ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 87/ मन्त्र 23
वि॒षेण॑ भङ्गु॒राव॑त॒: प्रति॑ ष्म र॒क्षसो॑ दह । अग्ने॑ ति॒ग्मेन॑ शो॒चिषा॒ तपु॑रग्राभिॠ॒ष्टिभि॑: ॥
स्वर सहित पद पाठवि॒षेण॑ । भ॒ङ्गु॒रऽव॑तः । प्रति॑ । स्म॒ । र॒क्षसः॑ । द॒ह॒ । अग्ने॑ । ति॒ग्मेन॑ । शो॒चिषा॑ । तपुः॑ऽअग्राभिः । ऋ॒ष्टिऽभिः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
विषेण भङ्गुरावत: प्रति ष्म रक्षसो दह । अग्ने तिग्मेन शोचिषा तपुरग्राभिॠष्टिभि: ॥
स्वर रहित पद पाठविषेण । भङ्गुरऽवतः । प्रति । स्म । रक्षसः । दह । अग्ने । तिग्मेन । शोचिषा । तपुःऽअग्राभिः । ऋष्टिऽभिः ॥ १०.८७.२३
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 87; मन्त्र » 23
अष्टक » 8; अध्याय » 4; वर्ग » 9; मन्त्र » 3
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अष्टक » 8; अध्याय » 4; वर्ग » 9; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(अग्ने) हे तेजस्वी नायक ! (भङ्गुरावतः) भञ्जनकर्मवाले राक्षसों को (विषेण) विषयुक्त प्रयोग से (तिग्मेन शोचिषा) तीक्ष्ण ज्वलन्त अस्त्र से (तपुः अग्राभिः-ऋष्टिभिः) तापक अग्रभागवाही शस्त्रशक्तियों से (प्रतिदह स्म) प्रतिदग्ध कर दे ॥२३॥
भावार्थ
राष्ट्र में तोड़-फोड़ मचानेवाले दुष्टजनों को तीक्ष्ण जलते हुए शस्त्रों तथा तापक मुखवाले शक्तिशस्त्रों से दग्ध करे, नष्ट-भ्रष्ट करे ॥२३॥
विषय
दुष्ट शत्रु का मूलोच्छेद करने का उपदेश।
भावार्थ
हे (अग्ने) तेजस्विन् ! अझे ! तू (रक्षसः) दुष्ट, विनकारी पुरुषों को (तिग्मेन विषेण) तीखे विष से वा तीक्ष्ण, विशेष रूप से विविध प्रकार से जीवन का अन्त कर देने वाले (शोचिषा) तेज़ शस्त्र से (प्रति दह स्म) उसको भस्म कर, जला, पीड़ित कर। और (तपुः-अग्राभिः) तपे हुए अग्रभागों वाली (ऋष्टिभिः) संगीनों के सदृश शस्त्रों से (प्रति दह) भस्म कर।
टिप्पणी
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः पायुः। देवता–अग्नी रक्षोहा॥ छन्दः— १, ८, १२, १७ त्रिष्टुप्। २, ३, २० विराट् त्रिष्टुप्। ४—७, ९–११, १८, १९ निचृत् त्रिष्टुप्। १३—१६ भुरिक् त्रिष्टुप्। २१ पादनिचृत् त्रिष्टुप्। २२, २३ अनुष्टुप्। २४, २५ निचृदनुष्टुप्॥ पञ्चविंशत्यृचं सूक्तम्॥
विषय
व्यापक ज्ञान व सूर्यवत् गति
पदार्थ
[१] हे (अग्ने) = प्रकाशमय प्रभो! आप (विषेण) = [विष् व्याप्तौ] व्यापक ज्ञान के द्वारा (भङ्गुरावतः) = हमारी शक्तियों का भंग करनेवाली (रक्षसः) = राक्षसी वृत्तियों को (प्रति दह स्म) = निश्चय से एक-एक करके भस्म कर दीजिये। ज्ञानाग्नि से वासनाएँ जल जाती हैं। [२] (तिग्मेन शोचिषा) = तीव्र ज्ञान की ज्योति से तथा (तपुः अग्राभिः) = [तपुः = the sun ] सूर्य है अग्रभाग में जिनके ऐसी (ॠष्टिभिः) = [ऋष् गतौ] गतियों से हमारी राक्षसी वृत्तियों का दहन करिये। सूर्य को सन्मुख रख के अर्थात् सूर्य को आदर्श मानकर की जानेवाली गतियाँ 'तपुरग्रा ऋष्टियाँ' हैं । 'सूर्याचन्द्रमसाविव' = सूर्य और चन्द्रमा की तरह नियमित गतियों से अशुभवृत्तियाँ दूर हो जाती हैं।
भावार्थ
भावार्थ-व्यापक व दीप्त ज्ञान से तथा सूर्य की तरह नियमित गति से हम अशुभवृत्तियों का दहन करनेवाले हों ।
संस्कृत (1)
पदार्थः
(अग्ने) हे तेजस्विन् नायक ! (भङ्गुरावतः) भञ्जनकर्मवतो राक्षसान् (विषेण) विषयुक्तेन प्रयोगेण (तिग्मेन शोचिषा) तीक्ष्णेन ज्वलदस्त्रेण (तपुः-अग्राभिः-ऋष्टिभिः) तापकाग्रभागयुक्ताभिः शस्त्रशक्तिभिः (प्रति दह स्म) प्रतिदग्धान् कुरु ॥२३॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Agni, with pervasive and expansive light, heat and penetrative flames and with beams of constant action against the negativities of life and society, pray bum up the crooked and destructive elements of life in every field of their activity.
मराठी (1)
भावार्थ
राष्ट्रात तोडफोड करणाऱ्या दुष्ट लोकांना तीक्ष्ण दाहक शस्त्र व अग्नीसारख्या शक्ती असलेल्या शस्त्रांनी दग्ध करून नष्ट करावे. ॥२३॥
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