे सदाचरणाची हत्या करतो त्याला तीन बंधनांनी हात, पाय, गळा यांच्यात हथकडी, बेडी व गळ्यात फासी घालून सर्वांसमोर प्राणांपासून वियुक्त करावे. ॥११॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top