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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 87 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 87/ मन्त्र 4
    ऋषिः - पायुः देवता - अग्नी रक्षोहा छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    य॒ज्ञैरिषू॑: सं॒नम॑मानो अग्ने वा॒चा श॒ल्याँ अ॒शनि॑भिर्दिहा॒नः । ताभि॑र्विध्य॒ हृद॑ये यातु॒धाना॑न्प्रती॒चो बा॒हून्प्रति॑ भङ्ध्येषाम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    य॒ज्ञैः । इषूः॑ । स॒म्ऽनम॑मानः । अ॒ग्ने॒ । वा॒चा । श॒ल्यान् । अ॒शनि॑ऽभिः । दि॒हा॒नः । ताभिः॑ । वि॒ध्य॒ । हृद॑ये । या॒तु॒ऽधाना॑न् । प्र॒ती॒चः । बा॒हून् । प्रति॑ । भ॒ङ्धि॒ । ए॒षा॒म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यज्ञैरिषू: संनममानो अग्ने वाचा शल्याँ अशनिभिर्दिहानः । ताभिर्विध्य हृदये यातुधानान्प्रतीचो बाहून्प्रति भङ्ध्येषाम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यज्ञैः । इषूः । सम्ऽनममानः । अग्ने । वाचा । शल्यान् । अशनिऽभिः । दिहानः । ताभिः । विध्य । हृदये । यातुऽधानान् । प्रतीचः । बाहून् । प्रति । भङ्धि । एषाम् ॥ १०.८७.४

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 87; मन्त्र » 4
    अष्टक » 8; अध्याय » 4; वर्ग » 5; मन्त्र » 4
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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (अग्ने) हे अग्रणी सेनानायक ! तू (यज्ञैः) किन्हीं मिलने योग्य द्रव्यों के साथ (इषूः सन्नममानः) वाणों को जलाता हुआ-तपाता हुआ तथा (वाचा-अशनिभिः) वज्र से-स्फोटक पदार्थ से तथा विद्युत् की धाराओं से (शल्यान् दिहानः) बाण के लोहफलकों को दिग्ध-उपचित-लपेटता हुआ-लेपता हुआ (ताभिः) उन बाणों से (यातुधानान्) पीड़ा देनेवाले शत्रुओं को (हृदये विध्य) हृदय में बींध-ताड़ित कर (येषां बाहून्) इनके शस्त्रयुक्त बाहुओं-भुजाओं को (प्रतीचः) प्रतिकूल करके उलटकर (प्रति भङ्धि) तोड़-फोड़ दे ॥४॥

    भावार्थ

    सेनानायक को चाहिये कि वह  किन्हीं स्फोटक पदार्थों और विद्युत् की धाराओं से शस्त्रों को संयुक्त करे, जिनसे शत्रु शस्त्र सहित उल्टे ताड़ित हो सकें ॥४॥

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    विषय

    राजा को महास्त्रों से दुष्टों के नाश का उपदेश।

    भावार्थ

    हे (अग्ने) सेनाओं के अग्रणी नेता ! सेनापते ! तू (यज्ञैः) अनेक भृति, वेतन, पुरस्कार, आदर, मान-सत्कार आदि उपायों से, (इषूः) अनेक सेनाओं को (सं-नममानः) अपने अधीन करता हुआ और (वाचा) अपनी आज्ञा से (अशनिभिः) अशनि नामक महान् अस्त्रों सहित (शल्यान्) धनुष वाणों सहित वीरों को (दिहानः) खूब एकत्र करता हुआ, (ताभिः) उन शक्तियों से (यातुधानान्) प्रजा को पीड़ा देने वाले साधनों को धारण करने वाले दुष्ट पुरुषों को (हृदये विध्य) मर्म पर आघात कर (एषाम्) उनके (प्रतीचः बाहून्) उनके प्रति द्वेषी, विरोधी, बाहुओं अर्थात् लड़ने वालों को (प्रति भङ्धि) तोड़ डाल, उनको बाहुओं के समान तोड़ कर लुंजा पुंजा कर दे।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः पायुः। देवता–अग्नी रक्षोहा॥ छन्दः— १, ८, १२, १७ त्रिष्टुप्। २, ३, २० विराट् त्रिष्टुप्। ४—७, ९–११, १८, १९ निचृत् त्रिष्टुप्। १३—१६ भुरिक् त्रिष्टुप्। २१ पादनिचृत् त्रिष्टुप्। २२, २३ अनुष्टुप्। २४, २५ निचृदनुष्टुप्॥ पञ्चविंशत्यृचं सूक्तम्॥

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    विषय

    प्रेरणा व ज्ञान का प्राप्त कराना

    पदार्थ

    [१] हे (अग्ने) = अग्रेणी प्रभो ! अथवा राष्ट्र की अग्रगति को करनेवाले राजन् ! आप (यज्ञैः) = कर्मों से (इषू:) = प्रेरणाओं को (संनममान:) = प्रेरित कराते हुए और (अशनिभिः) = [a mester] आचार्यों के द्वारा (वाचा) = ज्ञान की वाणियों से (शल्यान्) = [any caure of heart rendive griey] हृदयवेधी भावनाओं को (दिहान:) = बढ़ाते हुए, (ताभिः) = उन प्रेरणाओं से तथा ज्ञान-वाणियों से (यातुधानान्) = प्रजा पीड़कों को (हृदये विध्य) = हृदय में विद्ध करिये। इनके हृदयों में ही इनके अपने काम चुभने लगे। इन्हें औरों के उत्तम कर्मों से ऐसी प्रेरणा मिले कि ये यातुधानत्व को छोड़कर पवित्र कर्मों की ओर झुक जाएँ और ज्ञान की वाणियाँ इनके हृदयों में इस प्रकार की तीव्र वेदना को उत्पन्न करें कि इनका हृदय तीव्र प्रायश्चित की भावनावाला हो उठे। [२] इस प्रकार इन्हें पापों के प्रति तीव्र वेदनावाला करके (एषाम्) = इनकी (प्रतीच: बाहून्) = पापकर्म में प्रवृत्त [ turned away = धर्ममार्ग से दूर गई हुई] बाहुओं को (भङ्ग्धि) = तोड़ दे । पाप कर्म करने की इनमें हिम्मत ही न रहे।

    भावार्थ

    भावार्थ - राजा उत्तम कर्मों के द्वारा तथा ज्ञान प्रसाद के द्वारा यातुधानों के हृदय में ऐसी शुभ पैदा करे कि वे पापकर्म से घृणा करनेवाले बनकर, उनके लिये प्रायश्चित करके, पवित्र हो जाएँ।

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (अग्ने) हे अग्रणीः सेनानायक ! त्वं (यज्ञैः-इषूः-सन्नममानः) कैश्चित्सङ्गमनीयद्रव्यैर्वाणान् ज्वालयन् तापयन् तथा (वाचा-अशनिभिः शल्यान्-दिहानः) वज्रेण स्फोटकपदार्थेन “वज्र एव वाक्” [ऐ० २।२१] विद्युद्धाराभिश्च लोहफलकानि दिहन्-उपचयन् “दिह उपचये” [तुदा०] वेष्टयन् (ताभिः-यातुधानान् हृदये विध्य) ताभिरिषुभिर्यातनाधारकान् शत्रून् हृदये ताडय (एषां बाहून्-प्रतीचः प्रति भङ्धि) एषां बाहून् शस्त्रबाहून् प्रतिकूलान् कृत्वा नाशय ॥४॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Organising the armed forces into order, alliance and submission by discussion, cooperation and submission, shining and updating the forces by the addition of lightning weapons and thereby paralysing the heart core of the terrorist forces, break their violent arms all round.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    सेनानायकाने स्फोटक पदार्थ व विद्युतच्या धारांनी शस्त्रांना संयुक्त करावे. ज्यामुळे शत्रू शस्त्रसहित ताडित व्हावा. ॥४॥

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