ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 87/ मन्त्र 22
परि॑ त्वाग्ने॒ पुरं॑ व॒यं विप्रं॑ सहस्य धीमहि । धृ॒षद्व॑र्णं दि॒वेदि॑वे ह॒न्तारं॑ भङ्गु॒राव॑ताम् ॥
स्वर सहित पद पाठपरि॑ । त्वा॒ । अ॒ग्ने॒ । पुर॑म् । व॒यम् । विप्र॑म् । स॒ह॒स्य॒ । धी॒म॒हि॒ । धृ॒षत्ऽव॑र्णम् । दि॒वेऽदि॑वे । ह॒न्तार॑म् । भ॒ङ्गु॒रऽव॑ताम् ॥
स्वर रहित मन्त्र
परि त्वाग्ने पुरं वयं विप्रं सहस्य धीमहि । धृषद्वर्णं दिवेदिवे हन्तारं भङ्गुरावताम् ॥
स्वर रहित पद पाठपरि । त्वा । अग्ने । पुरम् । वयम् । विप्रम् । सहस्य । धीमहि । धृषत्ऽवर्णम् । दिवेऽदिवे । हन्तारम् । भङ्गुरऽवताम् ॥ १०.८७.२२
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 87; मन्त्र » 22
अष्टक » 8; अध्याय » 4; वर्ग » 9; मन्त्र » 2
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अष्टक » 8; अध्याय » 4; वर्ग » 9; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(सहस्व-अग्ने) हे बलवन् ! अग्रणायक ! (त्वा पुरं विप्रम्) तुझ कामनाओं के पूरक मेधावी (धृषद्वर्णम्) धर्षकरूप प्रभावशाली (भङ्गुरावतां हन्तारम्) भञ्जन कर्मवालों के नाशक को (दिवेदिवे) प्रतिदिन (परि धीमहि) सब ओर मन में धारण करें ॥२२॥
भावार्थ
परमात्मा पीड़ा देनेवालों को नष्ट कर रहा है, उसका स्मरण करना चाहिए ॥२२॥
विषय
दुष्टपीड़क राजा के शरण में प्रजा की स्थिति।
भावार्थ
हे (अग्ने) अग्रणी ! हे तेजस्विन् ! नायक ! हे (सहस्य) शत्रुओं को पराजय करने हारे ! (वयं) हम लोग (पुरं) सबके पालक, (विप्रम्) परम मेधावी, (धृषद्-वर्णं) शत्रुओं को बलपूर्वक दबाने वाले स्वरूप या तेज को धारण करने वाले, (दिवे-दिवे) दिनों दिन (भंगुरावताम्) प्रजा पीड़कों के (हन्तारं) नाश करने वाले (त्वां) तुझको (परिधीमहि) सर्वत्र स्थापित करें और (त्वां परिधीमहि) तुझको सब ओर से परिधान करें, तेरी चारों ओर से हम रक्षा करें और तेरा आश्रय लें, तुझे केन्द्र में रख कर हम तेरे चारों ओर रहें।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः पायुः। देवता–अग्नी रक्षोहा॥ छन्दः— १, ८, १२, १७ त्रिष्टुप्। २, ३, २० विराट् त्रिष्टुप्। ४—७, ९–११, १८, १९ निचृत् त्रिष्टुप्। १३—१६ भुरिक् त्रिष्टुप्। २१ पादनिचृत् त्रिष्टुप्। २२, २३ अनुष्टुप्। २४, २५ निचृदनुष्टुप्॥ पञ्चविंशत्यृचं सूक्तम्॥
विषय
प्रभु का धारण
पदार्थ
[१] हे (अग्ने) = परमात्मन् ! (सहस्य) = शत्रुओं का मर्षण करनेवालों में उत्तम प्रभो ! (वयम्) = हम (त्वा) = आपको (परिधीमहि) = अपने में धारण करते हैं, जो आप (पुरम्) = [पृ पालनपूरणयोः] हमारा पालन व पूरण करनेवाले हैं। हमारे शरीर आपकी कृपा से ही रोगों से आक्रान्त नहीं होते और हमारे मन न्यूनताओं से रहित रहते हैं । (विप्रम्) = ज्ञान को देकर आप हमारा विशेषरूप से पूरण करनेवाले हैं। ज्ञान से सब वासनाएँ दग्ध हो जाती हैं और इस प्रकार हमारे मन निर्मल हो जाते हैं। (धृषद्वर्णम्) = आपके गुणों का वर्णन व नामों का उच्चारण ही हमारे शत्रुओं का धर्षण करनेवाला है, [२] हे प्रभो! आपको हम (दिवे दिवे) = प्रतिदिन धारण करते हैं। उन आपको जो (भङ्गुरावताम्) = हमारा भंग करनेवाली राक्षसी वृत्तियों के (हन्तारम्) = नाश करनेवाले हैं।
भावार्थ
भावार्थ - प्रभु - स्मरण हमारी अशुभवृत्तियों को नष्ट करता है ।
संस्कृत (1)
पदार्थः
(सहस्व-अग्ने) हे बलवन् नायक ! (त्वा पुरं विप्रम्) त्वां पूरकं कामपूरकं मेधाविनं (धृषद्वर्णभङ्गुरावतां हन्तारम्) धर्षणरूपं भञ्जनकर्मवतां शत्रूणां हन्तारं (दिवेदिवे) प्रतिदिनं (परि धीमहि) परितो धारयेम ॥२२॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Agni, day in and day out all time, we celebrate and adore you, eternal giver of fulfilment, wise, resolute and brave, redoubtable vanquisher of the mischievous and destroyer of the destroyers of life and nature.
मराठी (1)
भावार्थ
परमात्मा त्रास देणाऱ्यांना नष्ट करतो. त्याचे स्मरण करावे. ॥२२॥
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