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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 87 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 87/ मन्त्र 9
    ऋषिः - पायुः देवता - अग्नी रक्षोहा छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    ती॒क्ष्णेना॑ग्ने॒ चक्षु॑षा रक्ष य॒ज्ञं प्राञ्चं॒ वसु॑भ्य॒: प्र ण॑य प्रचेतः । हिं॒स्रं रक्षां॑स्य॒भि शोशु॑चानं॒ मा त्वा॑ दभन्यातु॒धाना॑ नृचक्षः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ती॒क्ष्णेन॑ । अ॒ग्ने॒ । चक्षु॑षा । र॒क्ष॒ । य॒ज्ञम् । प्राञ्च॑म् । वसु॑ऽभ्यः । प्र । न॒य॒ । प्र॒ऽचे॒तः॒ । हिं॒स्रम् । रक्षां॑सि । अ॒भि । शोशु॑चानम् । मा । त्वा॒ । द॒भ॒न् । या॒तु॒ऽधानाः॑ । नृ॒ऽच॒क्षः॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तीक्ष्णेनाग्ने चक्षुषा रक्ष यज्ञं प्राञ्चं वसुभ्य: प्र णय प्रचेतः । हिंस्रं रक्षांस्यभि शोशुचानं मा त्वा दभन्यातुधाना नृचक्षः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तीक्ष्णेन । अग्ने । चक्षुषा । रक्ष । यज्ञम् । प्राञ्चम् । वसुऽभ्यः । प्र । नय । प्रऽचेतः । हिंस्रम् । रक्षांसि । अभि । शोशुचानम् । मा । त्वा । दभन् । यातुऽधानाः । नृऽचक्षः ॥ १०.८७.९

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 87; मन्त्र » 9
    अष्टक » 8; अध्याय » 4; वर्ग » 6; मन्त्र » 4
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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (नृचक्षः-अग्ने) हे राष्ट्र के नेता जनों के द्रष्टा अग्रनायक सेनानी ! (तीक्ष्णेन-चक्षुषा) तीक्ष्ण भयदर्शक अस्त्र द्वारा शत्रु से (प्राञ्चं यज्ञं रक्ष) प्राप्त सङ्गमनीय राष्ट्र की रक्षा कर (प्रचेतः-वसुभ्यः प्र नय) सावधान नायक प्रजाओं के लिये राष्ट्र को चला (रक्षांसि-अभि) दुष्टों पर आक्रमण कर (शोशुचानं हिंस्रं त्वा) देदीप्यमान हुए शत्रुनाशक को (यातुधानाः-मा दभन्) पीड़ा देनेवाले मत दबावें, ऐसा कर ॥९॥

    भावार्थ

    सेनानायक सब सैनिकों पर दृष्टि रखे, प्रजाजनों के सुखार्थ राष्ट्र की रक्षा करे, शत्रु से बचावे, शत्रुओं को हिंसित करे ॥९॥

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    विषय

    राष्ट्र-रक्षा और आत्म-रक्षा का उपदेश।

    भावार्थ

    हे (अग्ने) अग्नि के तुल्य तेजस्विन् ! दुष्टों को दग्ध करने वाले राजन् ! तू (तीक्ष्णेन चक्षुषा) तीक्ष्ण दृष्टि से (प्राञ्चम्) सर्वोत्कृष्ट (यज्ञम्) अपने सुसंगत राष्ट्र की (रक्ष) रक्षा कर। हे (प्रचेतः) उत्तम ज्ञान और उत्तम चित्त वाले ! हे (नृ-चक्षः) मनुष्यों के ऊपर न्यायद्रष्टः। (रक्षांसि हिंस्रम्) दुष्टों के नाश करने वाले (अभि शोशुचानम्) मुकाबले पर दण्डित करते दण्डित करते हुए (त्वा) तुझको (यातुधानः) पीड़ादायी दुष्टजन (मा दभन्) नाश न करें।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः पायुः। देवता–अग्नी रक्षोहा॥ छन्दः— १, ८, १२, १७ त्रिष्टुप्। २, ३, २० विराट् त्रिष्टुप्। ४—७, ९–११, १८, १९ निचृत् त्रिष्टुप्। १३—१६ भुरिक् त्रिष्टुप्। २१ पादनिचृत् त्रिष्टुप्। २२, २३ अनुष्टुप्। २४, २५ निचृदनुष्टुप्॥ पञ्चविंशत्यृचं सूक्तम्॥

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    विषय

    राज कर्त्तव्य

    पदार्थ

    [१] हे (अग्ने) = राष्ट्र के अग्रणी राजन् ! तू (तीक्ष्णेन चक्षुषा) = बड़ी तीव्र दृष्टि से (यज्ञं रक्ष) = यज्ञ की रक्षा कर। इस राष्ट्रयज्ञ को यातुधानों के द्वारा किये जानेवाले विध्वंस से बचा । [२] हे (प्रचेतः) = प्रकृष्ट ज्ञानवाले राजन् ! (वसुभ्यः) = उत्तम निवासवालों के लिये, जीवन को उत्तमता से बितानेवालों के लिये तू इस राष्ट्रयज्ञ को (प्राञ्चं प्रणय) = सदा अग्रगतिवाला कर। यह राष्ट्र निरन्तर उन्नतिपथ पर आगे बढ़नेवाला हो और यातुधानों से विपरीत वसुओं के लिये स्वयं उत्तम जीवन बितानेवालों तथा औरों को उत्तम जीवन बिताने देने वालों के लिये इस राष्ट्र को तू उन्नत कर । वसुओं को यहाँ उन्नति के सब साधन प्राप्त हों। [३] हे (नृचक्षः) = प्रजाओं का ध्यान करनेवाले राजा (रक्षांसि हिंस्त्रम्) = राक्षसी वृत्तियों को समाप्त करने के स्वभाववाले, (अभिशोशुचानम्) = बाहर व अन्दर दीप्तिवाले, बाहर स्वास्थ्य के तेज से सम्पन्न और अन्दर ज्ञान ज्योति से दीप्त (त्वा) = तुझको (यातुधाना) = ये प्रजा-पीड़क (मा दभन्) = हिंसित करनेवाले न हों । तुझे ये अपने दबाव में न ला सकें।

    भावार्थ

    भावार्थ - राजा का मूल कर्त्तव्य यही है कि वह राष्ट्रयज्ञ के विघ्न का ही यातुधानों को दूर करे । यातुधानों को दूर करके वसुओं के लिये उन्नति के साधनों को प्राप्त कराये ।

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (नृचक्षः-अग्ने) हे नॄणां द्रष्टः अग्रणीः सेनानायक ! (तीक्ष्णेन चक्षुषा) तीक्ष्णेन भयदर्शकास्त्रेण शत्रुतः (प्राञ्चं यज्ञं रक्ष) सङ्गमनीयं प्राप्तं राष्ट्रं रक्ष (प्रचेतः वसुभ्यः प्र नय) हे सावधान नायक ! प्रजाभ्यः “प्रजा वै पशवो वसुः” [तै० सं० ५।२।४।२] राष्ट्रं प्रकृष्टं नय चालय (रक्षांसि-अभि) राक्षसान् दुष्टान् प्रति (शोशुचानं हिंस्रं त्वा) देदीप्यमानं नाशकारिणं त्वां (यातुधानाः-मा दभन्) यातनाधारका दुष्टा जना न हिंसेयुः तथा कुरु ॥९॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O Agni, blazing ruling power of nature and the world, ever alert, ever watchful of humanity, with penetrative and comprehensive eye, guard, protect and promote the yajnic order of society enacted and proceeding so clearly and transparently, and let it progress for the achievement of wealth, honour and excellence for all the people. Unsparing destroyer of the negatives, shining, and burning the destructive, let no violent force terrorize or depress you ever.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    सेनानायकाने सर्व सेनेवर नजर ठेवावी. प्रजेच्या सुखासाठी राष्ट्राचे रक्षण करावे. शत्रूपासून वाचवावे. शत्रूंची हिंसा करावी. ॥९॥

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