ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 87/ मन्त्र 8
इ॒ह प्र ब्रू॑हि यत॒मः सो अ॑ग्ने॒ यो या॑तु॒धानो॒ य इ॒दं कृ॒णोति॑ । तमा र॑भस्व स॒मिधा॑ यविष्ठ नृ॒चक्ष॑स॒श्चक्षु॑षे रन्धयैनम् ॥
स्वर सहित पद पाठइ॒ह । प्र । ब्रू॒हि॒ । य॒त॒मः । सः । अ॒ग्ने॒ । यः । या॒तु॒ऽधानः॑ । यः । इ॒दम् । कृ॒णोति॑ । तम् । आ । र॒भ॒स्व॒ । स॒म्ऽइधा॑ । य॒वि॒ष्ठ॒ । नृ॒ऽचक्ष॑सः । चक्षु॑षे । र॒न्ध॒य॒ । ए॒न॒म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
इह प्र ब्रूहि यतमः सो अग्ने यो यातुधानो य इदं कृणोति । तमा रभस्व समिधा यविष्ठ नृचक्षसश्चक्षुषे रन्धयैनम् ॥
स्वर रहित पद पाठइह । प्र । ब्रूहि । यतमः । सः । अग्ने । यः । यातुऽधानः । यः । इदम् । कृणोति । तम् । आ । रभस्व । सम्ऽइधा । यविष्ठ । नृऽचक्षसः । चक्षुषे । रन्धय । एनम् ॥ १०.८७.८
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 87; मन्त्र » 8
अष्टक » 8; अध्याय » 4; वर्ग » 6; मन्त्र » 3
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अष्टक » 8; अध्याय » 4; वर्ग » 6; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(सः यविष्ठः-अग्ने) वह तू हे युवतम अग्रणी सेनानायक ! (इह ब्रूहि) इस प्रसङ्ग में कथन कर (यः यतमः) जो भी कोई (यातुधानः) यातनाधारक पीडक (यः इदं कृणोति) जो इस राष्ट्र को हरता है, प्रजा को पीड़ित करता है (तं समिधा-आरभस्व) उसे ज्वलन अस्त्र से जला (नृचक्षसः चक्षुषे-एनं रन्धय) मनुष्यों के कर्मदर्शक महाविद्वान् के दर्शन के लिये इस उस राक्षस दुष्ट जन को या वर्ग को सम्मुख नष्ट कर ॥८॥
भावार्थ
शक्तिसंपन्न युवा सेनानायक उस राष्ट्र के हरनेवाले तथा प्रजा को पीड़ित करनेवाले दुष्ट मनुष्य को अपने शस्त्रास्त्रों से तापित करे या उसे विद्वानों के समीप दण्ड के लिये उपस्थित करे ॥८॥
विषय
अपराधियों के अपराध घोषणा सहित दण्डित करने का आदेश।
भावार्थ
(यः यातुधानः) जो प्रजा को पीड़ा देने वाला है, (यः) जो (इदम् कृणोति) पापाचार कराता है हे (अग्ने) तेजस्विन् (सः) वह (यतमः) उस प्रकार के अपराधियों में कौनसा है, उसका अपराध क्या और किस प्रकार का और कितनों में से किस वर्ग का, कौन २ है यह सब विवरण पूर्वक (इह प्र ब्रूहि) इस राष्ट्र में अच्छी प्रकार बतला जिससे सब कोई उसके बुरे काम को जानकर धिक्कारें और (तम्) उसको (सम् इधा) खूब जलती चमकती लकड़ी या चमचमाती लोहे की सलाख ‘सूर्मि’ से (आ रभस्व) स्पर्श करा। हे (यविष्ठ) बलशालिन् ! तू उसको (नृ-चक्षसः) मनुष्यों को यथाऽपराध दण्ड की व्यवस्था करने वाले राजा, न्यायदाता की (चक्षुषे) न्याय दृष्टि के लिये (एनम् रन्धय) इसको पीड़ित कर, उसको अपना भाई बन्धु जान कर, वा उससे धनादि बहुत पाने की आशा से भी से भी दण्ड देने से मत त्याग, उसको अवश्य दण्डित कर।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः पायुः। देवता–अग्नी रक्षोहा॥ छन्दः— १, ८, १२, १७ त्रिष्टुप्। २, ३, २० विराट् त्रिष्टुप्। ४—७, ९–११, १८, १९ निचृत् त्रिष्टुप्। १३—१६ भुरिक् त्रिष्टुप्। २१ पादनिचृत् त्रिष्टुप्। २२, २३ अनुष्टुप्। २४, २५ निचृदनुष्टुप्॥ पञ्चविंशत्यृचं सूक्तम्॥
विषय
ज्ञान के द्वारा उत्कृष्ट जीवन का निर्माण
पदार्थ
[१] हे (अग्ने) = परमात्मन् ! (यः यातुधानः) = जो औरों को पीड़ा पहुँचानेवाला है, (यः इदं कृणोति) = जो इस जगत् को हानि पहुँचाता है या इस लोक के प्राणियों की हिंसा करता है, (सः यतमः) = वह जो भी है (तम्) = उसको (इह) = यहाँ (प्र ब्रूहि) = प्रकर्षेण उपदेश दीजिये । [२] हे (यविष्ठ) = अधिक से अधिक बुराइयों को दूर करनेवाले प्रभो ! (तम्) = उसे (समिधा) = ज्ञान की दीप्ति के द्वारा (आरभस्व) = [ to form] श्रेष्ठ बल दीजिये । (एनम्) = इसको (नृचक्षसः) = [नॄन् चष्टे = looks after men] प्रजा का पालन करनेवाले राजा की (चक्षुषे) = आँख के लिये (रन्धय) = [anahe subject to] वशीभूत करिये। राष्ट्र में राजा इन मनुष्यों पर दृष्टि रखे और इन्हें प्रजा विध्वंस के कार्यों से रोक कर, धीमे-धीमे ज्ञान प्रदान के द्वारा इनके सुधार का प्रयत्न करे ।
भावार्थ
भावार्थ- प्रभु यातुधानों को प्रेरणा देकर परिवर्तित जीवनवाला बनाते हैं। इन्हें राजा के वशीभूत करके इनका सुधार करते हैं ।
संस्कृत (1)
पदार्थः
(यविष्ठ सः अग्ने) सः त्वं हे युवतम ! अग्रणीः सेनानायक ! (इह ब्रूहि) अत्र प्रसङ्गे स त्वं प्रकथय (यः यतमः) योऽपि कश्चन (यातुधानः) यातनाधारकः (यः इदं कृणोति) यो राष्ट्रं हरति प्रजाः पीडयति (तं समिधा-आरभस्व) तं ज्वलनास्त्रेण-आक्राम ज्वालय (नृचक्षसः चक्षुषे-एनं रन्धय) एनं तं राक्षसं दुष्टं जनं वर्गं वा नाशय नॄणां कर्मदर्शकस्य महाविदुषः “नृचक्षस-नॄणां सदसत् कर्मद्रष्टा” [ऋ० ३।१।१५ दयानन्दः] चक्षुषे दर्शनाय ॥८॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Agni, expose and proclaim right here whoever be the violent force that does this damage. O youthful power ever watchful of humanity, subject it to the fuel fire and destroy it that all may see.
मराठी (1)
भावार्थ
शक्तिसंपन्न तरुण सेनानायकाने राष्ट्राला हरविणाऱ्या व प्रजेला त्रस्त करणाऱ्या दुष्ट माणसाला आपल्या आग्नेयास्त्रांनी जाळून टाकावे किंवा त्याला विद्वानांसमोर दंडासाठी उपस्थित करावे. ॥८॥
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